परी – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in hindi

“मालिक मुझे कुछ रुपए उधार चाहिएं!” रामू अपने गांव के सरपंच दामोदर के पास आ हाथ जोड़ कर बोला।

” अरे रामू तुझे ऐसी क्या जरूरत पड़ गई तू तो कभी उधार नहीं मांगता फिर आज ऐसा क्या हुआ ?” सरपंच ने आश्चर्य से पूछा।

” वो मालिक हमारी बिटिया है ना सलोनी वो कल पांच बरस की हो रही है हमने उससे पूछा क्या चाहिए तो वो बोलती है उसका पाठशाला में नाम लिखाय दूं वो पढ़लिख कर बड़ी अफसर बनना चाहती है अब गांव मे तो स्कूल है नही तो मैं उसका नाम पास के शहर मे लिखवा दूँगा और उसकी माई एक खोली लेकर उसके साथ शहर रह लेगी !” रामू खुश होते हुए बोला।

” हा हा हा अरे रामू उसे ये झूठे सपने देखने की जगह घर के कामों में अपनी महतारी की मदद करने को बोल क्या फायदा ऐसा सोचने का भी जो हो नहीं सकता और शहर के खर्चे भी तू जानता है कितने है ऊपर से तेरी घरवाली के ना रहने से तेरी कमाई भी घट जाएगी !” दामोदर हंसते हुए बोले।

” नहीं नहीं मालिक हमार सलोनी बड़ी होसियार है वो सब सीख जाएगी आप बस मुझे पैसे देने की किरपा करें बाकी रही बाद के खर्चे की बात वो मैं देख लूंगा !” रामू बोला।

” देख रामू मेरी बात मान उसे घर के काम सीखा। मेरे पास भेज देना एक दो बरस में मैं गाय भैंस का चारा पानी करने को रख लूंगा चार पैसे दे दूंगा तुम्हारा काम चलेगा क्यों नाहक कर्ज में डूब रहा वो भी पराई अमानत के लिए !” सरपंच ने समझाया।

”  ना ना सेठ जी मेरी बिटिया ना तो पराई अमानत है ना ही मुझ पर बोझ जो उससे मजदूरी करवाऊंगा वो तो मेरी परी है वो जरूर पाठशाला जाएगी और पढ़ाई करेगी फिर एक दिन अफसर बनेगी।” रामू बोला।

” तू पगला गया है लड़की परी नहीं पराया धन होती है। हमारे गांव में कोई भी लड़की आज तक पाठशाला गई है क्या इस गांव का चौधरी हूं मैं मैं ये अनर्थ ना होने दूंगा। मेरी लड़कियों तक ने आज तक पाठशाला देखी ना है तेरी सलोनी क्या किसी दूसरे लोक से आईं है जो लड़कों के साथ पाठशाला में पढ़ेगी तू उसका भाग्यविधाता बन उसके भाग्य को बदलने की कोशिश ना कर ईश्वर ने उसे घर के काम को ही बनाया है । ” सरपंच गुस्सा होते हुए बोला।

” मालिक मैं भाग्यविधाता तो नही पर अपनी परी के भाग्य को संवारने की कोशिश भर तो कर सकता हूँ और मालिक छोटा मुंह बड़ी बात अगर आपकी बिटिया चार कक्षा पढ़ ली होती तो जमाई बाबू धोखे से तलाक के पर्चे पर अंगूठा ना ले पाते और आज बिटिया यहां ऐसा जीवन ना जी रही होती मैं नहीं चाहता कल को मेरी बिटिया भी ये सब झेले आप बड़े लोग हो खून का घूंट पी गए मुझसे ये ना हो पाएगा उसके लिए मेरी बिटिया का पाठशाला जाना जरूरी है भले मैं ये गांव छोड़ दूं !” रामू खड़े होते हुए बोला।

” रामू तेरी इतनी हिम्मत के तू…… निकल जा यहां से !” रामू को एक लात जमाते हुए सरपंच गुस्से में बोला।

रामू ने अगले ही दिन अपने बैल बेच दिए फिर 2-4 दिन में अपना छोटा सा खेत बेच कर बीवी और बेटी के साथ गांव छोड़ दिया और पास के शहर पहुंच गया। वहां उसने एक छोटी सी खोली किराए पर ली और अपनी गृहस्थी जमाई। बेटी को शहर के सरकारी स्कूल में भरती करा दिया। और खुद अपनी पत्नी के साथ मजदूरी करने लगा । इधर सलोनी जिसे पढ़ने की ललक थी वो पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने लगी।

” बापू देखो मैं कक्षा में प्रथम आईं हूं !” पहला साल पूरा होते ही सलोनी ने खुद को साबित करना शुरू कर दिया।

” जीती रह बिटिया!” रामू ने बेटी को गले लगा लिया।

धीरे धीरे सलोनी सफलता की ऊंचाई चढ़ती चली गई रामू और उसकी पत्नी ने हर दुख झेले पर अपनी बेटी अपनी परी के सपने पूरे करने को दिन रात मेहनत की यहां तक कि दूसरे बच्चे तक की नहीं सोची कि कहीं सलोनी के हिस्से की खुशियां बंट ना जाएं। वैसे भी अब ना उनके पास जमीन थी ना बैल तो दो बच्चो के खर्च मजदूरी से नही चुकाये जा सकते थे। आज सलोनी कलेक्टर बन गई है और उसकी पोस्टिंग उसके ही गांव में हुई है।

” आइए आइए कलेक्टरनी जी हमारे गांव में आपका स्वागत है।” गांव आते ही वर्तमान सरपंच के साथ दामोदर ने उसका स्वागत किया।

” प्रणाम सरपंच जी !” गाड़ी में से रामू ने निकल सेठ को नमस्कार की।

” आप कौन ?” दामोदर अजनबी को देख बोला।

” मालिक में रामू आज से बाईस साल पहले इस गांव में ही रहता था जिसकी बेटी पढ़ना चाहती थी पर आपने पढ़ने ना दिया तो वो गांव छोड़ गया था !” रामू बोला।

” अच्छा तो इतने साल बाद कलेक्टरनी साहिबा से हमारी शिकायत लगा कर लाया है क्या ?” थोड़ी देर याद करने के बाद दामोदर व्यंग्य से बोला।

” दामोदर जी तमीज से बात कीजिए आप इस जिले के कलेक्टर के पिता से बात कर रहे हैं !” सलोनी उससे बोली।

” क्या ….!” दामोदर के साथ साथ बाकी लोगो का मुंह खुला का खुला रह गया।

” हां सरपंच जी ये हमारी वहीं बिटिया हमारी परी है जिसे आपने पराया बोला था आज ये हमारा ही नहीं इस गांव का भी नाम कर दी है !” रामू अकड़ कर बोला।

दामोदर शर्मिंदा हो कभी सलोनी को देखता कभी रामू को उसे खुद पर शर्म आ रही थी एक अनपढ़ गरीब अपनी बेटी का भाग्यविधाता बन गया और उसका भाग्य संवार दिया और वो सब कुछ होते हुए भी अपनी बेटियों का भाग्य नहीं संवार सका।

सलोनी ने गांव में लड़कियों के लिए बहुत काम किए उसमे सबसे बड़ा काम था उनकी शिक्षा का । रामू की परी गांव की कितनी ऐसी लड़कियों के लिए परी बन गई जो अपनी जादू की छड़ी से उनके पढ़ने के सपने को साकार कर रही है।

दोस्तो कहानी भले आपको फिल्मी लगे पर ये सच है कि बेटियों को अगर शिक्षा रूपी पंख दे दिए जाएं तो ऊंचे आसमान को छूने की ताकत रखती हैं पर अफ़सोस हमारे देश के कुछ गांवो में अभी भी लड़कियों कि शिक्षा को बेकार समझा जाता जिसमें बदलाव लाने की जरूरत है।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

4 thoughts on “परी – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in hindi”

  1. ये कहानी भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा की अलख जगाने वाली मां सावित्री बाई फुले की याद दिलाती है जिन्होंने तमाम अड़चनों, अपमानों, तिरस्कार के बावजूद महिलाओं को शिक्षा के लिए जाग्रत किया तथा उनके लिए शिक्षा के द्वार खोले।

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