बेटी हुई है ,नर्स ने जब लेबर रूम से बाहर आकर निर्मला जी को खबर दी तो उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े ।पति अनिल से शिमला जी बोली कैसा खेल रचा है भाग्य विधाता ने दुनिया में आने से पहले बेटी के पापा ही दुनिया से चले गए। अनिल जी ने निर्मला को धीरज बंधाया अब भाग्य के लेख को कौन बदल पाया है, शांत हो जाओ तुम ऐसे विचलित होगी तो बेटी नीरजा को कौन संभालेगा उस पर क्या बीत रही होगी ये सोचा तुमने। उसके सामने तो कितना बड़ा दुख आया है जिसका वो सामना कर रही है।
अभी एक साल पहले ही तो कितनी धूमधाम से नीरजा और विशाल की शादी हुई थी। कितना खुश थे सब लोग । नीरजा तो विशाल को पाकर बहुत खुश थी । सास-ससुर और एक देवर छोटा सा परिवार था उनका । नीरजा के पति विशाल इंजीनियर थे सब अपने परिवार में बहुत खुश थे इतना अच्छा ससुराल पाकर नीरजा तो फूली नहीं समा रही थी।
सास-ससुर भी नीरजा को बहुत प्यार करतें थे । नीरजा की सांस कहती थी मेरी बेटी नहीं है बेटी की बड़ी इच्छा थी पर भगवान ने दो बेटे ही दिए लेकिन अब तुम आ गई हो तो बेटी की कमी पूरी हो गई। हंसी खुशी से जीवन बीत रहा था ।
एक दिन सुबह सुबह विशाल मम्मी के पास आया बोला मम्मी देखो तो नीरजा को क्या हो गया है उल्टियां लग रही है उसको । नीरजा की सांस मुस्कुरा कर बोली कुछ नहीं बेटा परेशान न हों जाओ डाक्टर के पास ले जाओ उसको । डाक्टर ने बताया नीरजा प्रेगनेंट हैं ।अब तो सबकी ख़ुशी दोगुनी हो गई ।
पापा बनने की खुशी से विशाल रोमांचित हो जाता ।लेटे लेटे विशाल नीरजा के बालों में उंगलियां फिराते हुए विशाल ने कहा देखो नीरजा मुझे तो तुम्हारे जैसी बेटी चाहिए बेटियां मुझे बहुत पसंद हैं। नीरजा बोली अगर बेटा हो गया तो नहीं नहीं मुझे तो बेटी चाहिए । नीरजा बोली वो तो ईश्वर के ऊपर छोड़ दें वो जो देगा वो हमें मंजूर है ।इधर सास-ससुर भी दादा दादी बनने की खुशी में सराबोर हो रहे थे और इधर निर्मला जी और अनिल जी भी नाना नानी बनने की खुशी महसूस कर रहे थे।
अभी नीरजा का चौथा महीना चल रहा था कि कार एक्सीडेंट में विशाल की मृत्यु हो गई।आब तो पूरे परिवार पर जैसे वज्रपात हो गया । नीरजा पर जैसे गमों का पहाड़ टूट पड़ा । सास-ससुर भी बेटे का ग़म सह नहीं पा रहे थे। अचानक ही नीरजा को बेटी मानने वाले सास-ससुर की नजरें फिर गई ।
वो लोग नीरजा को ही दोषी देने लगे कि इसका पैर शुभ नहीं था मेरे बेटे को खा गई । नीरजा को सांत्वना देने की बजाय वो उसके ऊपर दोषारोपण करने लगे । विशाल के दुख से दुखी नीरजा का जीना दूभर हो गया ।एक तो प्रेग्नेंसी ऐसे समय में उसको खुद ही देख रेखा की जरूरत थी पर वो तो दूर उससे कोई ढंग से बात भी नहीं कर रहा था ।घर का माहौल बहुत ही तनाव पूर्ण हो गया था।
निर्मला ने जब एक दिन नीरजा को फोन किया तो वो बहुत रो रही थी नीरजा सास-ससुर के बदले हुए रवैए से बहुत परेशान थी । फिर निर्मला और अनिल जी ने निश्चय किया कि नीरजा को अपने घर ले आए ।अब तो ससुराल में रखने का कोई मतलब नहीं है ।इस समय नीरजा को देखभाल की जरूरत है ।
और इतने बड़े सदमे से उबरने की भी । निर्मला जी ने जब नीरजा की सांस से नीरजा को ले जाने की बात की तो उन्होंने तीखे स्वर में जवाब दिया ले जाइए अपनी बेटीको जब हमारा बेटा ही नहीं है तो इसको यहां रहने का क्या मतलब ।भारी मन से निर्मला और अनिल जी नीरजा को लेकर घर आ गए ।
और आज नीरजा ने एक बेटी को जन्म दिया ।इस बीच ससुराल से कोई भी नीरजा से मिलने या हालचाल पूछने कोई नहीं आया । भाग्य विधाता ने कैसा भाग्य लिखा था नीरजा का ।जब ससुराल से कोई मतलब ही नहीं रह गया तो अनिल और निर्मला जी ने सोचा अभी नीरजा की उम्र ही क्या है , बच्ची को हम लोग पाल लेंगे और नीरजा की दूसरी शादी का सोचेंगे ।
ऐसे कैसे बीतेगा पूरा जीवन पड़ा है ।जो भी कुछ हुआ उसमें नीरजा की क्या ग़लती है । भाग्य विधाता ने उसका भाग्य से ही लिखा था । इसलिए अनिल जी ने निर्मला को समझाया चलो अंदर बेटी से मिल कर आते हैं उसके सामने रोना नहीं तुम रोओगी तो बेटी को हिम्मत कौन बनायेगा । शायद यही लिखा था उसके भाग्य में आगे कुछ और अच्छा होना होगा ।सब ऊपर वाले की मर्जी ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
26 जनवरी