Moral Stories in Hindi : ” बस माँ…अब तो इस घर में मैं रहूँगा या ये…।” हाथ से कोने में खड़े राघव की ओर इशारा करते हुए प्रशांत बोला।
” ये तू क्या कह रहा है प्रशांत….राघव तेरा भाई है…।” राजेश्वरी जी आहत स्वर में बोली।
” हाँ …मगर सौतेला जो मेरा हक…।”
” नहीं बेटा…तुम दोनों ही मेरे आँख के तारे हो…मेरा जो कुछ भी है, उसपर तुम दोनों का बराबर हक है और तुम दोनों तो एक साथ…।” नवल किशोर जी की बात अधूरी रह गई क्योंकि प्रशांत वहाँ से जा चुका था।
नवल किशोर जी की लोहे की दुकान थी जिससे उनकी अच्छी आमदनी होती थी।उनकी पत्नी जानकी एक सुघड़ गृहिणी थी।राघव जब दो बरस का था तब जानकी को तेज बुखार हुआ।तीन दिनों तक वह बुखार में तड़पती रही, किसी भी दवा का उस पर असर नहीं हुआ और एक रात वह अपने नन्हें राघव को रोते-बिलखता छोड़कर भगवान के पास चली गई।
नन्हें राघव की देखभाल कुछ दिनों तक तो उसकी बुआ ने की, फिर रिश्ते की एक ताई ने।उसके बाद बुआ ने उसके पिता से दुबारा घर बसाने को कहा।बेटे की खातिर नवल किशोर जी ने राजेश्वरी से विवाह करके राघव के लिये नई माँ ले आये जिसने आते ही राघव को अपनी गोद में उठा लिया था।
एक दिन राघव स्कूल से आया तो पिता ने उसे बताया कि उसका छोटा भाई आने वाला है।सुनकर वह खुशी-से नाचने लगा था।प्रशांत के जनम के बाद तो उसने माँ को ‘थैंक यू’ भी बोला था।
दोनों बच्चे खूब धमा-चौकड़ी मचाते और राजेश्वरी उन्हें खिलाने- पिलाने में व्यस्त हो जाती।बच्चों के आपसी प्रेम को देखकर नवल किशोर जी पत्नी से कहते कि ईश्वर से बस यही प्रार्थना है कि इनका प्यार यूँ ही बना रहे और मुसीबत के समय वे एक-दूसरे का हाथ थामे रहे।
राघव का बीए का अंतिम वर्ष था।वह पढ़ाई से समय निकाल कर पिता की दुकान पर भी बैठने लगा था।नवल किशोर जी खुश थे कि साल भर बाद प्रशांत भी आ जायेगा, दोनों भाई मिलकर काम करेंगे और वे आराम करेंगे। लेकिन सोचा हुआ कब किसी का पूरा होता है।
एक दिन काम की तलाश में राजेश्वरी का चचेरा भाई महेश आया।नवल किशोर जी उसे अपने साथ दुकान पर ले जाने लगे।महेश की नीयत में खोट था।वह काम में तीन-पाँच करने लगा तो राघव ने उसे पकड़ लिया।महेश तिलमिला गया, उसने राघव के खिलाफ़ राजेश्वरी के कान भरने का प्रयास किया लेकिन राजेश्वरी ने उसे डपट दिया।
तब वह प्रशांत के मन में राघव के सौतेलेपन का बीज बोने लगा।प्रशांत महेश की कूटनीति को समझ नहीं पाया और उसके झाँसे में आ गया।उसे लगा कि राघव अकेले दुकान पर कब्ज़ा करना चाहता है, इसीलिए मुझे हर वक्त पढ़ो-पढ़ो करता रहता है।वह राघव को एक मुसीबत समझने लगा, इसीलिए आज उसने दो टूक लफ़्जों में अपनी माँ से कह दिया कि दोनों में से एक को चुन लो।
राघव को अलग करना, नवल किशोर जी के लिये अपना हाथ काटने के समान था।राघव से उनकी परेशानी देखी नहीं गई तो उसने अपने माता-पिता के नाम एक पत्र लिखा कि घर की शांति के लिये मेरा चले जाना ही उचित है।घर से जा रहा हूँ, दिल से नहीं।अपनी सकुशलता का समाचार देता रहूँगा।पत्र मेज पर रखकर वह देर रात चुपचाप घर से निकल गया।
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विभा गुप्ता