Short Stories in Hindi : खुशी का आज ससुराल में दूसरा दिन था। इन दो दिनों में वह परिवार के लगभग सभी महिलाओं से अनेकों बार कहते सुन चुकी थी कि हमारे यहां के पुरुष औरतों वाली काम नहीं करते हैं। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि किस काम पर नाम लिखा है कि यह मर्दो को नहीं करना चाहिए !”
लेकिन धीरे-धीरे कुछ ही दिनों में वह समझ गई थी कि यहां स्त्री- पुरुष के बीच भेद कुछ ज्यादा ही निभाया जाता है। जब भी कोई काम करने के लिए आता जिसमें अनुराग से वह सहयोग करने को कहती माँजी, दादी या बुआ या ननदें कोई न कोई उसे रोक देता और कहता यह औरतों का काम है पुरुष थोड़े ही करते हैं !
खुशी मन ही मन खीज कर रह जाती थी। उसने बचपन से तो यही देखा था चाहे कोई काम हो घर का हो, बाहर का हो या माँ के किचन का हो । सभी एक दूसरे का बेझिझक हाथ बटाया करते थे। अक्सर उसने पिताजी को भी देखा था माँ के कामों में मदद करते हुए। उन्होंने कभी किसी काम को नहीं कहा की यह औरत करेगी पुरुष नहीं करेगा।
यहां तो सब उल्टा था। इन्हें कौन बताये कि सहयोग से जिंदगी आसान और खूबसूरत हो जाती है। बिना एक दूसरे के सहयोग किये सृष्टि भी नहीं चलती।
आज वह सुबह से किचन में नाश्ते और खाने की फर्माइश पूरी करते करते थक कर चूर हो गई थी। उसके शादी के बाद पहली गर्मी थी। छुट्टियों में दोनों ननदें अपने बच्चों समेत मायके आई हुईं थीं। इन लोगों के अचानक सरप्राइज देने के चक्कर में खुशी का अपने मायके जाना कैंसिल हो गया। इस वजह से वह थोड़ी दुःखी हो गई थी। पर उसने अपने चेहरे पर जरा सी सीकन नहीं आने दिया। वह अकेले जुटी हुई थी सबकी तिमारदारी में।
दोनों ननदें उनके हसबैंड, देवर ,ससुर जी सभी बाहर हॉल में बैठे ठहाके लगा रहे थे। अनुराग पानी के लिए आवाज लगा रहा था। गुस्से में तमतमा कर वह किचन में आया और खुशी को डांटना शुरू किया-” बहरी हो गई हो क्या सुनाई नहीं देता है कब से पानी के लिए चिल्लाए जा रहा हूं।”
तवे से रोटी निकाल रही पसीने से तर -बतर खुशी ने कहा-” ओह्ह मैंने सच में सुना नहीं… आप ले लीजिए पानी फ्रीज में रख दिया है। और जरा सुनिये, डाइनिंग टेबल पर भी पानी का जग और ग्लास रख दीजिये ।तब तक मैं सबके लिए खाना परोसती हूँ। “
तभी बुआ किचन में चली आईं और मूंह बनाते हुए बोलीं-” तुम मुन्ना को बोल रही हो पानी लगाने के लिए… हमारे खानदान में ऐसा नहीं होता! यह सब औरत का काम है समझी। “
खुशी एकदम से गंभीर हो गई और बोली-” जी बुआ जी मैं लगा दूंगी पानी ।पर बुआ जी ऐसा भी तो नहीं है कि पुरुष के पानी दे देने से भूचाल आ जाएगा। “
बुआ के कुछ बोलने से पहले ही अनुराग डांट कर बोला-” खुशी अपने जबान को कंट्रोल में रखो। “
खुशी का सारा मजा किरकिरा हो गया। वह भारी मन से बचा हुआ काम निबटाने लगी। खाना -पीना समाप्त कर वह बिस्तर लगा रही थी तभी अनुराग ने बताया कि कल उसे पार्टी में चलना है।
अनुराग को उसके ऑफिस के दोस्तों ने उसके शादी के उपलक्ष में एक होटल में शानदार पार्टी दी थी। खुशी तो जाना नहीं चाहती थी पर अनुराग के दबाव में जाना पड़ा। इस तरह की तड़क -भड़क वाली पार्टी में वह पहली बार आई थी सो थोड़ी नर्वस थी।
अनुराग ने उसे एक कोने में सोफ़े पर बिठाया और खुद उठ कर दोस्तों के बीच ठहाके लगाने लगा। इसी बीच उसके कुछ दोस्त आए और खुशी के साथ हंसी- मजाक करने लगे। खुशी असहज महसूस कर रही थी इसलिए वह उठ कर अनुराग के पास जाने लगी।
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दूर से ही अनुराग ने देख लिया था। वह वापस से खुशी के करीब आकर बोला-” यहां बैठने में क्या दिक्कत है जो मर्दों के भीड़ में घुसने जा रही हो!”
खुशी कुछ कहने ही जा रही थी कि अनुराग आँखें दिखाते हुए चला गया। बेचारी फिर से जाकर अपने जगह पर बैठ गई। उधर अनुराग हाथ में ग्लास लिए झूम रहा था और इधर उसके बदतमीज दोस्त खुशी पर गंदी गंदी छींटा -कशी कर रहे थे।
जब तक पानी घुटनों तक था तब तक खुशी ने बर्दाश्त किया। लेकिन जब एक दोस्त ने उसका हाथ पकड़ा तब वह बिफर गई।
उसने अनुराग के तरफ मुड़ कर देखा ताकि वह अपने दोस्तों की बदतमीजी देख सके। अनुराग ने कुछ बोलने के बजाय खुशी को चियर्स करने का इशारा किया। अनुराग के इस रूप को देख उसके पूरे शरीर में मानो बिजली का करेंट दौड़ गया हो। वह पति की अनदेखी को अपनी मुट्ठी में भींच इधर-उधर देखने लगी । अनुराग के दोस्तों के ठहाकों से पूरा हॉल गूंज उठा। खुशी अपने गुस्से को काबु नहीं कर पायी उसने अपना बैग उठाया और पार्टी से निकल गई।
पीछे से अनुराग के बोलने की आवाज आ रही थी-” खुशी रुको… कहां जा रही हो? रात का समय है। दिमाग खराब हो गया है क्या ..जो अकेले चल दी…।”
खुशी के ऊपर अपमान का भूत सवार था। ना ही पलटकर कोई जबाव दिया और ना रूकी। आज तो उसके सामने कोई भी आ जाता तो उसका खैर नहीं था। वह पागलों की तरह बाहर बरामदे से होती हुई सड़क पर निकल गई और ऑटो का इंतजार करने लगी। उसने गुस्से में घड़ी भी नहीं देखा कि अभी समय क्या हो रहा है। बहुत देर तक खड़ी अपने आप को कोसती रही क्यूँ वह इतनी दब्बू बन गई है क्यूँ चली आई थी वह पति की बेकार पार्टी में….!
अनुराग खुशी के पिछे सीढियों तक आया था लेकिन नशे की हालत में लड़खड़ा कर वहीं बैठ गया। फिर होटल के वेटर को खुशी के पीछे दौड़ाया । पर एक वेटर ने लौटकर बताया कि नीचे कोई नहीं हैं। अनुराग खुशी के पिछे जाने के लिए अपना कोट सोफ़े पर से उठाने लगा तो उसके दोस्तों ने उसका हाथ पकड़ लिया।
एक ने आँख मारते हुए कहा-” कहां जा रहे हो यार ! औरतों का गुस्सा पानी के बुलबुले की तरह होता है…
घर पहुंचते ही फुट जाएगा। चलो अभी इंजॉय करते हैं। वैसे भी तुम्हारी बीबी छुई-मुई है…हा- हा हा हा….।
इधर खुशी को कोई ऑटो आते नहीं दिखा तो उसने पैदल ही सड़क पर चलना शुरू कर दिया। झुंझलाहट में उसके दिमाग ने समय देखना बंद कर दिया था ।
थोड़ी देर चलने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह रास्ते पर अकेली चल रही है।
संयोग अच्छा था एक पुलिस की गाड़ी उसके बगल में आकर रूकी। गाड़ी से एक महिला पुलिस अधिकारी निकल कर बाहर आई और बोली -” इतनी रात सड़क पर अकेले आने की क्या वजह है?”
खुशी जबाव देने के बजाय रोने लगी। उसे रोते देख एक दूसरे पुलिसकर्मी ने कहा-” मैडम यह लड़की घबराई हुई है देखने से यह कोई नई शादीशुदा लगती है जरूर ही कोई माजरा है। इसे थाने ले चलिए कल सुबह जहां कहेगी पहुंचा दिया जाएगा।”
खुशी बिना किसी विरोध के पुलिस की गाड़ी में बैठ गई। थाने लाकर महिला पुलिस अधिकारी ने उसे अपने केबिन में बैठाया पानी पिलाया और बोलीं-” तुम लकी हो जो पुलिस ने तुम्हें देख लिया वर्ना दो बजे रात में रास्ते सेफ नहीं होते औरतों के लिए।”
इतना सुनना था कि खुशी फिर से फफक पड़ी और अपनी आपबीती सुनाने लगी। जैसे जैसे महिला अधिकारी खुशी की बात सुन रही थीं वैसे वैसे उनकी भृकुटी टेढ़ी होती जा रही थी। अंत में उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा-” ऐसे पुरुषों के पास केवल पुरुष होने का दंभ होता है और कुछ नहीं। “
सुबह के पांच बजते ही दो गाड़ियां थाने के सामने आकर रूकी। एक में अनुराग और उसके दोस्त थे और दूसरे में खुशी के पिता और भाई थे। खुशी के पिता को अनुराग ने ही अनाप -शनाप खुशी के खिलाफ बोल कर बुलवाया था। वे दोनों बहुत घबराये हुए थे।
अनुराग ने खुशी को देखते ही दहाड़ना शुरू किया-” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बिना मुझे बताए होटल से निकलने की!”
अभी वह और भी कुछ बोलता तभी महिला अधिकारी ने जोर से डांटा-” शटअप!”
आगे कुछ बोला तो सीधे अंदर कर दूंगी। अपनी पत्नी की अस्मिता सरेआम उछालने वाला बदतमीज! यहां थाने में खड़े होकर उसकी हिम्मत देख रहा है। जब वह होटल से निकली तब उसके पीछे क्यूँ नहीं आया। रास्ते में उसके साथ कुछ भी हादसा हो सकता था। तब कहां थी तुम्हारी मर्दानगी! जन्म लेने से कोई पुरुष नहीं हो जाता। उसके लिए उसके भीतर कर्म भी होना चाहिए समझे की नहीं समझे। “
अनुराग महिला अधिकारी की डांट से सीटपीटा कर शर्म से नीचे देखने लगा।
फिर महिला अधिकारी मुड़कर खुशी से बोलीं-” तुम्हें जाना है इनके साथ?”
खुशी ने दृढ़ता के साथ कहा-” मैम, मुझे नहीं जाना है ऐसे महापुरुष के साथ… मैं अपने पापा के साथ जाऊँगी ।”
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार
#पुरुष
vm vd