दिव्या(भाग–11) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

“भैया चाय तो ले लीजिए।” चंद्रिका आग्रह करती हुई कहती है।

“नहीं भाभी… आज बिल्कुल इच्छा नहीं हो रही है।” “राघव कहकर रिया के साथ दरवाजे की ओर बढ़ गया।

सुबह दिव्या को तैयार रखिएगा। हो सकता है.. वो सुबह जल्दी जगना और सैर पर ना जाना चाहे। पर आप अपनी ममता को बाहर मत आने दीजिएगा। अभी दिव्या को जिस तरह का स्ट्रेस मिल रहा है, उसमें उसके लिए ताजी हवा बहुत आवश्यक है।” अचानक राघव रुक कर दरवाजे तक साथ चल रही चंद्रिका से कहता है।

“आप निश्चिंत रहे भैया… मैं उसे तैयार रखूँगी।” चंद्रिका मुस्कुरा कर कहती है।

सुबह सच में दिव्या और सोना चाहती थी। माँ के जगाने पर कुनमुनाते हुए गोद में सिर रख कर फिर से सो गई। जैसे कि उसने सभी चिंताएं और दुख छोड़ दिए हों। उसकी मुस्कान में चारों ओर खुशियाँ बिखेरीं हुई सी लग रही थी, जैसे कि सूरज की किरणें सभी दिशाओं में बह रही हो। वैसे भी सुकून की नींद में समय का अत्यंत धीमे धीमे गुज़रना मेलोडियस सा होता है, मानो सपनों की दुनिया भी धीरे-धीरे खुल रही हो। इस सुकून भरी नींद में दिव्या के चेहरे पर अन्तर्निहित सुंदरता और शांति का आभास होता है, जो मन को नयी ऊर्जा और उत्साह से भर देता है, इसका अनुभव लेती चंद्रिका की भी इच्छा हो रही थी कि दिव्या को इतनी प्यारी नींद से ना जगाए, लेकिन उसे राघव की बात याद हो आई।

“उठ जा बेटा… थेरेपी भी तो होनी है.. चाचा जी भी आते होंगे।” चंद्रिका प्यार से उसके कंधे को दबाती हुई कहती है।

ये सुनते ही दिव्या उठ बैठी… मैं तो भूल ही गई थी… और जल्दी जल्दी उठ कर देवी माँ को प्रणाम कर तैयार होने लगी।

दिव्या.. दिव्या… आवाज़ लगाता… आवाज क्या शोर मचाता राघव आ जाता है।

“इतना शोर क्यूँ कर रहे हो। भाई दिव्या को सुनाई देता है। बेटा समझा अपने चाचा को। कान तो खराब नहीं हो गए तुम्हारे चाचा के। जो लोग ऊँचा सुनते हैं.. ऊँचा बोलने भी लगते हैं।” आनंद मजाकिया लहजे में कहता है।

ये सुनकर राघव मुँह बनाता है। आनंद और दिव्या उसके मुँह बनाने पर हँसने लगे।

चंद्रिका हँसी सुनकर बाहर आई और मुग्ध होकर सैर के लिए जाती दिव्या को देखने लगी।

“कभी दिव्या को ऐसे उन्मुक्त हँसते नहीं देखा था। आज उसकी हँसी कितनी स्वच्छ, निर्मल, खुली खुली लग रही है। उसकी हँसी में एक नई रंगत है, जो उसके चेहरे पर समाहित है, जैसे कि सब कुछ अब सहजता से बह रहा है।” चंद्रिका आनंद के कंधे पर सिर रखकर कहती है।

“हाँ.. मन में दबा गुबार बाहर आ रहा है। अब सब ठीक हो जाएगा।” आनंद कहता है।

“प्रियंवदा तुम्हारा शरीर शांत हो गया है। आगे कुछ और बताना चाहोगी।” दूसरे दिन राघव पिछले सत्र के अंतिम चरण से बात आगे बढ़ाता हुआ पूछता है।

प्रियंवदा के चेहरे पर उलझन के भाव आ गए थे, जब उसने कहा, “मुझे कुछ नहीं दिख रहा है… अँधेरा है सामने बस।” उसका जवाब सुनकर राघव और मि. जॉन एक दूसरे को देख कर सिर हिलाते हैं। दोनों ही समझ चुके थे कि दिव्या के पूर्वजन्म का पटाक्षेप हो चुका है। दोनों को दिव्या का चेहरा देख अहसास हो रहा था, दिव्या की आत्मा असीम शक्ति की यात्रा पर है, जहां वो दिव्या नही बल्कि प्रियम्वदा है।

राघव और मि. जॉन ने प्रियंवदा के चेहरे पर उलझन और अद्भुतता के भाव देखकर एक दूसरे को देखा। प्रियंवदा का चेहरा अँधेरे से भरा हुआ था, और उसके बयान से आभास हो रहा था कि उसे जो कुछ दिख रहा है, वह सिर्फ आँखों के माध्यम से नहीं, बल्कि उसके दिल के तथा आत्मा के संबंध से हो रहा है। राघव और मि. जॉन ने यह समझा की दिव्या की पूर्वजन्म की साथी प्रियंवदा है और उसकी आत्मा ने एक नए अवतार में अपनी यात्रा शुरू की है।

अब राघव दिव्या से उसके स्कूल की, बचपन की बातें करता हुआ सम्मोहन से बाहर लाता है।

मि. जॉन दिव्या से इधर उधर की बातें कर विदा लेते हैं।

“आज तो एक घंटे में ही आपने थेरेपी बंद कर दिया।” दिव्या दीवार पर टॅंगी घड़ी की टिक टिक को देखते हुए पूछती है।

“हाँ… क्यूँकि अब तुम्हें थेरेपी की जरूरत नहीं है। अब कल से हम रिकॉर्डिंग सुनेंगे और सुन कर तुम्हारे मन में जो भी प्रश्न… जिज्ञासा आएगी.. वो एक मरीज़ के रूप में तुम बेधड़क पूछना और मैं तुम्हारा डॉक्टर होने के नाते सबका यथोचित उत्तर देकर तुम्हारी जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश करूँगा।” राघव के चेहरे पर फिर से एक बड़ी सी इत्मीनान की मुस्कुराहट आ गई थी।

“कल से क्यूँ.. अभी ही रिकॉर्डिंग क्यूँ ना सुने।” दिव्या जिज्ञासु होकर कहती है।

“क्यूँकि तुम्हारा दिमाग अभी स्ट्रेस में ही है। रिकॉर्डिंग में ऐसी बातें भी हो सकती हैं या तुम्हारे मन में ऐसे प्रश्न आ सकते हैं, जिससे तुम्हारा मेंटल स्ट्रेस बढ़ सकता है। फिर वो बहुत ही हानिकारक हो जाएगा। अभी तुम्हें ये पता है कि कल रिकॉर्डिंग सुननी है, सुनकर उत्तेजित नहीं होना है। प्रश्नों के ज़वाब भी मिल जाएंगे। तो अब तुम कल के लिए स्वयं को मानसिक तौर पर तैयार करोगी। इसमें मैं कोई सहायता नहीं करूँगा, सॉरी।” अपने दोनों हाथ खड़ा करते हुए राघव कहता है।

“पर उस समय तो आपने”… 

“उस समय तुम्हें अपनी हालत का ज्ञान नहीं था तो मदद की जरूरत थी। अब तुम्हें खुद के बारे में ज्ञात है तो खुद की सहायता खुद करोगी। मैं जा रहा हूँ चाय पीने.. तुम भी चल सकती हो.. अगर चाय पीनी हो तो।” राघव फाइल उठाता हुआ सिर को टेढ़ा कर दिव्या की ओर देखकर कहता है।

“ठीक है.. चाय तो नहीं लूँगी। लेकिन अभी आपलोगों के साथ ही बैठूँगी। बहुत दिन हो गए.. लग रहा है जैसे बहुत दिन बाद जगी हूँ।” दौड़ कर दरवाजे की ओर जाती दिव्या कहती है।

दिव्या ने राघव की बातों को ध्यान से सुना, उसे आभास हुआ कि यह एक महत्वपूर्ण समय है। उसने खुद को समझाने की कोशिश करते हुए खुद से सहायता मांगने का निर्णय लिया, वह धीरे-धीरे स्वयं को मानसिक तैयारी में लगाने का प्रयास करना चाहती थी, वह जानती थी कि उसे इस कार्य में राघव की मदद मिलेगी। इसलिए वो सबके साथ बैठने का निर्णय लेती है।

राघव मुस्कुरा कर उसके पीछे पीछे चल देता है।

अचानक दोनों को कमरे से बाहर देख सब हक्के बक्के रह जाते हैं क्यूँकि सभी को अन्य दिन की तरह आज भी अधिक समय लगने की उम्मीद थी।

हाउस हेल्पर सुधा दिव्या को देखकर खुश हो जाती है।

“बिटिया को देखे कितने दिन हो गए थे।” सुधा अपनी खुशी जाहिर करती हुई कहती है।

“मुझे अपना पिछला जन्म जानना है, डॉक्टर साहब । दिव्या बिटिया के बाद मेरा उपचार भी शुरू कर देना।” सुधा राघव की ओर मुड़ कर कहती है।

उसकी बात पर सब हँसने लगते हैं…. 

“बस उपचार ही कराओगी कि कुछ खाने की व्यवस्था भी है।” राघव चुटकी लेते हुए पूछता है।

“जो खाना है बताएं .. तुरंत बन जाएगा, इन हाथों में रोबोट फिट है।” अपने हाथ नचाती हुई सुधा कहती है।

“उस दिन की आलू पूरी बहुत स्वादिष्ट थी। वही बना लो, क्यूँ दिव्या?” राघव दिव्या की ओर देखकर पूछता है।

दिव्या जो कि अपनी माँ से लिपट कर खड़ी थी, उसके चेहरे पर प्यार और सुरक्षा की भावना छाई हुई थी। उसकी आँखों में माँ के प्रति गहरा आदर और विश्वास दिखा रहा था। इस स्थिति में दिव्या के चेहरे पर उम्मीद और साहस की छवि प्रकट हो रही थी।

राघव की बात पर स्वीकृति देती हुई दिव्या अपनी दादी के पास सोफ़े पर जाकर बैठ गई। आज उसे सब कुछ नया नया प्रतीत हो रहा था। उसका चेहरा उत्साह से भरा हुआ था और आज उसे सब कुछ नया और अजीब प्रतीत हो रहा था। दादी के साथ बैठी वह बहुत प्यार से अपनी दादी को निहार रही थी, जिससे उसका दादी के प्रति प्रेमभाव उजागर हो रहा था। उसकी आँखों में खुशी और आत्मविश्वास की चमक थी, जो उसके चेहरे को और भी आभूषित कर रही थी। उसकी मुस्कान में संवाद की मिठास बसी हुई थी और उसने दादी को अपनी नई सोच और उत्साह से भरा हुआ साथ दिखाया। सोफ़े पर दोनों का एक साथ बैठना सुरम्य दृश्य था, जिसमें प्रेम और आत्मविश्वास का सुंदर मिलन दिखा पड़ता था।

“ऐसे क्या देख रही है मेरी बिटिया!” दादी दिव्या के चेहरे को अपनी हथेली में भरती हुई पूछती है।

“पता नहीं दादी.. आज अभी कमरे से निकलने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे बरसों बाद आपलोग से मिली हूँ। बरसों बाद घर लौटी हूँ।” दिव्या दादी के दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर कहती है।

दादी दिव्या के सिर को सहलाते हुए राघव की तरफ चिंतित नज़रों से देखती हैं। राघव थम्स-अप का साइन बनाकर “सब कुछ ठीक है” का आश्वासन देता है।

राघव के चेहरे पर चाॅंदनी सी छाई शीतल रौशनी देख दादी का चेहरा प्रसन्नता से चमक उठा। राघव की मुस्कान में खुशी और संतुष्टि की सूचना थी, जैसे कि उसके हृदय की आंतरिक शांति उसके चेहरे पर रम गई हो।

इतने में सुधा आलू पूरी और चाय ले आई और सब मिलकर आलू पूरी और चाय का स्वाद लेने लगे।

“राघव.. दिव्या कब से अपनी डांस प्रैक्टिस शुरू कर सकती है।” रिया खुद एक चिकित्सक होने के नाते दिव्या की एक्टिविटी के बारे में पूछती है।

मेरे ख्याल से कल और परसों के बाद कोई दिक्कत नहीं आई तो सम्भवतः दिव्या अपने रूटीन में लौट सकती है। राघव आलू पूरी पर एकाग्र होता हुआ कहता है।

ये सुनकर चंद्रिका, आनंद और दिव्या की दादी के चेहरे पर खुशी से भरा हुआ सुकून दिखने लगा।

“आज का डिनर तुम लोग यही करना राघव।” आनंद प्रस्ताव देता है।

“नहीं भैया… थेरेपी की सारी प्रक्रिया हो जाने दीजिए। फिर सब मिल कर पार्टी ही करेंगे ना।” रिया दिव्या को देख मुस्कुराती है।

“बेटा…दिव्या देवी माँ से बात करने की बात कहती है। उसके बारे में कुछ बताया था उसने।” दिव्या की दादी पूछती हैं।

दिव्या(भाग–12) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

दिव्या(भाग–10) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

आरती झा आद्या

दिल्ली

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