hindi stories with moral : मैंने होटल में रूम बुक करवा लिया है अपने लिए . मैं एयरपोर्ट से वहीं चला जाऊंगा शाम को तुम्हारे घर सबसे मिलने आ जाऊंगा… लैपटॉप पर उंगलियां दौड़ाते अनिमेष उर्फ एनी ने कहा तो वरुण आश्चर्य में पड़ गया।
होटल में रूम क्यों बुक किया तुमने एनी हम घर चल रहे हैं घरवालों के साथ रहने के लिए मेरा घर तुम्हारा ही घर है एनी तुम इतना संकोच क्यों कर रहे हो..!!
नो नो ऐसी कोई बात नहीं है वारु लेकिन एक हफ्ते किसी के घर साथ रहना कठिन है… मेरी आदत नही है…मैं अकेले रहना पसंद करता हूं….फिर तुम्हारे घर इतने सारे लोग हैं…. मैं कहां एडजस्ट हो पाऊंगा वहां…..अनिमेष ने हंसते हुए कहा और लैपटॉप ऑफ कर सो गया।
दूसरे दिन उनकी फ्लाइट थी…!
विदेश में नौकरी जरूर करने लगा था वरुण लेकिन हर दूसरे साल अपने घर जाना नही छोड़ता था इस बार अपने सहकर्मी अनिमेष को भी अपने साथ घुमाने ले जा रहा था।
एयरपोर्ट पर वरुण के भाई अरुण बहन वीना और पापा आए थे… वरुण को देखते ही छोटे भाई अरुण ने भैया कह लपक के पैर छू लिए वीना भैया कह गले से लिपट गई … वरुण ने अपने पापा के पैर छू कर प्रणाम किया तो पापा ने जीता रह खुश रह का भावभीना आशीर्वाद देते हुए बेटा कह गले से लगा लिया… सबकी आंखों में हर्ष के आंसू छलक आए थे!
वरुण ने अनिमेष का परिचय सबसे करवाया… तो अरुण ने लपक कर अनिमेष के भी पैर छू लिए ..”भैया आपका स्वागत है यहां”… तो वीना ने भी हाथ जोड़ कर” अनिमेष भैया नमस्ते आपका स्वागत है” कहा और पापा ने भी आगे बढ़ उसके सिर पर हाथ फेर दिया..खुश रहो बेटा बहुत अच्छा किया तुम भी वरुण के साथ आ गए चलो जल्दी से घर चलें वरुण की मां बेसब्री से इंतजार कर रही है….और उसका हाथ पकड़ कर कार की तरफ बढ़ गए।
अनिमेष चकित था सब देख कर इतनी आत्मीयता पाकर वो भावुक हो गया था और होटल जाने की बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया… अभी घर चल कर सबसे मिल लेता हूं शाम को होटल में शिफ्ट हो जाऊंगा उसने मन ही मन सोचा ।
हंसते बतियाते कार का रास्ता तय हो गया और घर आ गया पता ही नहीं चला…!
अनिमेष मां भी तुझ्से मिलकर बहुत खुश होंगी वह घर पर हमारा इंतजार कर रही है … वरुण मां के बारे में बताते हुए गदगद हुआ जा रहा था… दरवाजे पर ही मां खड़ी थी… हाथों में आरती की थाली थी दीप जलाकर उन्होंने आरती उतारी तिलक लगाया फूल छिड़के …. पहले अनिमेष का स्वागत किया आजा बेटा तू पहली बार आया है वरुण तेरी बहुत तारीफ करता है बहुत अच्छा लग रहा है तेरे आने से कहते हुए उसकी आरती उतारी…! फिर वरुण की आरती उतारी …वरुण ने तुरंत मां के पैर छू लिए ” आ गया मेरा बेटा.. कित्ता दुबला हो गया .. खाना नहीं खाता था क्या…” मां ने बहुत लाड़ से कह लिपटा लिया था.. हां मां आपके हाथों का खाना नहीं मिलता था ना इसीलिए.. वरुण की बात सुन मां हंस पड़ी इसीलिए कहती हूं खाना बनाना सीख ले… क्यों सीखूं इस बार तुझे ही अपने साथले जाऊंगा मां .. वरुण हंसते हुए कहने लगा।वरुण की देखा देखी अनिमेष भी मां के पैर छूने से अपने आपको रोक ही नहीं पाया।
अनिमेष मां को और पूरे घर को बहुत ध्यान से देख रहा था…!
दो कमरों का घर था वह..साथ में एक किचन और एक छोटा बैठक कक्ष…बाहर खुला बरामदा और आंगन..!
जन्म से ही विदेशी संस्कृति में पला बढ़ा अनिमेष साड़ी पहने सिर ढंकी मां को अचरज से देख रहा था आरती तिलक सब उसकी उत्सुकता बढ़ा रहे थे।
पर ये भी सोच रहा था कि ठीक ही किया मैने होटल में रूम बुक कर लिया है यहां तो जगह ही नहीं है.. छोटा सा घर है और वैसे ही वरुण के आने से संख्या बढ़ गई उस पर मेरा भी यहीं रुकना मेरी और इनकी दोनों की दिक्कतें बढ़ा देता…..अब होटल चला जाता हूं सोच ही रहा था तब तक वीना और अरुण ने आकर उसका सामान ले लिया और अपने कमरे में ले जाने लगे…”अरे अरे ये कहां ले जा रहे हो …मुझे जाना है… कहता ही रह गया तब तक दोनों चले गए थे… उनके पीछे पीछे गया तो कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था एक फोल्डिंग पलंग बिछा हुआ था वहां और एक पढ़ने वाली टेबल थी जिस पर वीना और अरुण पढ़ते थे!
यहां क्यों ले आए सामान!!
भैया आप यहीं रहेंगे अब इसी कमरे में!!
इस कमरे में कैसे सोएंगे हम चार लोग सोच ही रहा था कि मां की आवाज आने लगी
आनी कहां हैं बेटा आजा जल्दी नहीं तो ये वरुण सब खा जायेगा ….मेथी की कचौरियां साथ में ढेर सारे अचार … गाजर का हलवा … अदरक तुलसी वाली चाय… अनिमेष देखता ही रह गया .. भैया देखने की नहीं खाने की चीजे हैं सभी कहते हुए अरुण ने एनी की प्लेट लगा के पकड़ा दी थी।
ये लो बेटा गरम गरम खाओ कहती हुई मां ने दो कचौरी उसकी प्लेट में और डाल दी… ।
नहीं नहीं मैं ये तेल वाली चीज नही खाता हूं … इतनी सारी तो बिलकुल नहीं खाऊंगा…. अरे एक खा के तो देख यार वरुण ने हंसते हुए उसे प्लेट पकड़ा दी…..नही नहीं करते हुए भी अनिमेष खाता ही जा रहा था क्या स्वाद है इन कचौरियों में कभी नहीं खाया मैंने उसके मुंह से निकल पड़ा था साथ में चाय भी लो तो और मजा आएगा पापा ने चाय का गिलास उसे पकड़ाते हुए कहा तो हंसते हुए उसने गिलास पकड़ भी लिया ।
अरे वरुण भैया के लिए वो बोन चाइना वाला बड़ा सा कप लाए है पापा गिलास में क्यों दे रहे हैं…वीना ने जल्दी से पापा को टोका और आकर वरुण के हाथ से गिलास लेने लगी लेकिन तब तक वरुण ने हंसकर गिलास को मुंह तक पहुंचा दिया था… वास्तव में क्या स्वाद है चाय का…. गिलास से पी रहा हूं या फिर मां के हाथ का असर है या इतना आत्मीय वातावरण है…!! अरुण और वीना का भैया भैया का अपनत्व घोलता संबोधन … मां पापा का स्नेहिल अनुराग व्यवहार … सब कुछ मन को मुग्ध कर रहा है जैसे दिल को सुकून मिल रहा है … सच में घर तो ऐसा होता है.!
वीना मां के साथ कचौरी और चाय बनवाने में और सबको प्लेट में परोस कर खिलाने में हंस हंस कर लगी थी पापा सभी का ध्यान रख रहे थे… अरुण सबको पानी दे रहा था..!अनिमेष को अपना घर ध्यान आ रहा था… किचन नौकरों के हवाले बड़ी सी डाइनिंग टेबल में शांति और सभ्यता से छुरी कांटे से खाना खाते रहना किसी को किसी की प्लेट से कोई मतलब नहीं सिर्फ अपनी प्लेट और नपी तुली बातें…!!
नाश्ता खत्म होते ही अरुण ने कहा भैया अब आप लोग थोड़ा आराम कर लीजिए और उसे अपने कमरे में ले गया…अनिमेष ने देखा वह फोल्डिंग पलंग नदारद था अब वहां पूरी फर्श में गद्दे बिछे हुए थे साफ झक्क चादर हाथ की कढ़ाई की हुए तकिया कवर वाली तकिए….!सब कुछ बेहद साफ सुथरा सलीके से संवारा हुआ।
संकोच में पड़े अनिमेष का हाथ पकड़ कर सोहन ने बिस्तर पर बिठा दिया भैया आराम कर लीजिए… और धीरे से दरवाजा बंद कर चला गया।
पूरे कमरे में अगरबत्ती की भीनी भीनी सुगंध ….आत्मीयता से सराबोर नाश्ता उसके दिल दिमाग को अजब सी ताजगी दे रहा था… जल्दी ही वह गहरी नींद में खो गया था।
नींद खुली तो शाम हो गई थी …
वरुण सबके लिए लाए गिफ्ट दे रहा था जिसे सभी बेहद खुशी के साथ ले रहे थे और पापा सब तरह के फल काट रहे थे ।
अरे अनिमेष थकान उतर गई होगी अच्छी नीद ले ली तुमने कई बार हम लोग तुम्हें बुलाने गए थे खाना खाने के लिए पर तुम्हारी नींद तोड़ने का मन नहीं किया आओ अब ये फल खाओ फिर सीधे डिनर ही कर लेना..!पापा ने उसे पास बिठाते हुए कहा।
तुम तो सोते ही रह गए जल्दी करो तुम्हें जाना भी तो है होटल में रूम जो बुक करवाया है तुमने…वरुण चिढ़ाने के लिए बोल उठा।
कहां जाना है किसे जाना है कौन सा रूम … अचानक मां आकर पूछने लगी और अनिमेष के हाथ में फलों की प्लेट पर घर का बना बुकनू छिड़कने लगीं।
नहीं किसी को कहीं नहीं जाना है मां वो .. वो …अनिमेष मां के सामने हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
इसने होटल में रूम बुक करवाया है मां ये वही रुकेगा इसको अभी जाना है वरुण ने जोर से कहा तो पूरे घर में सन्नाटा छा गया ।
क्यों भैया होटल में क्यों !! घर में क्यों नहीं बहुत दुखी होकर अरुण ने पूछ लिया।
देख ले बेटा जिसमे तुझे सुविधा हो तुझे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.. …पापा ने गंभीर पर उदास स्वर में उसके पास आकर कंधे पर प्यार भरा हाथ रखते हुए कहा..!
हमारा घर छोटा है .. है ना भैया इसीलिए आप जा रहे हैं वीना की आंखों में तो आंसू ही आ गए।
… नहीं वीना मेरी बहन.. हमारा घर छोटा नहीं है।घर छोटा बड़ा नहीं होता घर तो घरवालों से होता है उनके दुलार से होता है जहां मां का असीम ममत्व पापा बेहिसाब दुलार और भाई बहनों का अतुलित प्यार हो …वह घर छोटा कैसे हो सकता है… बहुत बड़ा बहुत बड़ा है यह घर.. असल में तो घर किसे कहते हैं यह बात यहीं आकर मैंने जानी…एक दूसरे का आत्मीय ख्याल एक दूसरे के साथ हर सुख दुख में साथ जुड़े रहना ही तो घर होता है ..तुम सबके दिलों जैसा विशाल बड़ा और आत्मीयता से सुगंधित है घर.. दिलों में जगह होनी चाहिए….. इसे छोड़कर मैं होटल जा ही नहीं सकता ….!अनिमेष का स्वर भावुक हो उठा था।
देख बेटा तू तो वरुण ही है हमारे लिए क्या वरुण हमें छोड़कर होटल में रुक सकता है ..वैसे ही तू है.. पास आकर मां ने भी उसे लिपटा लिया और वरुण ने भी।
और एक बार फिर से पूरा घर घरवालों के उल्लास से गूंज उठा।
अगला भाग
घर की मिठास (भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव: hindi stories with moral
लतिका श्रीवास्तव
घर तो घर होता है। लेकिन आज की कुनबा संस्कृति हमारे घरों को तोड़ चुकी है। जो हमारे समाज की सबसे बड़ी पूंजी थी वह लुट चुकी है। काश! हम सभी फिर से इसे सहेज सकते….
बहुत सुन्दर भावपूर्ण कहानी
लतिका जी धन्यवाद, बहुत ही सुंदर रचना। बहुत ही सात्विक और सरल शब्द संयोजन। मन को हर्षित और दिल को बहुत सारा सुकून देने वाली रचना गढ़ने के लिए हृदय से धन्यवाद।
Beautiful ishwar aisa ghar sabko de
बहुत ही सुन्दर रचना ।काश हम भी घर में ऐसा वातावरण बना पाते ।बहुत बहुत आभार ।
बहुत ही प्यारी कहानी है जो बताती है कि परिवार किसे कहते हैं।
अदभुत सुगंध वाली कहानी
Asli Ghar ki kahani ko baya kar diya. Wah ji wah!
Very emotional and heart touching story
Lekhak ko Koti koti Naman
लाजवाब,सरल भाषा में सुंदर रचना।
आप ऐसे ही लिखते रहें, हमें अच्छा लगा।
शाबाश।
शुभकामनाएं
कहानी में अरुण का नाम आगे चलकर सोहन हो गया है।
भावना विगलित व आज के स्वार्थ पूर्ण वातावरण में आकाश कुसुम सा पर सुन्दर, सुखद अहसास । साधुवाद ।
Excellent . Keep on writing such stories. 🌹🌹