Moral Stories in Hindi : सुशीला जी सुबह उठती है और अपनी भाभी को रसोई में काम करते हुए देखकर भड़क जाती है,” ये क्या हेमा ! बहू के होते हुए तू रसोई में चाय बना रही है, अब तो बहू आ गई है, उसे उठा, हम तो ससुराल में चार बजे उठ जाते थे, और तेरी बहू तो साढ़े पांच बज गई है और अब तक सो रही है।”
अपनी बड़ी ननद की बात सुनकर सुशीला जी तसल्ली से बोलती है,” जीजी, अपनी भाभी के हाथ की चाय पी लीजिए, फिर बहू को केवल चाय बनाने के लिए जल्दी उठाऊं, ये तो सही नहीं है, वो भी तो रात को देर से सोई थी, फिर इस उम्र में नींद भी गहरी आती है, अभी जब तक कोई जिम्मेदारी नहीं है, सो लेने दो, यही तो दिन है, फिर बच्चे हो जायेंगे तो सो ही नहीं पायेंगी।”
ये सुनकर सुशीला जी चिढ़ जाती है,” अरी भाभी! तूने तो आते ही बहू को सिर पर चढ़ा लिया है, ध्यान रखना ज्यादा भारी ना पड़ जायें।”
हेमा जी कहती हैं,” मैंने बहू को बेटी माना है, सिर्फ दिखावे के लिए नहीं कहा है, अपने मन से कहा है।”
सुशीला जी नाक मुंह सिकोड़ते हुए चाय पी लेती है, और अपनी माला जपने और पूजा में लग जाती है।
सात बजे करीब रश्मि उठकर आती है,” बुआ जी प्रणाम, आशीर्वाद दीजिए!!
अपनी बुआ सास की जरा भी फ्रिक नहीं है तुझे? अब उठी है तो कब नाश्ता बनायेगी? चाय-पानी के काम तो तेरी सास ने निपटा दिये है, अब तू नाश्ता तो बनाकर खिलायेगी, या वो भी नहीं, सुशीला जी ने रश्मि को ताना दिया।
“बुआ जी आप जो कहेंगे वो बना दूंगी, बस आप बताइए, आपको क्या खाना है? रश्मि मुस्कराते हुए बोली।
“मुझे तो तेरे हाथ की कचौरियां खानी है, ये सुनते ही रश्मि के हाथ-पैर फूल गये, उसे कचौरियां ढंग से बनानी नहीं आती थी।
सुशीला जी ने हेमा जी को भी रसोई में जाने नहीं दिया।
अंदर रसोई में रश्मि यूट्यूब से देखकर नाश्ता बनाने में जुट गई, काफी देर बाद हेमा जी किसी बहाने से रसोई में आई उन्होंने मसाला चखा तो कचौरी के मसाले में नमक-मिर्च काफी तीखा हो गया था, शायद रश्मि ने दो बार डाल दिया था और कचौरियां काफी कड़क बनी थी, शायद रश्मि उनमें मोयन डालना भुल गई थी।
बाहर की दुकानों के कचौरी का स्वाद तो सुशीला जी को पता था, अब ज्यादा समय भी नहीं था, सुशीला जी को भूख लग रही थी, हेमा जी ने अपनी सोसायटी के फूड ग्रुप में मैसेज डाला, उसमें उन्होंने मैसेज देखा कि सुबह के नाशते में कचौरियां उपलब्ध है, ये मैसेज पढ़कर हेमा जी ने तुरन्त ऑर्डर किया और ड्रांइग रूम की बॉलकोनी से लाने को कहा, जो पड़ोस वाली की बॉलकोनी से लगभग जुड़ी हुई थी, उन्होंने डिलेवरी पड़ोसन के यहां करने को कहा।
पन्द्रह मिनट में कचौरियां आ गई, इतने में रश्मि ने हलवा बना लिया।”
रश्मि ने फटाफट नाश्ता लगा दिया, उसकी बुआ सास को कचौरियां बहुत ही पसंद आई, और वो खा-पीकर नीचे बाग में धूप में टहलने को चली गई।
रश्मि ने अपनी सास को बहुत धन्यवाद दिया,” मम्मी जी आज तो आपने मुझे बचा लिया, वरना बुआ जी तो सब जगह मेरी जग-हंसाई करवा देती।”
“बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो, आखिर मै तुम्हारी जग-हंसाई कैसे होने देती? जीजी तो पूरे खानदान में ये बात फैला देती, मुझे पता है तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो, और आज थोडा सा मसाला ज्यादा हो गया, मैने कचौरियां चखी तो पता लगा ये तो जीजी कभी नहीं खा पायेंगी, जिस तरह एक मां अपनी बेटी की कमियां ढकती है, बस वो ही फर्ज मैंने निभाया है,
तुम्हारी कमी को छुपा दिया, बेकार ही जगत भर में ढिंढोरा पीटने से कुछ नहीं मिलता है, ये सब मैंने बहुत सहा है, जब मैं बहुत छोटी थी, तब मेरी शादी करवा दी गई, मुझे ढंग से खाना बनाना भी नहीं आता था, जरा सी रोटी टेढ़ी-मेढ़ी बन जाती या कच्ची रह जाती, मेरी सास पड़ोसियों को वो रोटी दिखाने जाती थी,
हलवे में रंग नहीं आता तो मै हंसी का पात्र बनती थी, सब्जी अच्छी नहीं बनती तो मुझे जलील किया जाता था, इन सबसे कुछ ठीक नहीं होता था बल्कि मुझे खाना बनाने में ही घबराहट सी होने लगी थी, और अपनी सास से मै डरने लगी थी, समय बीता मैंने अपनी सास की सेवा तो बहुत की लेकिन उनकी मन से मै कभी भी इज्जत नहीं कर पाई।”
हेमा जी अपनी आंखें भिगोते हुए बोली,” रश्मि मैंने दिल से तुम्हें बेटी माना है, जिस तरह एक मां बेटी के साथ रहती है, व्यवहार करती है, वैसा ही किया है, फिर बहू हमें मां तभी मानेगी जब हम उसे पहले बेटी बनायेंगे, केवल किसी भी तरह के कपड़े पहनने की छूट देने से, और नौकरी करने की आज्ञा देने से ही बहू बेटी नहीं बन जाती है। बहू को बेटी बनाने के लिए उसकी छोटी से छोटी परेशानी को उसके कहने से पहले ही सास समझ जाएं और उसे सुलझा ले, बिल्कुल वैसे जैसे कि एक मां करती है।”
रश्मि अपने सास के गले लग गई, उसे लगा जैसे वो उसकी आपनी मां का ही आंचल हो।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
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