राघव आकर सीधा अपने कमरे में चला गया। उसे परेशान देखकर रिया भी पीछे- पीछे कमरे में आ गई।
“क्या बात है राघव? बहुत परेशान हो और आते ही दिव्या की फाइल्स लेकर बैठ गए। दिव्या ठीक तो है ना।” रिया राघव को फाइल्स में सिर घुसाए देख पूछती है।
दिव्या के स्कूल गया था रिया। उसकी तबियत बिगड़ गई थी वहाँ।” राघव बिना सिर उठाए कहते हैं।
“तुम अकेले गए थे।” रिया फिर से पूछती है।
“नहीं, आनंद और भाभी भी गए थे।” राघव कहता है।
अब कैसी है दिव्या? भाभी ने एक बार बताया था कि स्कूल में ऐसा कभी नहीं हुआ था।” रिया राघव से कहती है।
“हाँ… उसकी टीचर ने बताया कि उस समय वो अंतःपुर और हरम के बारे में बता रही थी तभी दिव्या को दौरा पड़ा।” राघव सिर उठा कर रिया की ओर देखकर कहता है।
“ठीक है, तुम देखो। तब तक मैं लंच लगाती हूँ। देखूँ विमला ने आज क्या बनाया है।” रिया राघव के बालों में हाथ फेरती हुई कहती है।
“हूँ.. मैं आनंद से बात करके आता हूँ।” राघव मुस्कुरा कर कहता है।
“हाँ.. हैलो आनंद.. कहाँ हो तुम लोग.. घर आ गए क्या?” राघव फोन पर आनंद की आवाज सुनते ही पूछता है।
“हाँ यार.. तू कहाँ है?” आनंद राघव से पूछता है।
“अभी घर आया हूँ. दिव्या कैसी है? कुछ खाया उसने।” राघव आनंद से दिव्या का हालचाल लेता हुआ पूछता है।
“ठीक है वो…लंच कर लिया है उसने। अभी सो रही है। तू भी लंच करके आराम कर।” आनंद राघव से कहता है।
“हाँ.. मैं शाम के समय आता हूँ। कुछ जरूरी बात भी करनी है।” राघव कहता है।
“ठीक है… मुझे भी दिव्या की कुछ बातें परेशान कर रही हैं। शाम में मिलकर बताता हूँ।” आनंद परेशानी भरे शब्दों में कहता है।
“क्या कह रहे थे राघव भैया?” चंद्रिका आनंद से पूछती है।
“शाम के समय आने की बात कर रहा था। उसकी बातों से लग रहा था जैसे उसके दिमाग में कुछ चल रहा है।” आनंद चंद्रिका को बताता है।
मैं अस्पताल जा रहा हूँ। उस समय जल्दबाजी में अस्पताल से निकल गया था। शुक्र है भगवान का की उस समय अस्पताल में कोई क्रिटिकल नहीं था।” आनंद अपना कोट उठाते हुए कहता है।
शाम के समय राघव, दिव्या को बिना साथ लिए आनंद और चंद्रिका को अपने घर आने के लिए कहता है। राघव और रिया का घर, उनका साथ दिव्या को बहुत पसन्द था। चंद्रिका के लिए दिव्या को साथ आने से मना करना भी कठिन काम लग रहा था। इसका समाधान आनंद ने ऐसे निकाला कि दिव्या के स्टडी टाइम में राघव के घर जाने का फैसल किया।
“हाँ.. ये सही रहेगा। स्टडी टाइम में वो कहीं जाना, कुछ करना पसंद भी नहीं करती है।” चंद्रिका आनंद की बात पर सहमति जताते हुए कहती है।
राघव बाहर आओ। आनंद भैया और भाभी आए हैं।” रिया, राघव को आवाज देती है।
राघव चिंतित सा अपने विचारों में डूबा हुआ, आकाश में चले जा रहे बादलों की तरह इधर-उधर चहलकदमी कर रहा था। उसका चेहरा चिंता से भरा हुआ था और उसकी आँखों में उदासी छुपी थी, इधर से उधर चहलकदमी कर रहा था। उसका मन इतनी भारी चिंता से भरा हुआ था कि वह अपने विचारों में खोया हुआ महसूस कर रहा था, जैसे कि एक अदृश्य बोझ उसके हृदय पर टिका हुआ था। वो इतने तनाव में था कि उसे चंद्रिका और राघव के आने का भी पता नहीं चला।
“कब आए तुम लोग? रिया तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं?” राघव कमरे से बाहर आकर आनंद से पूछता है।
“हमलोग अभी तुरंत आए हैं।” आनंद सोफे पर बैठते हुए कहता है।
“जब से राघव स्कूल से आए हैं, इधर से उधर चहलकदमी ही कर रहे हैं।” रिया आनंद से बताती है।
“इसकी हमेशा की आदत है अत्यधिक तनाव में बैठ नहीं सकता है। कहाँ तुम दोनों भारत छुट्टियों के लिए आए थे और कहाँ हमारे कारण”…आनंद अपनी दोनों हथेलियों को मसलते हुए कहते कहते चुप हो गया। उनके चुप होने से लगा कि उसके लिए खुद भी अपनी भावनाओं का सामना करना मुश्किल हो रहा है। उसका वाक्य टूट गया सा था, जैसे कि उसने खुद को रोक लिया हो।
“क्या हमारे कारण आनंद। तुम्हें तो दिव्या की ये हालत बहुत पहले बता देनी चाहिए थी। फिर भी दिव्या के मन को पूर्णतः पढ़ने की पूरी कोशिश रहेगी।” राघव आनंद की बात पर ज्यादा ध्यान न देते हुए कहता है।
“दिव्या अब ठीक है ना भाभी। क्या कर रही थी अभी?” रिया पूछती है।
“हाँ ठीक है अब। अभी उसके पढ़ने का समय होता है। अभी से वो और उसकी किताबें बस।” चंद्रिका रिया से कहती है।
“चाय बना लेती हूँ।” कहती रिया उठ खड़ी हुई।
“चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ। पकौड़े भी तल लें क्या? राघव भैया को चाय के साथ पकौड़े बहुत पसंद है।” चंद्रिका रसोई में रिया के साथ जाती हुई पूछती है।
“राघव बहुत तनाव में पकौड़े खाना पसंद करते हैं। अब आज पता नही खाएगें या नहीं खाएगें।” रिया कहती है।
“हाँ रिया, तनाव तो है। फिर भी थोड़ी सी बना ही लेते हैं।” चंद्रिका कहती है।
दोनों चाय पकोड़े लेकर आती हैं तो देखती हैं दोनों दोस्त बहुत तल्लीनता से बातें कर रहे थे। बातों की गहराइयों में लिपटे होने के कारण दोनों ने चंद्रिका और रिया को देखकर भी अनदेखा सा कर दिया।
“चाय आ गई है और हमलोगों ने थोड़े पकोड़े भी बना लिए”। चंद्रिका टेबल पर ट्रे रखती हुई कहती है।
“क्या भाभी, मैंने दिव्या के बारे में बात करने बुलाया है, आप इन सब में लग गई।” राघव के चेहरे पर थोड़ी नाराजगी आ गई थी।
“कोई बात नहीं। अब बन गई तो खा लेते हैं।” आनन्द कहता है।
राघव पकौड़ा मुँह में लेते ही खुश हो गया।
आपके हाथ में तो जादू है भाभी। मुँह में जाकर एकदम से घुल गया। पकौड़े के स्वाद में नकारात्मकता और तनाव भी घुलता जा रहा है। राघव पकौड़ा चबाते हुए कहता है।
“चाय और पकोड़े आपके लिए तनाव कम करने की दवा है। आपकी हमेशा की कमजोरी, बातों बातों में आनंद कई बार बता चुके हैं।” चंद्रिका मुस्कुरा कर कहती है। परीक्षा के समय सिर्फ चाय पकौड़े ही तो खाता था। “चाची परेशान हो जाती थी और मेरे मजे होते थे। चाय पकौड़े के एवज में डाँट इसे मिलती थी और मैं आराम से पकौड़े खाता रहता था। कई बार तो चाची खीझ जाती थी और कहती थी पढ़ाई ही छोड़ दे। तब राघव गुस्सा होकर यहाॅं आ जाता था।” आनंद बीती बातों को याद करता हुआ कहता है।
“फिर उस पूरे दिन माते की ड्यूटी लगती थी।” राघव कहता है।
राघव के बोलने के अंदाज पर थोड़ी देर के लिए सभी तनाव भूल कर हँसने लगे।
“रिया.. सीख लो ना तुम भी।” राघव रिया से कहता है।
“तू क्यूँ नहीं सीख लेता? कब तक पकौड़े के लिए परजीवी बना रहेगा। पहले चाची… फिर माते.. और अब बेचारी रिया…. सीख ले.. बना.. खा और सबको खिला।” आनंद राघव की चुटकी लेता हुआ कहता है।
ऐसे ही तनावपूर्ण माहौल में भी हँसी मज़ाक के साथ चाय पकौड़े खत्म होते गए।
“पकोड़े थोड़े और बना दूँ क्या।” चंद्रिका पूछती है।
“नहीं भाभी… बहुत हो गया ये। अब मैं आप दोनों से दिव्या के बारे में बात करना चाहता हूँ। ऐसे भी पहले ही कुछ देर सी हो गई है। वो तो दिव्या की अदम्य इच्छाशक्ति है। जिससे उसने अपने मन को सम्भाले रखा है और अपने जीवन में भी बेहतर कर रही है।” राघव बारी बारी से आनंद और चंद्रिका को देखता हुआ कहता है।
आनंद दिव्या की टीचर ने बताया कि आज वो पहले चीखी या बड़बड़ाई नहीं बल्कि चेतना शून्य हो गई थी। जब उन्होंने दिव्या को आवाज लगाई तब वह चीख कर बेहोश हो गई। उस दिन ढाबे पर भी खुद में ही बोल कर बेहोश हुई थी। इससे पहले कभी खुद में बोलकर बेहोश हुई थी क्या? राघव दोनों से पूछता है।
“नहीं भैया… हम ने कभी दिव्या को खुद से बोलते नहीं देखा है और ना ही हमारे सामने खुद में बोलते हुए कभी बेहोश हुई है।” चन्द्रिका राघव की बात से परेशान सी होती हुई बताती है।
“मतलब कि अब उसका अवचेतन मन अलग प्रतिक्रिया दे रहा है। स्कूल से निकलने के बाद क्या क्या हुआ , दिव्या ने क्या क्या किया? बिना कुछ भूले बताओ।” राघव दोनों की तरफ झुक कर बैठता हुआ कहता है।
“स्कूल से निकल कर हमलोग गाड़ी में बैठे। दिव्या चंद्रिका की गोद में सिर रख कर लेट गई और बोली माँ आज मन थका थका लग रहा है।” आनंद बता रहा था।
एक मिनट.. इससे पहले दिव्या ने होश आने पर कभी कहा था कि मन थका-थका लग रहा है। राघव आनंद को बोलने से रोकता हुआ कहता है।
“नहीं”..चंद्रिका एक छोटा सा उत्तर देती है।
उसके बाद.. राघव पूछता है।
“ये बोल कर दिव्या आँखें बंद कर लेटी रही। हम ने उससे कुछ पूछना उचित नहीं समझा। मंदिर पहुँच कर दिव्या देवी माँ के समक्ष बैठकर रोने लगी।” चंद्रिका बताती है।
साथ ही आनंद ने ध्यान में जाने और दिव्या के कथनानुसार देवी माँ से हुई वार्तालाप सब विस्तार से राघव से बताता है।
“इससे पहले कभी दो घंटे तक ध्यान में बैठी थी?” राघव उनकी बात सुनता हुआ पूछता है।
“जहाँ तक मुझे याद है, इसका जवाब है ’नहीं’… क्यूँ चंदू?” आनंद राघव को जवाब देता हुआ चंद्रिका की ओर देखकर पूछता है।
“नहीं.. इतनी देर तक तो नहीं बैठी थी।” चंद्रिका सोचती हुई कहती है।
“ये भी तो हो सकता है कि अब रोजाना ध्यान करने के कारण वो इतनी देर तक बैठ सकी हो।” रिया इसका एक पहलू बताती हुई कहती है।
“बिल्कुल हो सकता है। लेकिन हम इसे रोजाना के ध्यान से नहीं जोड़ेंगे।” राघव कहता है।
“राघव मुझे एक बात और परेशान करती है कि जब भी ऐसा हुआ है, रिया होश में आने के बाद कुछ भी नहीं पूछती है.. ऐसा क्या सम्भव है राघव?” आनंद, राघव से उलझन भरे भाव के साथ पूछता है।
“हाँ.. हो सकता है। दिव्या का दिमाग नहीं अवचेतन मन कहो, जो अलग अलग तरह से रिएक्ट कर रहा है। ढाबा पर उसने पूछा था कि वो चारपाई पर कैसे आ गई। अब मुझे उसके अवचेतन मन तक पहुॅंच कर सारी जानकारी लेनी होगी।” राघव समझाने की मुद्रा में कहता है।
“कैसे?” ये सुनकर आनंद और चंद्रिका, राघव की ओर देखने लगते हैं और साथ ही सवाल करते हैं।
“सबसे पहले तो कल जाकर स्कूल में अनिश्चितकाल के लिए दिव्या की छुट्टियों के लिए आवेदन दे दो।” राघव आनंद से कहता है।
“अनिश्चितकाल के लिए का क्या मतलब हुआ भैया? क्या दिव्या”…चंद्रिका व्याकुल होकर अपनी बात अधूरी छोड़ देती है।
“राघव चंद्रिका की व्याकुलता कम करने के उद्देश्य से प्रतिक्रिया देता हुआ कहता है, ”नहीं नहीं भाभी, ऐसा कुछ नहीं है। सब ठीक हो जाएगा। मैं जो करना चाहता हूँ, उसमें कितना समय लगेगा, यह निश्चित तौर पर मैं भी नहीं कह सकता। इसीलिए ये आवेदन देना उचित रहेगा।”
“पर दिव्या से क्या कहेंगे?” चंद्रिका व्याकुल स्वर में पूछती है।
“दिव्या से मैं बात करूँगा। उपचार के लिए पहले दिव्या को मानसिक रूप से तैयार करना होगा। मैंने बातों बातों में कई बार दिव्या से पूछने की कोशिश की थी पर वो कुछ भी बताने में असमर्थ रही।” राघव दोनों से कहता है।
“फिर आगे क्या करना चाहते हो राघव?” रिया पूछती है।
“आनंद, भाभी.. ध्यान से सुनिए, अब इसके लिए मुझे हिप्नोथेरेपी ही एक रास्ता दिख रहा है। मैं विस्तार से बताता हूँ.. आनंद अंतिम निर्णय तुम दोनों का ही होगा।” राघव आनंद को समझाते हुए कहता है।
“हिप्नोथेरेपी एक मनोचिकित्सा प्रक्रिया है। इसे सम्मोहन चिकित्सा भी कह सकते हैं। इसमें समाधि के जैसी एकाग्रता की स्थिति हो जाती है। इस स्थिति में रोगी का अपने आतंरिक मन में ध्यान केंद्रित हो जाता है, जिससे वह अपने मन के अंदर छिपी चीजों को स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाने और नियंत्रण के लिए उपयोग कर पाता है। यह थेरेपी आमतौर पर रोगी के अवचेतन मन में दबी दर्दनाक और अन्य भावनाओं, विचारों या यादों का पता लगाने और उन्हें समझने में मदद करती है।” राघव अपनी बात जारी रखते हुए विस्तार से कहता है।
“क्या इससे दिव्या के मन की सारी परतें खुल सकेंगी?” चंद्रिका उम्मीद भरी नजरों से देखती राघव से पूछती है।
“एकमात्र यही मार्ग दिख रहा है फिलहाल और मुझे उम्मीद भी है भाभी।” राघव की ऑंखों में उम्मीद की लहरें दिख रही थी।
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दिव्या(भाग–6) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi
दिव्या(भाग–4) : Moral stories in hindi
आरती झा आद्या
दिल्ली