Moral Stories in Hindi : फोन की घंटी से विमला जी की तंद्रा भंग हुई। विमला जी ने फोन उठाया तो फोन डीएम साहब का था। डीएम साहब ने बधाई दी की आपको समाज सेवा के लिए सरकार की तरफ से आपको नामांकित किया गया है। विमला जी अपनी पुरानी यादों में खो गई कि उनका यह सफर कैसा रहा। वह अपने बचपन में चली गई चंबा के एक छोटे से गांव में जहां वह पैदा हुई। गांव में लड़कियों को उसे समय ज्यादा पढ़ाया लिखाया तो जाता नहीं था।
उन्होंने मुश्किल से पांचवी तक की ही पढ़ाई की थी। इसके उपरांत उनकी शादी मनोहर जी के साथ तय हो गई और फिर शादी के बाद वह चंबा शहर में आकर अपने पति के साथ रहने लगी। मनोहर जी बहुत ही अच्छे इंसान थे व विमला जी उनके जैसा जीवनसाथी पाकर धन्य हो गई थी।
समय ने करवट बदली मनोहर जी और विमल जी के यहां पहली संतान हुई कन्या के रूप में आई, जिसका नाम उन्होंने बड़े ही प्यार से मनोरमा रखा मनोरमा देखने में बहुत ही सुंदर थी जो भी उसे देखता, वह देखता ही रह जाता। लेकिन उस जमाने में लड़की का पैदा होना अच्छा तो नहीं माना जाता था।
उनके ऊपर दूसरे बच्चे का दबाव पढ़ने लगा। विमला जी दोबारा गर्भवती हुई तो तो दोबारा फिर उन्होंने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। इससे पूरे घर में मायूसी छा गई, लेकिन मनोहर जी और विमल जी अपनी दूसरी कन्या संतान पाकर भी खुश थे। लेकिन उनके सास ससुर के दबाव के कारण तीसरी बार फिर गर्भवती हुई इस बार फिर उनके घर कन्या का जन्म हुआ और पुत्र संतान की अभिलाषा में ऐसे करते-करते उनकी पंच कन्याएं हो गई।
अब तो ससुराल वालों ने उनसे बात करनी ही छोड़ दी थी। क्रूर नियति ने तो विमला जी की अभी कठोर परीक्षा लेने थी। विमला जी के जीवन में उसा समय घना अंधेरा छा गया जब उनकी सबसे छोटी पुत्री अनु सिर्फ दो महीने की ही थी तभी उनके पति मनोहर जी का एक्सीडेंट हो गया और वह ईश्वर के पास चले गए।
अब तो विमला जी के ऊपर दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा क्योंकि सास ससुर ने उनको अपने पास रखने से स्पष्ट मना कर दिया कारण सिर्फ इतना कि उनकी पंच कन्याएं थीं। अब तो विमला जी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उन पांच बच्चों को साथ लेकर वह इस स्वार्थ भरी दुनियां में क्रूर नियति का सामना कैसे करें और वह भी तब जब उनकी सबसे छोटी पुत्री अनु तो बिल्कुल दूध मुही थी और सिर्फ 2 महीने की ही थी।
ऐसा नहीं है कि दुनिया में सब लोग बुरे ही होते हैं। कुछ लोगों का साथ भी उनको मिला और जिन्होंने उनको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया क्योंकि उनके पति की जगह उनको नौकरी तभी ही मिल सकती थी जब वह कम से कम दसवीं पास हो। विमला जी के लिए यह एक बहुत ही कठिन और संघर्ष का समय था।
इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनकी बछिया उनके लिए प्रेरणा का स्रोत रही। उन्होनें मनोहर जी के दोस्त अमर जी की सहायता से ओपन स्कूल से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करी और उन्हीं की ही मदद से विमला जी को अपने पति, मनोहर जी के जगह नौकरी मिल गई।
अब उनका यह संघर्ष शुरू हुआ कि वह नौकरी करेंगी तो उनके बच्चों को देखभाल कौन करेगा। उन्होंने कड़े अनुशासन में धीरे-धीरे अपने बच्चों को पालन पोषण शुरू किया और पुन: संघर्षमय जीवन की यात्रा एक नये सिरे से शुरू की।
मनोरमा, अनुपमा, रश्मि, माणिका और अनुराधा पांचो बच्चियां विमला जी के देखरेख में धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। इन प्यारी बच्चियों को वक्त ने समय से पहले ही समझदार व जिम्मेवार बना दिया था। विमला जी ने उनकी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी और सबको एक से एक बढ़कर शिक्षा प्रदान कराई।
मनोरमा एक डॉक्टर बनी व अनुपमा ने लॉ में डिग्री हासिल की। रश्मि ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करी और अपने ही राज्य में डिविजनल इंजीनियर की पोस्ट पर कार्यरत हुई। मणिका पीएचडी करके एग्रीकल्चर साइंटिस्ट बन गई और अनुराधा ने शिक्षिका बनकर विद्यालय में पढाने का निर्णय लिया। विमला जी ने एक-एक करके अपनी सब बच्चियों को उच्च शिक्षा प्रदान करवाकर उनको आत्मनिर्भर बनाया।
फिर विमला जी अपनी सब बच्चियों की शादी अच्छे-अच्छे पदों पर कार्यरत व्यक्तियों से कराई। अब सब जगह विमला जी की ही वाह वाही हो रही थी। इसके साथ-साथ वह लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए समाज में कार्यरत थी। पिछड़े इलाकों से लड़कियों की शिक्षा दीक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक संस्था की भी शुरुआत करी और इस तरह से समाज में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा दीक्षा पर बहुत काम किया अब आसपास के लोग भी उनके संघर्ष व हिम्मत की मिसालें देते नही थकते।
अब जब भी विमला जी अपने बीते हुए कठिन समय व संघर्ष को सफलतापूर्वक जीने के बारे में सोचती हैं तो उनके चेहरे पर संतोष की लकीरे उभर आती हैं कि उन्होनें समाज में संघर्ष की एक मिसाल कायम की व और लोगों और विशेष रूप से लड़कियों के लिये एक अनूठी मिसाल कायम कर समाज में एक अपनी एक अलग पह्चान स्थापित की!
माई के नाम से पुकारने लगे और उनका सम्मान भी देने लगे अब उनकी पहचान माई के नाम से पूरे चंबा में बन गई थी और उनकी इसी कोशिश को सरकार ने नारी शक्ति सम्मान की घोषणा करी तभी पांचो बच्चियों ने आकर उनको गले से लगा लिया और अविरल अश्रुओ
की धारा बहने लगी !
प्राज्ञी खुराना