Moral stories in hindi : मम्मी जी.. आप मुझे एक बहु समझ लें, मेरे लिए यही बहुत है, बार-बार आप जो यह कहती हैं की बहू… तू मेरी बेटी की तरह है, क्या सच में मैं आपकी बेटी की तरह हूं। आप भी अच्छी तरह जानती हैं की एक बहू कभी भी बेटी नहीं बन सकती, मैंने चाहे कितना भी आपको खुश करने की कोशिश की हो,
हर बात आपकी सर आंखों पर रखी हो किंतु फिर भी आपको मुझ में कोई ना कोई कमी नजर आ ही जाती है! पलक दीदी सुबह 9:00 बजे से पहले कभी नहीं उठती किंतु एक दिन में 7:00 बजे उठी थी तब आपने कितना हंगामा किया था, मेरे एक दिन देरी से उठने पर घर की सारी व्यवस्था चरमरा गई थी, सभी भूखे रह गए थे,
क्योंकि अगर मैं खाना बना कर ना दूं तो किसी को खाना ही ना मिले, जब भी हम कहीं बाहर जाते हैं आप मेरा घूंघट खींच खींच कर नीचे करती रहती हो कि समाज क्या कहेगा, चाहे दीदी ने शॉर्ट ड्रेस ही क्यों ना पहनी हो और उसमें आपको कोई बुराई नजर नहीं आती! मैं यह नहीं कह रही कि आप मुझे और पलक दीदी को एक सा माने किंतु मुझे बस बहू रहने दीजिए ताकि मैं बेटी जैसी उम्मीदें ना पालू, मैं और दीदी दोनों एक साथ प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं
किंतु आप उनके लिए कभी बादाम कभी दूध या कभी गरमा गरम नाश्ता उनके हाथों में देकर आती हैं, और यह सब मैं बनाती हूं किंतु मुझे पढ़ाई करने की छूट तब मिलती है जब मैं घर का सारा काम निपटा लूं। सभी मां ऐसी ही होती है कि वह अपनी बेटी को तकलीफ में नहीं देख सकती किंतु जब कभी भी मैं बीमार पड़ी हूं आपने हमेशा उसे मेरा नाटक समझा है, मेरे उठने में, बैठने में, बाहर आने जाने में, बीमारी में, आपने कब मुझे नहीं टोका,?
मेरे मन में किसी के प्रति कोई नफरत या जलन की भावना नहीं है किंतु मैं चाहती हूं की बस आप यह कहना बंद कर दें कि “बहु.. तू मेरी बेटी की तरह है”! मैं जब ससुराल में आई थी, तब मेरी मां ने मुझे समझाया था की बहू के क्या-क्या नियम कायदे होते हैं और मैंने वह सब पूरे करने की हर संभव कोशिश की है, किंतु मेरी वह कोशिश आपको कभी नजर नहीं आई! मां मैं भी तो कभी दीदी के जैसी थी, ससुराल आते ही मैं कैसे इतनी सारी जिम्मेदारी निभा सकती थी,
न चाहते हुई भी मुझसे छोटी-मोटी भूल हो ही जाती थी, कल को अगर दीदी ससुराल चली जाएगी और उनके भी हर काम में मीन मेख निकाली जाएगी और वह यह बात आपसे कहेंगे तो आपको कैसा लगेगा..? आपको पता है मम्मी जी मैंने यहां की कोई भी बात अपने मायके में नहीं की बल्कि मैं हर जगह यह कहती हूं कि मेरी सासू मां तो बहुत अच्छी है जो मुझे बहू नहीं बेटी मानती हैं! किंतु मां मैं जो अपने मायके को छोड़कर यहां आई तो इसी उम्मीद में आई थी कि मुझे भी ससुराल में बहुत सारा प्यार मिलेगा, मेरी हर ख्वाहिश का ध्यान रखा जाएगा,
मैंने कितनी सारी उम्मीद आपसे लगा रखी थी, किंतु कोई बात नहीं मां.. शायद बहू की किस्मत में ससुराल में उम्मीद करना ही बेकार है! बहू रश्मि के इतना कहने पर उनकी सास बोल पड़ी… रश्मि बेटा…. तुम बिल्कुल सही कह रही हो, हर सास चाहती है की बहू उनकी बेटी बन जाए किंतु वह जिम्मेदारी बहू की तरह निभाए ,
तुम्हें अपनी बेटी बनाने से पहले मुझे भी तो तुम्हारी मां बनना चाहिए था! मैंने तुम्हारे अंदर सिर्फ कमियां देखी और तुम्हारी खूबियों को तो देखना मैं भूल ही गई कि तुम कितना अच्छा खाना बनाती हो, पूरे घर को कभी शिकायत का कोई मौका नहीं देती पर मुझे यह सब क्यों दिखाई नहीं दिया?
मेरे बीमार होने पर तुम भाग भाग का सारा काम करती रही और तुम्हारी बीमारी को मैंने हमेशा नाटक समझा? किंतु बहू आज में दिल से अपनी गलती स्वीकार करती हूं और सच में आज मैं कहती हूं कि बहू तू मेरी बेटी की तरह, है और आने वाले समय में देख लेना मुझ में तू अपनी मां को पाएगी।
अपनी सास की ऐसी बातें सुनकर आज रश्मि बेहद प्रसन्न थी और वह चहकती हुई अपनी सासू मां के गले लग गई।
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी बहु तुम मेरी बेटी की तरह हो