Moral stories in hindi :
“ओहहह!! दादी फिर से वो ही बात, ये पेंटिंग ही तो मेरी पहचान है, मुझे कितने पुरस्कार, मेडल और ट्राफियां मिली है, अगर खाना बनाने में समय बर्बाद करती तो ये सब नहीं कर पाती।”
तभी नेहा जी डांटती है, “मिताली अपनी दादी से ऐसे बात करते हैं, इनसे माफी मांगो और मिताली गुस्से में अंदर चली जाती है।
बचपन से रंगो से खेलती आ रही मिताली की जान इन पेंटिग्स में बसती है, चित्रकारी करना उसका पहला प्यार है, वो अपने जन्मदिन के उपहार में सिर्फ तरह-तरह के रंग ही लेती है, और अपने रंगों की दुनिया में खोई रहती है, इसी के साथ उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है और अब रुक्मणी जी चाहती है कि उसकी जल्दी से शादी हो जायें।
कुछ महीनों बाद शुभम उसे देखने आया और उसने मिताली को पसंद कर लिया, सब कुछ तय होने
वाला था कि मिताली ने कहा कि वो शुभम को अपना कमरा दिखाना चाहती है, ये सुनकर रूक्मणी जी का चेहरा फीका पड़ गया, क्योंकि उन्होंने उसे साफ कह दिया था कि वो लड़के वालों को अपने शौक के बारे में कुछ ना बिताएं, वरना उसकी शादी नहीं होगी।
शुभम मिताली के कमरे में गया और उसका कमरा देखकर चौंक गया, पुरस्कारों से सजा हुआ था, दीवारों पर कमाल की चित्रकारी थी, पूरा कमरा रंगो, कैनवास और ब्रश से भरा था, कुछ पेंटिंग पूरी हो गई थी, कुछ अधुरी ही पड़ीं थी।
“शुभम, मै तुमसे शादी करने को तैयार हूं, पर इसके लिए मै अपना शौक और अपनी पहचान नहीं छोड़ सकती हूं, तुम्हें मूझे इन सबके साथ ही अपनाना होगा, मै तुम्हारे घरवालों का भी सम्मान करती हूं, पर उनके लिए अपना आत्मसम्मान नहीं छोड़ पाऊंगी, मेरा काम ही मेरी पहचान है, और इसके बिना मै जी नहीं पाऊंगी, मुझे खाना बनाना थोडा कम आता है पर मै सीख लूंगी।”
“मैं, एक साफ दिल इंसान हूं, जो मुझे आता है, वो भी मैंने बता दिया और जो नहीं आता है, वो भी मैंने बता दिया है।
शुभम मिताली की बातों और उसकी सच्चाई से बहुत प्रभावित हुआ और उसने शादी के लिए हां कर दी, शुभम के घरवालों को भी कोई दिक्कत नहीं थी।
शादी होकर मिताली ससुराल आ गई, उसके बाद वो पगफेरों की रस्म और ब्राह्मण भोज पर भी अपने
घर गई थी, पर रीति-रिवाज और ससुराल में ज्यादा काम होने की वजह से वो अपनी पेंटिंग्स पर ध्यान नहीं दे पाई, सुबह से रात कब निकल जाता था, उसे पता ही नहीं चलता था, अब उसे अपनी पहचान खोती हुई नजर आ रही थी।
अगले सप्ताह उसका जन्मदिन था, वो बहुत खुश थी क्योंकि शादी के बाद ये उसका पहला जन्मदिन है, ससुराल वाले और शुभम उसे क्या उपहार देंगे, इसके लिए वो बहुत उत्साहित थी, उस दिन रविवार भी था, सुबह उठते ही शुभम ना जाने कहां चले गए, और ससुराल वाले भी सामान्य व्यवहार कर रहे थे, किसी को कोई मतलब नहीं था कि आज उसका जन्मदिन है,
शुभम के साथ सबने बस जन्मदिन की शुभकामनाएं दे दी, किसी ने कोई उपहार नहीं दिया, शुभम वापस लौटकर आयें और दो लोगो को साथ लेकर, गैराज के ऊपर बने कमरे में चले गये, दोपहर को लंच किया और वापस वहीं चले गये, ये सब देखकर मिताली रुआंसी हो गई, धीरे-धीरे शाम हो गई।
तभी शुभम आयें और बोले कि जल्दी से तैयार हो जाओ, मुझे तुम्हें एक सरप्राइज देना है, हम सबको तुम्हें एक सरप्राइज देना है, मिताली बुझे मन से तैयार हुई, सास-ससुर, देवर,ननद और पति उसे गैराज के ऊपर बने कमरे में ले गये, वहां उसकी आंखों से पट्टी हटाई गई तो देखा उसकी सभी अधुरी पेंटिंग्स और रंग, ब्रश और बाकी का सामान वहां पर लाया गया था।
ये देखते ही मिताली की आंखें खुशी से भर आई, वो शुभम की तरफ प्यार से देखने लगी।
“मम्मी के कहने से सुबह से कमरे से सामान हटवाया, यहां की सफाई करवाई, तुम्हारे मायके से सामान मंगवाया, उन्हें जमाया बस सुबह से इसी में लगा था, ये तुम्हारी पहचान थी जो तुम मायके भुल आई थी, पर मै वापस ले आया।”
“बहू, अब ये तुम्हारे हाथों में है, तुम अपनी पहचान कब तक कायम रखती हो, शादी के बाद बहूंए घर गृहस्थी के कामों में उलझकर अपने आपको भुल जाती है, अब ये तुम्हारे हाथों में है, तुम अपने लिए कितना समय निकाल पाती हो, ये हम सबकी ओर से तुम्हें तुम्हारे जन्मदिन का पहला उपहार है।”
मिताली बड़ों के पैर छू लेती है और सबको धन्यवाद देती है, थोड़े ही महीनों बाद वो अपनी एक दिनचर्या बना लेती है, जिसमें दिन के तीन-चार घंटे वो अपनी पेंटिंग्स को देने लगी, आस-पड़ोस के बच्चे उससे पेंटिंग सीखने आने लगे, उसने अपनी सभी अधुरी पेंटिंग्स पूरी कर ली और उनकी प्रदर्शनी भी लगाई, काफी सारी पेंटिंग्स बिक गई।
उसके काम और प्रतिभा को देखते हुए उसे जिला-स्तर पर युवा चित्रकार के तौर पर सम्मानित किया गया और पुरस्कार भी मिला। आज मिताली की अपनी
एक पहचान बन चुकी है, वो किसी की बेटी, बहू होने के साथ-साथ एक जानी मानी चित्रकार भी है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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