अभय प्रताप रेलवे में टी टी थे। दुर्भाग्य से उनको अभी तक संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी। एक साल बाद वह रिटायर भी होने वाले थे घर में वह और उनकी पत्नी सुशीला थी। बच्चा नहीं होने की वजह से वह गली के बच्चों से बहुत प्यार करते थे वह अपनेकालोनी के बच्चों के सुपरमैन थे जब भी वह ड्यूटी से घर आते अपने जेब में बहुत सारा चॉकलेट भर के रखा करते और रास्ते में जो भी बच्चा मिलता उन सबको देते जाते थे इस वजह से गली के बच्चे उनको चॉकलेट वाले अंकल कहा करते थे।
एक दिन सुबह-सुबह जाड़े का दिन था अपने दरवाजे के आगे चारपाई पर बैठे हुए थे उस दिन छुट्टी का दिन था तभी एक 10 साल का लड़का और 6 साल की लड़की बड़ा मधुर ही गाना गा रहे थे और उस पर डांस कर रहे थे। उनके सामने आ गए थे और उनसे हाथ जोड़कर भीख मांगने लगे बाबूजी बाबूजी कुछ दे दो बहुत जोर से भूख लगी है।
अभय प्रताप जी तो बच्चों से प्यार करते ही थे उनको देखकर उनको बहुत दया आई। सबसे पहले तो उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला जी को बुलाकर उन बच्चों को पेट भर खाना खिलाया। उसके बाद उन दोनों को बैठने को कहा। उन बच्चों से पूछा तुम कौन हो तुम भीख क्यों मांगते हो अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है तुम्हारे मां बाप क्या करते हैं। लड़के ने बताया उसके पिताजी किसान थे पिछले साल उन दोनों को छोड़कर उनके पिता और माता ने आत्महत्या कर ली। तो अपने बहन को लेकर शहर चला आया हूँ और तब से भीख मांग कर ही गुजारा करता हूँ और रात को स्टेशन पर सो जाते हैं।
अभय जी लड़के से बोले तुम कोई काम क्यों नहीं कर लेते भीख मांगने के बजाय। लड़के ने जवाब दिया शुरू में बहुत कोशिश किया था लेकिन यहां पर हमारे कोई जानकार नहीं होने की वजह से किसी ने भी हमें काम देने से मना कर दिया कोई ना कोई गारंटर मांग रहे थे। इस वजह से मजबूर होकर हमें भीख मांगना पड़ा।
अभय जी ने बोला आजकल मकई का सीजन है थोक में मकई खरीदो और स्टेशन के बाहर मकई पका कर बेचो। लड़के ने जवाब दिया बाबूजी हम इतने पैसे कहां से लाएंगे की थोक में मकई खरीदेंगे। अभया जी ने लड़के से बोला ठीक है मैं तुम्हें ₹300 देता हूँ और कल सुबह तुम सब्जी मंडी जाना और वहां से मकई खरीदना और कल से स्टेशन के बाहर मकई पका कर बेचना शुरू कर दो और अपनी छोटी बहन को पढ़ने के लिए स्कूल भेजो।
मैं इसका नाम परसों ही सरकारी स्कूल में लिखवा देता हूं। लड़के को भीख मांगना पसंद नहीं था वह भी इज्जत की जिंदगी जीना चाहता था। अभय जी ने बोला दिनभर मकई बेचो और रात में तुम भी नाइट शिफ्ट की स्कूल चले जाओ लड़का तैयार हो गया।
अभय जी ने अपनी पत्नी सुशीला से ₹300 मांग कर लड़के को दे दिया। अभय जी को इस तरह की हेल्प करने में बहुत आनंद आता था अपनी तनख्वाह के आधे पैसे इसी तरह किसी के हेल्प करने में खत्म कर दे देते थे।
अगले दिन वह लड़का सब्जी मंडी गया और वहां से 50 किलो मक्का खरीद के ले आया और उसने पूरे दिन में पूरे मक्के को बेच दिया था अब उसके पास ₹500 हो गए थे शाम को वह ₹300 लेकर अभय जी के पास आ गया और उनके पैसे वापस करने लगा अभय जी ने बोला कोई बात नहीं अभी रख लो जब तुम्हारे पास और पैसे हो जाएंगे तब मुझे मेरे पैसे वापस कर देना लड़का मान गया।
अब रोज बाजार जाता मकई लेकर आता और बेचता उसे काफी आमदनी होने लगी। अभय जी ने उसकी बहन का नाम भी सरकारी स्कूल में लिखवा दिया था। स्टेशन के बगल के ही एक झुग्गी झोपड़ी में अबे लड़के को ₹500 महीने किराए पर कमरा दिलवा दिया था जहां पर रहने लगे।
1 महीने के बाद मकई का सीजन खत्म हो गया फिर वह लड़का अभय जी के पास आया कि बाबूजी अब तो मकई का सीजन खत्म हो गया अब समझ में नहीं आता है कि अब क्या करूं तो अभय जी ने बताया अरे पगले मकई का सीजन खत्म हुआ है ना लेकिन मकई के दाने का नहीं एक पोपकार्न बनाने वाली मशीन आती है उसे खरीदवा देता हूं उसके पैसे मैं दे देता हूं लेकिन तुम मुझे धीरे-धीरे करके दे देना और यह व्यापार शुरू कर दो।
धीरे धीरे उसकी पॉपकॉर्न की बिक्री बहुत ज्यादा बढ़ गई थी लड़का भी पढ़ने में तेज था उनके दिमाग में एक बात आया क्यों ना जो पॉपकॉर्न मैं पेपर मे देता हूं। उसे थैली में पैक करके बेचूँ वह अगली सुबह थैली वाले की दुकान पर गया और उसने इस तरह की थैली बनाने के बारे में बात की। लड़के का नाम रमेश था और लड़की का नाम सीमा था तो उसने अपने पॉपकॉर्न का नाम अपने नाम का पहला अक्षर र और अपनी बहन के नाम का पहला अक्षर सी को मिलाकर “रासी” रख दिया और उस दिन से अपने पॉपकॉर्न का नाम रासी पॉपकॉर्न रख दिया धीरे-धीरे उसका पॉपकॉर्न इतना फेमस हो गए कि वह लोकल दुकानों में भी सप्लाई करने लगा।
इसी बीच अभय जी का रिटायरमेंट हो गया था और वह यहां से अपने गांव के लिए चले गए थे क्योंकि उन्होंने सोचा कि चलो गांव चलते हैं वहां अपने भाई और भाई के बच्चों के साथ रहेंगे।
अब रमेश को भी रोज समय नहीं मिलता था कि वह अभय जी से आकर मिले इसलिए काफी दिन के बाद ही मुलाकात होती थी इस बार जब अभय जी से मिलने के लिए आया तो देखा कि घर में तो ताला बंद है उसके पास उनका कोई पता नहीं था और ना ही फोन नंबर। उसने बहुत प्रयास किया उनका पता ढूंढने का लेकिन उसे नहीं मिल सका।
समय बीतता गया रमेश एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन बन चुका था अब उसके पॉपकॉर्न का शहर के बड़े-बड़े दुकानों व मॉल में बिकने लगे थे। रमेश की शादी भी हो गई और उस पर एक 3 साल का बच्चा भी था।
रमेश की बहन भी पढ़ लिखकर डॉक्टर बन गई थी उसकी शादी इसी महीने थी अपनी बहन की शादी की तैयारी में जुटा हुआ था की उसकी बहन की शादी शहर के एक बहुत बड़े होटल मे होनी थी।
एक दिन रमेश को भी किसी काम से कहीं जाना था स्टेशन पर अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहा था। तभी उसे अभय प्रताप जी दिखे वह दौड़ के उनके पास गया और उनको पैर छूकर प्रणाम किया और उनसे बोला अंकल आप मुझे पहचाने अभय जी ने जवाब दिया नहीं बेटा कौन हो तुम याद नहीं आ रहा है।
रमेश ने उन्हें याद दिलाया अंकल मैं वही रमेश हूं जिसे आपने आज के 15 साल पहले मकई की दुकान खुलवाया था स्टेशन पर। अरे तुम तो पहचान में ही नहीं आ रहे हो और बताओ कैसे हो कैसा चल रहा है तुम्हारा पॉपकॉर्न की दुकान। रमेश ने बोला अंकल अब तो वह दुकान कब की बंद हो चुकी है अब तो हमारे पास पॉपकॉर्न की फैक्ट्री है। आपकी दुआ से मैं अपनी पॉपकॉर्न को रासी नाम के ब्रांड से बेचता हूँ।
अभय जी ने उसकी बहन के बारे में पूछा तुम्हारी बहन सीमा कैसी है उसकी शादी हुई या नहीं हां अंकल सीमा आपकी दुआ से अब डॉक्टर बन गई है और उसकी इसी महीने शादी है।
मैं आपको बहुत दिनों से ढूंढ रहा था लेकिन आपका पता ही नहीं मिल रहा था हमारी किस्मत अच्छी है जो आप हमें मिल गए। अंकल अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपसे एक बात करना चाहता हूं अभय जी बोले बोलो क्या बात है। अंकल हमारा मां बाप तो बचपन में ही गुजर गए मैं चाहता हूं कि मेरी बहन सीमा का कन्यादान आप करें। अभय प्रताप जी ने बिना सोचे ही हां कर दिया यह मौका गंवाना नहीं चाहते थे क्योंकि हिंदू धर्म में कहा गया है कि जब तक एक पुरुष किसी लड़की का कन्यादान नहीं करता है उसका जीवन पूरी तरह से सफल नहीं माना जाता है और वह यह मौका छोड़ना नहीं चाहते थे। हम जरूर आएंगे सीमा की शादी में।
शादी के दिन अभय जी और उनकी पत्नी दोनों लोगों रमेश के घर ऑटो से पहुचे और एक बहुत बड़ा गिफ्ट भी साथ लेकर आए थे। रमेश जब अभय जी को अपने घर पर देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे उसके मां-बाप घर आ गए ।
उसने अपनी बहन को आवाज लगाई और बोला सीमा देखो अंकल आंटी आए हैं सीमा आई और दोनों को पैर छुए और सुशीला जी के गले लगकर रोने लगी ऐसा लग रहा था सीमा और सुशीला सचमुच के मां बेटी हों ।
सीमा रो रो कर कहे जा रही थी कि आप अंकल आंटी अगर आज नहीं होते तो हमारी जिंदगी पता नहीं कहां गुजर रही होती आपकी वजह से ही आज हम यहां हैं अभय जी ने बोले नहीं बेटा सबकी किस्मत बनाने वाला तो ऊपर वाला होता है हम तो सिर्फ उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।
सीमा ने अपने अभय जी और सुशीला जी से बोली अगर आप बुरा ना माने तो आज से हम क्या आपको मम्मी पापा कर सकते हैं। हां क्यों नहीं कह सकती हो। रमेश भी बोला आज से मैं भी आप लोगों को अंकल आंटी नहीं मम्मी पापा ही कहूंगा।
अभय और सुशीला जी को ऐसा लग रहा था ईश्वर ने इतने सालों बाद उनकी फरियाद सुन ली और मां बाप बन गए। यह उनके जीवन का सबसे खूबसूरत लम्हा था। उन दोनों के कान इतने सालों से अपने आपको मां पापा सुनने के लिए तरस रहे थे।
शाम को बारात आई अभय जी ने सीमा का कन्यादान किया। सुबह बारात विदाई का समय आ गया था विदाई के समय सीमा सुशीला जी के गले लग कर इतना रो रही थी जैसे लग रहा हूं सचमुच की मां बेटी आज जुदा हो रही हो। अपनी बेटी सीमा को विदा होते हुए देख सुशीला की भी अपनी आंखों में आंसू नहीं रोक पाए और वह भी जोर जोर से रोने लगे। कुछ देर बाद सीमा की विदाई हो गई थी।
अगले दिन अभय और सुशीला जी भी रमेश से जाने की इजाजत मांगने लगे रमेश ने कहा पापा-मम्मी मैं तो चाहता हूं कि आप लोग भी हमारे साथ ही रहे क्योंकि बच्चों को भी दादा-दादी की कमी महसूस होती है और आपके छत्रछाया में रहकर इनको भी अच्छे संस्कार मिलेंगे। रमेश ने उन दोनों लोग पर रुकने के लिए इतना ज्यादा जिद किया कि वह रमेश को मना नहीं कर सके और वह रमेश के साथ ही रहने लगे।