खानदान और संस्कार – ऋतु गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : आज सूरजमल जी लज्जा, पीड़ा और शर्म से अपनी गर्दन झुकाए बैठे थे , आज जब उनके ही सामने उनके घर की बहू बेटियां पाश्चात्य  परिधानों में कुछ हद तक नग्नता धारण किए लाउड म्यूजिक पर नाच रही थी। इस सब में उनका साथ उनके घर के बेटे दे रहे थे। बोतलें खुल रही थी, नए होटल के इनॉगरेशन का माहौल था। सभी जश्न मना रहे थे पर सूरजमल जी इस जश्न में अपने घर की इज्जत तार तार होते देख रहे थे।

शराब के नशे में आज उनकी पीढ़ी पतन की ओर जा रही थी और वो हाथ पर हाथ धरे वो  ठीक उसी तरह बैठे थे, जिस तरह द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था और उस सभा में सब मौन और विवश थे।बस अंतर इतना ही था वहां लड़ाई धर्म और अधर्म में थी, पर आज उनके सामने उनका एक भी बच्चा धर्म के मार्ग पर नहीं था। सभी कुमार्ग पर चल पड़े थे।जिसे वो सभी आधुनिकता का नाम दे रहे थे वो आधुनिकता नही बस मात्र फूहड़ता  ही थी। यहां उनकी विवशता अपने ही बच्चों की जिद से थी।आज उनके घर के बेटे अपने बच्चों के साथ बैठकर शराब पीने में अपने आपको एडवांस समझते ।

जिस खानदान का नाम कभी उसके संस्कार  के लिए जाना जाता था आज उसी खानदान का नाम जिल्लत से लिया जाने लगा था।

सामने तो कोई कुछ ना कहता,पर सभी पीठ पीछे बातें जरूर बनाते। कहते ऊंचे खानदान  वालों का ये रुप भी देख लो जिस सूरजमल को बहुत गुमान और गर्व था अपने खानदान पर, आज कहां गये वो संस्कार, विचार और व्यवहार।

सूरजमल जी अपने छोटे भाई के साथ होटल के मुहूर्त  में आने वाले मेहमानों का अपनी झूठी और फीकी मुस्कान से स्वागत कर रहे थे पर उन दोनों  के ही दिलों में कहीं गहरे जख्म लगे थे

कभी उनका खानदान  गौशाला बनवाने, प्याऊ लगवाने भूखों के लिए भंडारा करने के लिए जाना जाता था, तब उनके घर में धर्म कर्म के साथ अर्थ यानि पैसा आता था,आज सिर्फ पैसा ही है, धर्म और  कर्म उनके घर से विलग हो चुके थे, शायद अर्थ भी उस घर में अपनी आखिरी सांसे ले रहा है क्योंकि जिस घर में धर्म कर्म के साथ श्री लक्ष्मी आती है वहीं बरकत होती है, और श्री लक्ष्मी के साथ ही सुख शांति समृद्धि आती है। धर्म कर्म के नष्ट होते ही श्री लक्ष्मी भी दबे पांव जाने लगती है, जिसके साथ घर की सुख शांति समृद्धि सब समाप्त होने लगते हैं।

वे यह सब कुछ अपने बच्चों को समझाना चाहता चाहते थे, लेकिन कोई भी इस बात को समझने के लिए तैयार न था । सभी एक दूसरे की होड़ में घर की इज्जत और शालीनता छोड़कर एक से एक कृत्य कर रहे थे। पैसे के पीछे भाग रहे थे। मीट फैक्ट्रियों में पैसा लगा रहे थे। 

सूरजमल जी गहरी सोच में डूबे बस कैसे ना कैसे अपने को सम्भाल पा रहे थे, तभी उनके बरसों पुराने मुनीम जी उनके यहां मुहूर्त में आते हैं ,जिनकी बेटी का रिश्ता कभी सूरजमल जी ने यह कहकर ठुकरा दिया था कि उनका खानदान उनके बराबर का नहीं है।

वही मुनीम जी आज जब अपने सेठ जी सूरजमल जी के घर की बहू बेटियों को यूं शालीनता छोड़कर नाचते  और नशे में लड़खड़ाते देखते हैं ,तो कह ही देते हैं…. सेठ जी क्षमा करना सिर्फ खानदान बड़ा होने से कुछ नहीं होता। संस्कार न हो तो सब कुछ बेकार है, मेरे पास कुछ नहीं  था ,सिर्फ संस्कार थे आज शायद मेरे उन्हें संस्कारों की वजह से मेरी बेटी ने प्रशासनिक सेवा पास की है लीजिए मुंह मीठा कीजिए।

सूरजमल जी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था क्योंकि वे भी अपनी वर्तमान  पीढ़ी को पतन की ओर जाते अपनी आंखों से देख रहे थे।वे सोच रहे कि काश आज ये धरती फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं।

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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