Moral stories in hindi : पार्क के गेट के सामने एक कार आकर रुकी और उसमें से एक बुजुर्ग उतरे और पार्क के अंदर आ गए। कार में से एक नौजवान ने उनको बाय-बाय किया और कर आगे बढ़ गई।
ऐसा तीन दिन से हो रहा था और रमन जी यह नोटिस कर रहे थे कि वह बुजुर्ग इस पार्क में नए व्यक्ति दिख रहे हैं। इससे पहले तो उन्होंने उन्हें कभी नहीं देखा था।
उन्होंने उनसे बात की। नमस्ते जी, मैं रमन गुप्ता, मैं इस पार्क में काफी समय से प्रतिदिन आता हूं पर पहले तो आपको कभी नहीं देखा।
जी नमस्ते, मैं हूं कैलाश । मैं इस शहर में नया हूं। अभी दो-तीन दिन से ही पार्क में आना शुरू किया है।
रमन-“ओह अच्छा! मैं दो-तीन दिन से देख रहा हूं आपका बेटा ही आपको छोड़कर जाता है।”
कैलाश-“जी, बेटा ही समझिए या फिर बेटे से भी बढ़कर। वैसे वह मेरा दामाद है। वह मुझे पार्क में छोड़कर खुद जिम चला जाता है और वापसी में मुझे घर ले जाता है।”
रमन-“बहुत बढ़िया।”
धीरे-धीरे रमन और कैलाश में दोस्ती हो जाती है। अब दोनों आपस में बेझिझक कोई भी बात करते हैं। चाहे फिर घर की बात हो या रिश्तेदारी की या काम धंधे की।
कैलाश का दामाद पंकज उनका बहुत ध्यान रखता था। रोज काम से लौट कर आने के बाद उनके कमरे में जाकर उनकी तबीयत पूछता था और उन्हें किसी चीज की जरूरत तो नहीं यह भी पूछता था। कैलाश जी की आंखों में आंसू आ जाते थे पंकज का प्यार देखकर। वे सोचते थे कि मैं और मेरी बेटी कितने भाग्यशाली हैं जो ऐसा दामाद मुझे मिला।
एक बार पार्क में कैलाश जी ने रमन से कहा-“दोस्त, मैं अब 2 दिन पार्क में नहीं आऊंगा।”
रमन-“क्यों भाई, ऐसा कौन सा काम पड़ गया आपको?”
कैलाश-“गांव में एक बहुत बड़ी जमीन है घर है, उसकी देखभाल के लिए कभी-कभी चला जाता हूं।”
रमन-“अच्छा ठीक है, पर दो दिन में लौट आना, पार्क में तुम्हारे बिना अकेला-अकेला लगता है।”
कैलाश जी और रमन दोनों हंसने लगते हैं।
2 दिन बाद जब कैलाश जी पार्क में लौट कर आते हैं तो रमन जी उनसे कहते हैं -“यार कैलाश, अगर तुम बुरा ना मानो तो मन में एक बात आई है, कह डालूं।”
कैलाश-“दोस्ती में हिचकिचाना कैसा, कहो”
रमन-“आजकल के जमाने में जब बेटे अपने बाप की इज्जत नहीं करते, उनका ध्यान नहीं रखते तब ऐसे माहौल में तुम्हारा दामाद तुम्हारी इतनी देखभाल कैसे कर सकता है। मुझे तो लगता है उसे तुम्हारे बड़ी सी गांव की जमीन और घर की लालच है। उस जमीन को तुम लाखों में बेच सकते हो और घर भी तुम्हारा लाखों का है, ऐसा मुझे तुम्हीं ने बताया था। वह चाहता होगा कि तुम सब कुछ उसी के नाम कर दो।”
कैलाश-“नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मेरे दामाद के पास कौन सी कमी है जो वह मुझे लालच रखेगा। बिजनेस भी अच्छा है।”
रमन-“मेरी बात मानो उसे एक बार परख कर देखो।”
कैलाश जी ने रमन की बात सुन तो ली लेकिन उनके दिमाग से वह बात निकल ही नहीं रही थी। कई दिन तक वह उधेड़बुन में रहे और जब पंकज का व्यवहार देखते थे तो अपनी शंका पर उन्हें शर्म आने लगती थी और दूसरी तरफ आजकल के माहौल को देखते हुए पंकज के अच्छे व्यवहार पर अपने दोस्त की बातों के कारण शक भी होने लगता था उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं और क्या नहीं।
फिर एक दिन वह अचानक अपने गांव चले गए और वापस आकर पंकज से बोले-“बेटा, मेरे गांव में मेरी एक मुंह बोली बहन है उसकी बेटी बहुत गरीब और विधवा है। बड़ी मुश्किल से बच्चों को पाल पोस रही है। मैं सोच रहा हूं कि अपना घर उसके नाम कर दूं। तुम्हारी इस बारे में क्या राय है?”
पंकज-“पापा जी, यह तो बहुत अच्छा विचार है। आपको ऐसा ठीक लगता है तो जरूर कीजिए।”
उन्होंने देखा कि यह बात सुनकर पंकज के माथे पर शिकन तक नहीं आई। वह सोचने लगे कि पंकज अगर लालची होता तो उसे यह सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।
उन्होंने रमन को यह बात बताई। रमन फिर भी मानने को तैयार नहीं था कि कोई दामाद ऐसा हो सकता है जो कि ससुर को अपने घर पर रखे और इतनी इज्जत भी करे, उनकी हर बात माने क्योंकि रमन के खुद के बेटे ने उन्हें कभी इज्जत नहीं दी थी और उन्हें अकेला छोड़कर विदेश चला गया था।
अब रमन जी की बातें सुनकर कैलाश जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उन्हें अपने दामाद पर पूरा यकीन था।
एक दिन शाम को पंकज का एक पुराना दोस्त बहुत वर्षों बाद घर पर आया। पंकज ने उसे सबसे मिलवाया। पंकज ने कैलाश जी से उसे पापा का कर मिलवाया तो वह दोस्त कंफ्यूज हो गया क्योंकि उसने बचपन में पंकज के पापा को देखा था। उसे कंफ्यूज देखकर पंकज की पत्नी प्रिया समझ गई और पंकज के दोस्त को बताया कि यह दरअसल मेरे पापा हैं और हम इन्हीं के साथ रहते हैं।
प्रिया बात करने के बाद चाय बनाने चली गई और कैलाश जी भी वहां से वॉशरूम जाने के लिए उठ गए। कैलाश जी जब उस कमरे के बाहर से गुजर रहे थे तो उन्होंने पंकज के दोस्त की आवाज सुनी। वह पंकज से कह रहा था -“यार पंकज, तूने तो अपने ससुर जी को ही अपने घर पर रख लिया, मैंने तो आज तक ऐसा देखा नहीं।”
तभी पंकज की आवाज सुनाई दी-“यार तू नहीं समझेगा, मैंने अपने स्वार्थ के कारण ससुर जी को यहां पर रखा हुआ है। (अब कैलाश जी कान लगाकर सुनने लगे)
मेरी सासू मां के देहांत के बाद पापा जी ( ससुर जी )अकेले हो गए थे और उनकी चिंता करते हुए मेरी पत्नी प्रिया हर वक्त उदास और परेशान रहती थी। रोज-रोज तो अपने पापा की देखभाल के लिए वह जा नहीं सकती थी। हर बेटी को अपने माता-पिता की चिंता तो होती ही है। मैं प्रिया की खुशी के लिए पापा जी को यहां पर बुला लिया। अब प्रिया टेंशन फ्री रहती है और हर समय खुश रहती है। पहले वह मुझे प्यार करती थी अब वह मुझे बहुत ज्यादा प्यार करती है और हद से ज्यादा मेरा सम्मान करती है।मुझे अपने परिवार में और क्या चाहिए। प्रिया भी खुश, पापा जी भी खुश, बच्चे भी नाना जी के साथ खुश और मैं इन सब के साथ बहुत खुश, यही तो मेरा स्वार्थ है।”
पंकज का दोस्त हैरानी से सब कुछ सुन रहा था और कैलाश जी की आंखों में खुशी के आंसू थे।
पूरी रात वह सुबह होने का इंतजार करते रहे ताकि सुबह-सुबह पार्क में जाकर अपने दोस्त रमन की गलतफहमी को दूर कर सके और उन्हें बता सके कि हां”मैं भाग्यशाली हूं।”हां मैं सचमुच भाग्यशाली हूं।”
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली