Moral stories in hindi : शहर के जाने-माने बिजनेसमैन श्री डी• एल• ताल्लुकदार यानि देवीलाल ताल्लुकदार के आवास ‘ दुर्गा निवास ‘ के लाॅन में बड़ी पार्टी आयोजित की गई थी।वज़ह दो थी, एक उनके बड़े सुपुत्र सुमित को ‘ बिजनेसमैन ऑफ़ द ईयर ‘ के पुरस्कार से नवाज़ा गया था और दूसरा आज उसकी शादी की पहली सालगिरह थी।अतिथियों में रिश्तेदार- मित्र सहित शहर के बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी आमंत्रित थें।
बरसों पहले देवीलाल ताल्लुकदार के पिता ने शहर में आकर थोड़ी-सी पूँजी से आयरन का छोटा-सा कारोबार शुरु किया था।उसी काम को फिर देवीलाल ने परवान चढ़ाया।
दो बेटियों के बाद जब देवीलाल का जन्म हुआ तो उनकी दादी खुशी-से फूली नहीं समाई थी।उनके पिता ने उन्हें अच्छे काॅलेज़ से काॅमर्स की शिक्षा दिलवाई।आगे की पढ़ाई के लिये उन्हें दूसरे शहर भेजना चाहते थें लेकिन उन्होंने मना कर दिया और पिता के कारोबार में हाथ बँटाने लगे।
बेटियों के विवाह के साल भर बाद ही देवीलाल के पिता ने अपने मित्र की बेटी दुर्गेश्वरी के साथ उनका विवाह करा दिया।कहने को तो दुर्गेश्वरी दसवीं पास थीं लेकिन उनकी समझदारी और होशियारी के आगे तो अच्छे-अच्छे भी पानी भरते थें।उनके आते ही देवीलाल ने डी क्लोथ’ नाम का एक शोरूम खोला और डी सीमेन्ट ‘ नाम से सीमेंट की फ़ैक्ट्री भी लगाई।उसी दिन से उन्होंने अपना नाम डी एल कर लिया और पत्नी को दुर्गा नाम से पुकारने लगे।
डी एल को ईश्वर ने पैसा,नाम और शोहरत तो बहुत दिया लेकिन संतान-सुख से उन्हें वंचित रखा।पोते की आस देखते-देखते उनकी माताजी भी स्वर्ग-सिधार गईं।डाॅक्टर भी जब इलाज करके थक गये तब उनके पिता ने उनसे एक बच्चा गोद लेने को कहा।गोद लेने की बात सुनकर उनके रिश्तेदारों ने अपने-अपने बच्चे उनके सामने कर दिये।हम देंगे-हम देंगे कहकर वे आपस में झगड़ने भी लगे।पिता की अनुभवी आँखों ने समझ लिया कि उन सबकी नज़र डी एल की दौलत पर है।उन्होंने बेटे को अनाथालय से बच्चा गोद लेने की सलाह दी।
पिता की सलाह मानकर अगले ही दिन दंपत्ति ने अनाथालय में अर्जी दे दी।दस दिनों के बाद वे जब अनाथालय गये और बच्चों को देख रहें थें तब उनकी नज़र कोने में खड़े एक पाँच साल के बच्चे पर पड़ी जो अपना एक हाथ पाॅकेट में डाले उन्हें टुकुर-टुकुर देख रहा था।न जाने क्यों दुर्गा जी के मन को वह भा गया।उन्होंने संचालिका से उसे लेने की बात कही तो संचालिका बोली,” उसे रहने दीजिए..वो आपके लायक नहीं है,अपंग है।”
” अपंग है…।” दुर्गा जी को आश्चर्य हुआ।उन्होंने उस बच्चे को अपने पास बुलाया और उसका हाथ अपने हाथों में लेने लगी तो उसके दाहिने हाथ में बिना अंगुलियों की हथेली देखकर चकित रह गई।बच्चे की आँखें नम हो गई जैसे समझ गया हो कि मुझे तो कोई नहीं लेगा।डी एल पत्नी के मन को समझ गये।उन्होंने उसी वक्त बच्चे को सुमित कहकर पुकारा और कहा कि आज से हम तुम्हारे मम्मी-पापा हैं।
सुमित को घर लाने के फ़ैसले से रिश्तेदार तो नाखुश हुए, उन्हें उल्टा-सीधा भी कहा लेकिन डी एल के पिता उनका साथ देते हुए बोले,” बेटे…तुम दोनों ने बहुत ही नेक काम किया है, मुझे तुम पर गर्व है बेटे।”
सुमित के कदम ताल्लुकदार परिवार के लिये शुभकारी साबित हुए।एक दिन सुमित खुश होकर अपना रिपोर्टकार्ड माँ को दिखा रहा था कि अचानक दुर्गा जी का जी मितलाने लगा।उन्होंने तुरंत फ़ोन करके पति को बताया। शाम को दोनों जब डाॅक्टर के पास गये तो डाॅक्टर ने चेकअप करके उनकी प्रेग्नेंसी की पुष्टि कर दी।दोनों ने इस करिश्मे का पूरा श्रेय सुमित को दिया।
नौ महीने बाद दुर्गा जी ने एक पुत्र को जन्म दिया,नाम अमित रखा और दोनों बच्चों की परवरिश में वे व्यस्त हो गईं।सुमित तो स्कूल से आते ही अपने भाई के साथ खेलने लग जाता था।
अमित जब चलने- बोलने लगा तो डी एल पत्नी से बोले,” एक बेटी भी भगवान दे देता तो हम रक्षाबंधन का त्योहार भी धूमधाम से मनाते… “
कहते हैं कि दिल से माँगी हुई दुआ ज़रूर कबूल होती है।दुर्गा जी फिर से गर्भवती हुईं और इस बार उन्होंने एक प्यारी-सी बच्ची को जन्म दिया जिसे सुमित ने श्रद्धा नाम दिया।
दुर्गा जी के ससुर अस्वस्थ रहने लगें।अपना अंत समय निकट देखकर बेटे-बहू को बोले,” तीनों बच्चों में ऐसे ही प्यार बनाये रखना।किसी के बहकावे में आकर सुमित के साथ अनर्थ कभी नहीं करना।” दोनों ने उन्हें आश्वस्त किया कि ऐसा कभी नहीं होगा।
बारहवीं पास करके सुमित ने काॅमर्स काॅलेज़ में दाखिला ले लिया।पढ़ाई से जब भी समय मिलता, वह पिता के साथ बैठकर बिजनेस के गुर सीखने लगता।उसकी रुचि देखकर डी एल उसे आयरन शाॅप पर ले जाते,कभी-कभी सीमेंट-फ़ैक्ट्री भी ले जाते।
कुशाग्र-बुद्धि का सुमित जल्दी ही सबकुछ सीख गया और फ़ाईनल की परीक्षा देकर वह पूरी तरह से पिता के काम को संभालने लगा।
अमित और श्रद्धा भी अब बड़े हो रहें थें।अपने तीनों बच्चों के साथ दुर्गा जी बहुत खुश थीं लेकिन उनकी ये खुशी उनकी छोटी ननद को रास नहीं आई।एक दिन भाभी से मिलने आई तो दुर्गा जी के मन में अपने-पराये का बीज बो दिया।वो भी क्या करे, इंसान हैं सो मन डोल गया।इससे पहले कि उनके मन में उठे बवंडर से ताल्लुकदार परिवार में तूफ़ान आये, उससे पहले ही उनके पति ने उन्हें समझाकर शांत कर दिया।
एक दिन डी एल साहब ऑफ़िस का अकाउंट चेक कर रहें थें कि उनकी नज़र सुमित के नाम पर निकाली गई दो बड़ी रकम पर पड़ी।पूछने पर सुमित ने कोई ज़वाब नहीं दिया..बस उसने अपनी निगाह नीची कर ली।एक पल के लिये तो उनका विश्वास डोल गया।अगले दिन उन्होंने मैनज़र को सुमित से कहते सुना,” सर…आपने बड़े साब को सच क्यों नहीं बता दिया कि अमित बाबा…।”
” नहीं- नहीं मैनज़र साहब…सुनकर पापा को दुख होता..और फिर अब तो अमित ने वो सब छोड़ दिया है।”
बाद में मैनेज़र से ये जानकर कि अमित ने अपने भाई से पैसे लेकर जुआ खेला और हारने पर सुमित ने उसकी भरपाई की तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और सुमित के बड़प्पन पर गर्व भी हुआ।
श्रद्धा का ग्रेजुएशन पूरा होते ही दुर्गा जी ने एक सुशील लड़का और अच्छा परिवार देखकर उसका विवाह कराकर उसे ससुराल विदा कर दिया।अब सुमित को विवाह के लिये हाँ कराने लगीं।दो साल से तो वह श्रद्धा की शादी का बहाना बना रहा था लेकिन अब तो उसके पास कोई बहाना न था।
डी एल साहब अपनी आय का कुछ हिस्सा दान में दे दिया करते थें।इसी सिलसिले में सुमित का ‘ कल्याण-केन्द्र ‘ जाना हुआ।वहीं पर उसने स्वरा को देखा जो वहाँ की लड़कियों-महिलाओं को तन्मयता-से सिलाई सिखा रही थी।एक ही नज़र में वह उसे भा गई।संचालिका ने जब उसे बताया कि स्वरा बोल नहीं सकती तो उसने अपने मन को मार लिया।जानता था कि माँ कभी तैयार नहीं होंगी।
एक दिन अमित ने अपने भाई के मन की बात को जान लिया और पिता को बता दिया।दुर्गा जी की तो ना थी लेकिन बेटे की खुशी के लिये उन्होंने हाँ कह दिया।एक सादे समारोह में परिजनों की उपस्थिति में सुमित और स्वरा का विवाह हो गया।
स्वरा ने अपने स्वभाव से जल्दी ही सबको अपना बना लिया।उसकी मुस्कान में ही ऐसा जादू था कि उसके स्वरहीन होने पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।
अब तो वह दो महीने की गर्भवती थी, दुर्गा जी तो फूली नहीं समा रही थीं।फूलों-से सजे मंच पर रखे दो बड़े सोफ़े पर सुमित और स्वरा विराजमान थें।आने वाले सभी मेहमान उन्हें उपहार देकर बधाई देते जा रहें थें।तभी सुमित की दोनों बुआ मंच पर आईं।दोनों ने उनके चरण-स्पर्श करना चाहा तो उन्होंने उन्हें हृदय से लगा लिया और बोलीं, ” हमें तुम्हारी पसंद पर नाज़ है सुमित..स्वरा जैसी बहू पाकर तो हम धन्य हो गये।”
” और हमें देखकर बुआ नानी…।” अपने नन्हें-नन्हें कदमों से मंच पर चढ़ती हुई श्रद्धा की पाँच वर्षीय बेटी परी तपाक-से बोल पड़ी।वहाँ उपस्थित सभी मेहमान उसकी मासूमियत पर हा-हा करके हँसने लगे।
विभा गुप्ता
# गर्व स्वरचित
यह सच है कि शादी-ब्याह संयोग की बात होती है।फिर भी हर इंसान अपनी पसंद के लिये प्रयास करता है।सुमित के पिता के पास बड़े-बड़े अमीर परिवार के रिश्ते आ रहें थें लेकिन सुमित ने उन सभी को छोड़कर एक मूक लड़की स्वरा को पसंद किया, ये ताल्लुकदार परिवार के लिये बड़े गर्व की बात थी जो समाज के लिए एक मिसाल बन गई थी।