Moral stories in hindi : जय श्री राम के उदघोष से मवाना कस्बे का वातावरण गुंजायमान था।एक अजीब सा उत्साह और अपनी अस्मिता को पाने की ललक हर किसी के चेहरे पर देखी जा सकती थी।शायद अक्टूबर 1990 में अयोध्या में मंदिर हेतु सांकेतिक कारसेवा की घोषणा की जा चुकी थी।प्रदेश की सरकार ने इस घोषणा को अपने इकबाल से जोड़ लिया था।सरकार द्वारा भी चेतावनी दी जा चुकी थी कि अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नही मार सकता।दोनो ओर से तैयारियां प्रारम्भ हो चुकी थी।भगवान श्री राम मंदिर के निर्माण समिति के आव्हान पर पूरे देश से कार सेवक अयोध्या की ओर प्रस्थान करने लगे थे।स्थान स्थान पर आंदोलन करने की योजना भी बनने लगी।
मवाना(मेरठ) आंदोलन कर गिरफ्तारी देने के अभियान की शुरुआत मेरे द्वारा किये जाने का निश्चय हुआ था।मेरे लिये यह गौरव का क्षण था। एक अप्रत्याशित घटना क्रम में मेरा छोटा भाई बुरी तरह घायल हो हॉस्पिटल में मेरठ में दाखिल था।आंदोलन की तिथि से पूर्व संध्या को उसका ऑपरेशन नियत हुआ था।मेरे सामने धर्म संकट था कि क्या करूँ?प्रातःकाल कैसे पहुंच पाऊंगा?आंदोलन की शुरुआत ही मुझे करनी थी।रात्रि 10 बजे भाई का ऑपरेशन सम्पन्न हुआ।आईसीयू में मैं उसके पास गया तो वो बोलने की स्थिति में नही था,बस वह मुझे देख रहा था,मैं उसके पास जाकर बैठ गया तो उसने मेरा हाथ कसकर दबा लिया,मानो कह रहा हो भैय्या मेरे पास ही रहना।
11 बजे रात्रि को जब भाई सो गया मैं सजल आंखों से उसे देख कर उसके पास से हट गया।माँ बोली बेटा तेरे से इसकी हिम्मत बनी रहती है तू कहीं जाना नही,इसके पास ही रुक जा।कैसे बताता माँ से कि मुझे राम काज के लिये जाना ही है।मैं चुप रहा, लेकिन कुछ समय बाद ही मैं चुपचाप बिना किसी को कुछ बताये मवाना वापस रात्रि में ही आ गया।
पत्नी ने जब मुझे देखा तो बोली कि आज आपको हॉस्पिटल से वापस नही आना था।मैं अपनी मनःस्थिति किसी को बता नही सकता था।भगवान द्वारा दी दृढ़ इच्छाशक्ति ने प्रातःकाल मुझे आंदोलन प्रारम्भ स्थल पंचायती धर्मशाला पहुँचा दिया।यहाँ का दृश्य तो बड़ा ही विष्मयकारी था।धर्मशाला के बाहर हजारों की संख्या में भीड़,लगभग 50 पुलिस कर्मी उपस्थित थे।धर्मशाला के अंदर कार्यकर्ताओं की भरमार,महिलाएं थाली में रोली चावल पुष्प लिये उत्साह में खड़ी थी।
मेरे धर्मशाला पहुँचते ही पूरा वातावरण जय श्री राम के उदघोष से गूंज उठा। मेरे छोटे से संबोधन के बाद एक सूची बनी जिसमे मेरे नेतृत्व में गिरफ्तारी देने वाले अन्य 35 कार्यकर्ताओ के नाम दर्ज किये गये। मैं और अन्य 35 कार्यकर्ताओ को फूल मालाओं से लाद दिया गया,हमारा मस्तक पर तिलक लगा हमे विदा किया गया।
नारे लगाते जय श्री राम बोलते हुए हम जैसे ही धर्मशाला से बाहर निकले,वैसे ही हमारे चारों ओर पुलिस ने घेरा डाल दिया,और हमे कहा कि वे अब सामने खड़ी बस में बैठ जाये।मैंने इनकार कर दिया और कहा कि हम पैदल चलकर थाने में ही गिरफ्तारी देंगे।पुलिस हमें आगे बढ़ने से रोक रही थी,लगभग 10 हजार की भीड़ की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। वे पुलिस के खिलाफ नारे लगाने लगे थे।किसी भी क्षण लोग अनियंत्रित हो सकते थे,
असामाजिक तत्व मौके का लाभ उठा हिंसा करा सकते थे।तभी ड्यूटी पर तैनात एसडीएम मेरे पास आये और अलग ले जाकर मुझसे इस परिस्थिति को संभालने का अनुरोध करने लगे,मैं भी स्थिति को भांप रहा था,मैंने उन्हें सुझाव दिया कि आप यह बस चौपले के पास खड़ी करा लें,और चौपले तक हम पैदल ही जायेंगे और वहां जाकर हम गिरफ्तारी देकर बस में बैठ जायेंगे।एसडीएम को यह सलाह जंच गयी,क्योकि चौपला धर्मशाला से मात्र 100 मीटर ही दूर था।
हम जय श्री राम के नारे लगाते चौपले तक गये,पूरी भीड़ हमारे पीछे थी,हमारे क्या,भगवान राम के काज के पीछे थी।चौपले पर जाकर मैंने बस की छत पर खड़े होकर अपना जेल जाने से पूर्व का उदबोधन दिया और सबसे आगे आंदोलन चलाने की अपील भी की।
हम पर उस समय की दुर्दांत एक्ट टाडा के अंर्तगत धाराएं लगाई गई।जेल में मुझे प्रेस से वार्ता का दायित्व दिया गया था।तभी एक दिन प्रेस के लोग आये तब उन्ही से अखबार प्राप्त हुआ जिसमें समाचार छपा था कि अयोध्या स्थित ढांचे पर कारसेवको ने भगवा लहरा कर तानाशाह की गर्वोक्ति को कि परिंदा भी पर नही मार सकता,चूर चूर कर दिया था।
ये उस समय के तानाशाह के पतन का तो मेरे लिये गर्व का विषय था,साथ ही आज जब भगवान राम के मंदिर में राम लला की प्राणप्रतिष्ठा होने जा रही है,मुझे संतोष है कि इस यज्ञ में मेरी भी मामूली ही सही लेकिन आहुति तो थी ही।
बालेश्वर गुप्ता,पुणे
अपनी सत्य कथा,अप्रकाशित