अपनों का अहसान कैसा… ये तो मेरा फर्ज था… – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : विराट अपने चाचा के साथ शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा था। उसके पिता गाँव में साझी गृहस्थी में खेती वाड़ी का काम सम्हाल रहे थे, इसलिए गाँव में पढ़ाई की असुविधा के चलते विराट अपने चाचा के साथ शहर आ गया।

कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चलता रहा। लेकिन कुछ दिनों बाद ही  विराट ने एक प्राइवेट नौकरी प्रारम्भ कर दी ताकि चाचाओं (दो चाचा एक साथ रहते थे) के ऊपर अधिक आर्थिक बोझ ना पड़े।

इस तरह वह अपने पढ़ाई वा अन्य खर्च के लिए स्वयं भी कमाने लगा था।

लेकिन कुछ ही दिनों में विराट की अनवरत दौड़ प्रारंभ हो गई। क्योंकि दोनों चाचाओं ने आपस में झगड़ा कर लिया तो वे दोनों एक दूसरे का खरीदा सामान नहीं उपयोग करना चाहते थे ना ही एक साथ बना  हुआ खाना खाते थे।

तब विराट दोनों चाचाओं का अलग-अलग खाना बनाता, फिर झाङू, पोंछा, बर्तन करता, दोनों के कपड़े धोकर, इस्त्री करता। जब सामान खत्म होता तब जाकर दोनों का सामान बाजार से लाता।

इसके बाद वह खुद कॉलेज जाता, फिर नाइट ड्यूटी करके अपने खर्च के लिए स्वयं कमाता।

विराट एक मशीन बनकर रह गया था परंतु यह बात वह अपने माता-पिता को भी नहीं बताता था ताकि उसकी पढ़ाई में कोई बाधा, व्यवधान ना आने पाए।

घर खर्च पर उसके बड़े चाचा अधिक पैसा लगाते थे, अतः वे जब, तब घर पर एक अहसान सा भी जताने में नहीं चूकते थे। जबकि ऐसा भी नहीं था कि विराट मुफ्त की रोटियां तोड़ रहा हो, घर भर के कामकाज करता था, बाहर से भी कमाकर लाता था।

उसका खुद का भी पैसा उसकी पढ़ाई और उसके खर्चे के बाद काफी बच जाता था। हाँ लेकिन यह बात जरूर थी कि यदि वह कहीं अलग किराए पर मकान लेकर रहता तब शायद उसकी तनख्वाह के पैसे उसकी पढ़ाई, घर खर्च और मकान किराए के लिए पूरे ना पड़ते।

पर वह घर के सारे काम भी तो खुद करता था लेकिन यह बात शायद उसके चाचा को दिखाई-सुनाई नहीं पड़ रही थी।

एक बार किसी सज्जन से विराट के चाचा ने अपना अहसानों का पुलिंदा खोल दिया, वो सज्जन शायद विराट के कामकाज और उसकी प्रतिभा के कायल थे। विराट का इस तरह कोल्हू के बैल की तरह काम करना उन्हें पसंद नहीं था लेकिन दूसरे के घर के निजी मामले में वे हस्तक्षेप भी नहीं करना चाहते थे।

परंतु आज उन्हें वह मौका मिल गया था,,, जब विराट के बड़े चाचा ने कहा,,, “सारा पैसा खर्च हो जाता है, पढ़ाई-लिखाई खान-पान, कपड़े-वस्त्रों पर! 

विराट को गाँव से लेकर आ गए उसका भी पढ़ाई-लिखाई का खर्च बढ़ गया!”

तब उन सज्जन ने कहा,,, “विराट का खर्च आपके ऊपर कैसे आया? विराट तो स्वयं अपने खर्चे और पढ़ाई-लिखाई भर को कमा लेता है!

इतना ही नहीं फिर घर भर के कामकाज भी वही सम्हाल रहा है, जब से यहाँ आया है। तुम्हें तो एहसान मानना चाहिए विराट का।”

इतने में ही विराट बाहर से आ गया और उन सज्जन से उसने कहा,,, “चाचा जी अपनों का अहसान कैसा… यह तो मेरा फर्ज है था!”

विराट की बात पर विराट के चाचा और वे सज्जन दोनों चुप हो गए थे। विराट ने आते ही दोनों को चाय पानी दिया और कुछ ही देर में वह फिर बाजार सामान लेने चला गया।

तब उन सज्जन ने कहा,,, “देखा भाई आपने विराट का दिल भी विराट है। वह जो इस घर पर कर रहा है ये उसका फर्ज था फिर तुम्हारा काम अहसान कैसे हुआ?”

“सही कह रहे हैं आप, आज आपने मेरी भी आँखें खोल दीं।” विराट के चाचा ने उन सज्जन से कहा।

उसके बाद से विराट के बड़े चाचा ने, विराट, अपने छोटे भाई और खुद तीनों के काम का बंटवारा कर लिया था। ताकि विराट पर सारे काम का बोझ ना आए और वह अपनी पढ़ाई-लिखाई निर्बाध रूप से कर सके तथा उसे भी थोड़ा आराम का वक्त मिल सके।

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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