वो अब भी है दिल में! ! (भाग 2)- गीता चौबे “गूँज” : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :

सुरभि के पिता खुशी से इतने उतावले थे कि वे उसी वक़्त सुरभि के पास पहुँच कर उसे सरप्राइज देना चाहते थे। वे सुरभि की माँ के साथ खुद ही कार ड्राइव कर चल पड़े। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था… एक तीखे मोड़ पर उन्होनें संतुलन खो दिया और उनकी गाड़ी एक खाई में जा गिरी। पुलिस को उनके पर्स में सुरभि का फ़ोन नंबर मिला जिसके आधार पर पुलिस ने उसे सूचना दी।

सुरभि पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा… बहुत सदमे में थी… जॉब भी नहीं करना चाहती थी। पर , कहते हैं न कि समय बहुत बड़ा मरहम होता है…। धीरे-धीरे सुरभि समान्य होने लगी और अपने आप को काम में डूबा लिया था। मन जब ज्यादा विचलित होता था तो इस खूबसूरत जगह पर आ जाती जिससे उसके मन को बड़ा सुकून मिलता था।

शेखर का साथ पाकर तो जैसे सुरभि खिल उठी थी… जीवन के इंद्रधनुषी सपने सजाने लगी थी अपनी आंखों में… मन ही मन शेखर को अपना सर्वस्व मान बैठी थी पर इजहार करने से डरती थी कि कहीं यह हसीन ख्वाब टूट न जाए।

एक दिन यूँ ही हमेशा की तरह दोनों अपनी पसंदीदा जगह पर एक दूसरे के आमने सामने बैठे कॉफी पी रहे थे। सुरभि उस दिन काफी खुश लग रही थी और सुर्ख रंग के परिधान में तो कयामत ही ढ़ा रही थी। शेखर उसे अपलक निहारे जा रहा था। उसके दिल की धड़कनें एकदम तेज हो गई थीं…। प्रेम-निवेदन का इससे अधिक रोमांटिक मूड और क्या हो सकता है! यही सोचकर अपने दिल की बात सुरभि को बताने के लिए हिम्मत जुटा रहा था… तभी सुरभि अचानक दौड़ते हुए एक बड़े से टीले पर जा पहुंची और दोनों हाथ फैला कर.खुशी में गोल गोल नाचने लगी… उसने शेखर को भी वहाँ अपने पास बुलाया…

हवा काफी तेज चल रही थी… शेखर डर रहा था कि कहीं सुरभि का संतुलन न बिगड़ जाए। सुरभि के बाल लहरा के उसके चेहरे को छुपा रहे थे..सुरभि ने बड़ी अदा से जुल्फों को पीछे की ओर झटका…इस प्रक्रिया में सचमुच उसका संतुलन बिगड़ा और इसके पहले कि वो खाई में जा गिरती, दो बलिष्ठ हाथों ने उसे मजबूती से पकड़ कर अपने बाँहों में भर लिया…।

सुरभि की तो चीख निकल आयी थी… बहुत देर तक दोनों एक दूसरे की बाँहों में यूँ ही पड़े रहे। दोनों की धड़कनें एक दूसरे को स्पर्श कर रही थीं… जो बात जबान पे नहीं आ पायी उसे दो धड़कनें चुगली कर गयीं…। शेखर की आंखों में शरारत और होठों पर मुस्कान खिल उठी… उधर सुरभि के गाल शर्म से लाल टमाटर हो गए… । शेखर ने सुरभि की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसकी बंद पलकों को हौले से चूम लिया …

सुरभि ने भी इसका कोई विरोध नहीं किया और शरमाई सी उसके सीने में अपना मुखड़ा छुपाने लगी…

खामोश लबों ने आँखों के रस्ते एक दूजे से दिल की बात कह डाली… फिर तो जैसे सुरभि की मुहब्बत को स्वप्निल पंख मिल गए… अब उसका दिल श्वेत घोड़े पर सवार होकर चाँद के चौखट तक जा पहुंचता… अपने सपनों के राजकुमार के साथ परियों के देश की सैर करता।

अब सुरभि के दिन सोने के और रातें चांदी की होने लगीं। शेखर की मुहब्बत में वह अपने सारे गम भूल गयी। शेखर ने यूँ ही एक दिन सुरभि को छेड़ा… ” मत करो मुझसे इतना प्यार… मैं संभाल नहीं पाऊंगा… किसी कारण से अगर हम ना मिल पाए तो जी नहीं पाएंगे…। ” आगे कुछ कह पाता कि सुरभि ने उसके होठों पर अपनी उंगली रख दी और कहने लगी, ” ऐसा न कहो शेखर… मम्मी पापा के जाने के बाद बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को संभाला है… तुम से ही मैंने जीने की कला सीखी। तुम्हारे बिना मैं अपने वजूद की कल्पना भी नहीं कर सकती। ”

सुरभि शेखर के बारे में बस इतना ही जानती थी कि वह एक आर्किटेक्ट इन्जीनियर था और एक रिज़ॉर्ट बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। इससे ज्यादा जानने की उसकी इच्छा भी नहीं थी। कभी-कभी शेखर चुटकी लेते हुए कहता था,

” सुरभि तुमने मेरे अतीत के बारे में कभी कुछ नहीं पूछा… क्या तुम्हें जानने की इच्छा नहीं होती कि मेरा वजूद क्या है? मेरे माँ – बाप कौन हैं? मैं कहाँ का रहनेवाला हूँ… वगैरह… वगैरह.. ”

”देखो शेखर, मुझे तुम्हारी आँखों में एक सच्चाई नज़र आती है। मेरा दिल कहता है कि तुम कभी गलत इंसान हो ही नहीं सकते… रही बात तुम्हारे माता पिता की तो वे जैसे भी होंगे, मेरे लिए पूज्य होंगे। मैंने अपने मम्मी पापा को खोने के बाद तुम्हें पाया है और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे माता पिता के रूप में मैं फिर से अपने मम्मी पापा को पा लूँगी। ”

” इतना विश्वास है तुम्हें मुझ पर? ” शेखर ने टोका।

” खुद से भी ज्यादा… ” कह कर सुरभि शेखर से लिपट गयी।

” अच्छा सुनो! ” शेखर ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा , ” ये मेरा कार्ड ले लो, इसमें मेरा पता लिखा हुआ है। शायद इसबार मुझे आने में देर हो जाए… या फिर आ ही न पाऊँ… तो तुम इस पते पर आ जाना… मेरे माता पिता तुम्हें देखकर बहुत खुश होंगे। ”

इस बार शेखर की आवाज़ बहुत दूर से आती हुई महसूस हुई सुरभि को। उसने पलट कर पीछे देखा तो वहाँ कोई नहीं था…

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गीता चौबे “गूँज”

बेंगलुरु

 

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