खानदान की इज्जत – संगीता त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : रति ने अपना प्लानिंग शीट रवि के सामने रख दिया। खाना खाते रवि का हाथ लेटर देख रुक गया। प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते बोला -अचानक ये अलग कोचिंग खोलने का फैसला क्यों..? तुम्हे क्या पैसों की कमी है, बोलो…. अब तुम ये सब करके क्या बताना चाहती हो लोगों को, मैं तुम्हारी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा हूँ…. रवि का गुस्सा अपने चरम सीमा पर पहुँच गया।

 “आत्मसम्मान और विकास के लिये रवि, कुछ फैसले अचानक ही लिये जाते हैं..”,।

    “पर आखिर क्यों..?” रवि ने चिढ़ कर बोला।” क्योंकि मै आत्मनिर्भर बनना चाहती हूँ।” “अब, इस उम्र में “..,

  “आत्मनिर्भर बनने की कोई उम्र नहीं होती हैं।”

पहले आपने…..लोग क्या कहेंगे, खानदान की इज्जत पर बट्टा लग जायेगा,… जब इससे बात नहीं बनी तो बच्चे छोटे हैं, बड़े हो जायेंगे तो फिर कर लेना, कह कर मेरी लगी लगाई नौकरी सिर्फ अपने दम्भ की वजह से छुड़वा दी।

मैंने भी समझौता कर लियाथा…बच्चे बड़े हो गये पर मेरे जॉब पर आप हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा देते थे।मुझे ये फैसला तो पहले ही ले लेना चाहिये था।”

    ” तुम ये कोचिंग में पढ़ा कर कौन सा तीर मार लोगी।रात के नौ बजे तक बाहर रहना क्या तुमको शोभा देगा, क्यों खानदान की नाक कटाने पर लगी हो…,वैसे भी अब तुम्हे लेटेस्ट जानकारी भी नहीं होगी सब्जेक्ट की।जब बच्चों के सामने शर्मिंदा होगी तब पता चलेगा, अपनी इज्जत खराब करोगी अलग…।

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   “आप रात के बारह बजे घर आते हैं,तब खानदान की नाक नहीं कटती…. जब आपको शोभा देता हैं तो मुझे क्यों नहीं,क्या इस लिये क्योंकि मै स्त्री हूँ और आप पुरुष हो । जब दोनों को समानता हैं तो स्त्री के कार्य स्थल में देर होने से वो प्रश्नों के कठघरे में क्यों खड़ी होती हैं।, क्यों तब सब खानदान और इज्जत की दुहाई देने लगते…।”

“आप अपनी कंपनी की तरफ से जो “नारी और बाल कल्याण “पर भाषण देते हैं, वो सब क्या मिथ्य हैं।एक पुरुष अपने कार्य की शुरुआत कभी भी कर सकता तो एक स्त्री के लिये उम्र की सीमा क्यों..?,

  रवि जोर से हँस पड़ा,” अरे वो सब तो अपने प्रमोशन के प्रयास की एक कड़ी हैं। भाषण का यथार्थ से कुछ लेना -देना नहीं।”

 खाना खत्म हो चुका था। रवि हाथ धो बैडरूम में आ गये। एक बार उन्होंने फिर रति को समझाने की कोशिश की। तुम कोचिंग में कैसे पढ़ाओगी।कैसे मैंनेज करोगी। घर कौन देखेगा।

“मै सब मैंनेज कर लुंगी, पर अब मेरी उड़ान मत रोको, ना खानदान की इज्जत की दुहाई दो….मै पिछले कुछ सालों से बड़े बच्चों को केमिस्ट्री पढ़ा रही हूँ। आपको याद होगा कुछ साल पहले आपके बॉस को जब ये पता चला मै शादी से पहले केमिस्ट्री पढ़ाती थी,तो उन्होंने अपने बेटे को मेरे पास केमिस्ट्री पढ़ने भेजा था। कुछ दिन बाद उसके दो -तीन दोस्त और आ गये। उन बच्चों को मेरा पढ़ाने का तरीका इतना पसंद आया कि, उनके

कुछ दोस्त और आ गये।आप देर से आते थे और बच्चे बाहर चले गये। मै अपना एकाकी पन इस तरह दूर करने लगी।इस तरह धीरे -धीरे मै दो बैच में बच्चों को पढ़ाने लगी। मेरा समय भी कटने लगा और पैसे भी मिलने लगा। आपकी नजरों में तो मै हमेशा गँवार थी। मुझे भी जिद थी कि कुछ कर दिखाना हैं। अपनी पहचान खुद बनानी है।कुछ समय बाद मै अपनी खुद की कोचिंग खोल सकूँ।”

     रति शुरु से मेघावी छात्र थी। केमिस्ट्री उसका प्रिय सब्जेक्ट था। छोटी संतान होने से पिता ने अपने सर्विस से अवकाश प्राप्त करने से पहले, रति की शादी कर देना उचित समझा।

 उन्हे रवि में वे सारे गुण दिखे, जो वो अपने भावी दामाद में चाहते थे। जब रति और रवि आपस में मिले तो रवि ने रति की हर बात में अपनी हाँ मिलाई।

  शादी के पहले रति ने जब अपनी नौकरी ना छोड़ने का फैसला लिया था तब रवि ने रति की हाँ में हाँ मिलाई थी।

 लेकिन शादी के बाद, सासु माँ बीमार हैं, घर कौन देखेगा, लोग क्या कहेंगे… कई बहानों से रति की अच्छी सेलरी वाली जॉब छुड़वा दी गई। फिर कभी बच्चों, कभी कुछ और प्राथमिकता में रति की प्रतिभा मरती रही , पर रति ने हिम्मत नहीं हारी,अपने बच्चों के साथ अड़ोस -पड़ोस के बच्चों को फ्री में पढ़ाना शुरु किया।जिससे पढ़ाई पर उसका टच बना रहे।

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बच्चे पढ़ने बाहर चले गये, रवि अपने कैरियर की उठान पर, रह गई थी रति तन्हा।..फिर रवि के बॉस ने जब अपने बेटे को पढ़ाने का आग्रह किया।रति के लिये नये रास्ते बन गये। कहते हैं ना कि “कोशिश करने वालों कि हार नहीं होती “ये सच कर दिखाया रति ने।

     रवि समझ गया, अब रति की उड़ान को रोक पाना मुश्किल हैं, तो क्यों ना परिस्थितियों से समझौता कर, जीवनसाथी के फ़र्ज का दायित्व पूरा करें। सुबह का सूरज रति के लिये खूबसूरत सवेरा लाया। जब रवि ने उसे बांहों में भर कर उसकी जिजविषा के लिये उसकी प्रशंसा की।रति की मेहनत और रवि के साथ ने उसके लक्ष्य को पूरा करने में देर नहीं की।

        कोचिंग केंद्र का रिबन काटते रवि… रति के दमकते चेहरे को देख ठगे से रह गये। आत्मनिर्भरता से उपजी आत्मविश्वास की चमक क्या इतनी तेज होती कि उम्र को भी मात कर देती।

                          —संगीता त्रिपाठी 

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VM

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