कुछ तो लोग कहेंगे – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : पिताजी संध्या के लिए गोयल साहब के बेटे अनुज का रिश्ता आया है। मै सोच रहा हूं, हां कर दूं नीलेश ने अपने पिता( दीनदयाल) जी से पूछा

ये क्या बोल रहा हैं तू? कुछ सोचा हैं लोग क्या कहेंगे? थू थू करेंगे हमारे खानदान पर।

 इतने बड़े समाज में हमारी पोती के लिए लड़कों की कमी पड़ गई जो दूसरी जात बिरादरी में ब्याह दी।

दीनदयाल जी गुस्सा होते हुए बोले

पिताजी कितनी कोशिश कर ली, कितनी बार संध्या को दिखा चुके , अब इसके भाग्य में ये लिखा है तो ये ही सही

और मुझे कोई बुराई नही लगती। गोयल साहब मेरे पुराने अच्छे मित्र हैं और आप सबसे अच्छे से परिचित भी हैं। अनुज को भी आप भलीभांति जानते हैं। उन्होंने संध्या के लिए आगे से मांग रखी है। 

संध्या दिखने में इतनी खूबसूरत नही पर दिल की कितनी सच्ची और अच्छी है ये आप भी जानते हो और वो भी।।उन्हें एक संस्कारी घरेलू लड़की की तलाश थी जो अब संध्या पर जाकर पूरी हुई है।

       मेरी बेटी कुछ कहती नही तो क्या मैं समझता नही वो कितनी डिप्रेशन में रहती है। एक लड़की को बार बार नकार देने से उसके आत्मसम्मान पर कितनी चोट पहुंचती है ये मैं संध्या के व्यवहार में देख चुका हूं।

       मेरी इतनी हंसमुख बच्ची कितना कम बोलने लगी है इसको हीनता का अनुभव होने लगता है जब उसके उम्र की लड़कियों की शादी हो गई और वो इतनी पढ़ी लिखी होने के  बावजूद भी अब तक कुंवारी बैठी है। कुछ तो लोग कहेंगे मेरे इस कदम से  मुझे पता है पर मुझे उसकी कोई चिंता नहीं। और  मेरी बेटी के बारे में मैं बेहतर जानता हूं, खानदान वाले नही।

       और  आप जानते हो न थर्ड फ्लोर वाले  मल्होत्रा जी की  बेटी ने भागकर शादी कर ली क्योंकि वो उसकी मर्जी के खिलाफ शादी करना चाहते थे। रिश्ते तो बिगड़े ही साथ में कितना नाम खराब हुआ उनका….. उससे अच्छा है कि मैं खुद अपनी बेटी की शादी  अच्छे घर में करूं।  और मुझे लड़का अच्छा चाहिए जो मेरी बेटी को खुश रखे और अनुज में वो सब खूबियां हैं तो फिर गैर बिरादरी में शादी करने में क्या हर्ज है। मुझे मेरी बेटी की खुशियों की चिंता है दुनिया के सोचने की नही। आखिर जिंदगी मेरी बेटी को ही बितानी है ना।

       नही तो आजकल शादी के बाद भी बेटियां कहां खुश रह पाती है। अपने ही समाज और खानदान के कितने ही घरों की लड़कियां हैं जो शादी के बाद दुखी है और लोग के कहने के डर से अपने रिश्ते को ढो रही हैं बस।

       पर नीलेश ,समाज में रहते है। तो उसके नियम कायदे भी मानने पड़ते हैं बेटा। लोगों को कहने का मौका क्यों देना चाहता है। मिल जायेगा कोई न कोई लड़का संध्या के लिए भी थोड़ा और इंतजार करने में क्या बुराई है?

       समाज के  डर से या खानदान में मेरी इज्जत कम होने के डर से मैं अपनी बच्ची को ऐसे ही किसी उठाए गिरे के भरोसे तो नही छोड़ सकता ना। 

      पिताजी, बहुत इंतजार कर लिया अब नही। उसकी मां होती तो शायद अपने मन की बात उससे कह पाती पर मुझसे तो वो कह भी नही सकती। बिन मां की बच्ची को सुमित्रा भाभी अपनी बेटी सा प्यार देंगी और हमे क्या चाहिए

        दीनदयाल जी को ये बात सोचने पर मजबूर कर गई और वो बोले ठीक है तुझे पसंद है रिश्ता तो फिर बात आगे बढ़ा ले  पर संध्या से पूछा उसकी क्या मर्जी है?

        उसने सब कुछ मुझ पर छोड़ दिया है बोली जैसी आपकी इच्छा। और वो भी अनुज को बचपन से जानती है। मेरी बेटी लाखों में एक है और यदि वो अपनी पसंद से करती तो भी मुझे कोई ऐतराज नहीं होता ।मै मल्होत्रा जी की तरह उसे सड़कों पर मरने के लिए नही छोड़ देता बल्कि रीति रिवाज से उसका ब्याह करवाता। हमारी बेटी बालिग हो चुकी है अब , अच्छा बुरा समझती है । हां पर मैं घर से भागकर शादी करने के सख्त खिलाफ अभी भी हूं।।

         नीलेश ने घर वालों की मंजूरी के साथ अपनी बेटी संध्या का अनुज के साथ विवाह करवा दिया। लोग बाते बनाने लगे….. लड़की का चक्कर चल रहा होगा जरूर तभी तो इतने दिनो से कुंवारी बैठी थी।या बिना दहेज के कर दी होगी शादी इसलिए गैर बिरादरी में दे दी अपनी लड़की। और पता नही क्या क्या….खानदान वालों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी बुरा भला कहने में। 

         पर नीलेश मानता था कि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम  ही है कहना, दूसरों की जिंदगी में झांकना। इसलिए उसने  लोगों की परवाह किए बिना कदम उठा लिया था

         और फिर संध्या की खुशी में ही तो  नीलेश की खुशी थी उसने ये कदम उसकी सफल जिंदगी के लिए ही तो उठाया था जिसमे वो कामयाब रहा क्युकी अनुज से बेहतर लड़का शायद ही वो ढूंढ पाता अपनी बेटी के लिए। 

         लोगों के कहने के डर से वो चाहता तो कुछ दान दहेज देकर अपनी बेटी के लिए लड़का अपने ही समाज में भले ही ढूंढ लेता पर खुशियां नही खरीद पाता।

         दोस्तों ये जाति बिरादरी पहले की बातें थी पर अब बच्चों की खुशियां और उनका सफल वैवाहिक जीवन मायने रखता है। जिसके लिए माता पिता , लोग क्या कहेंगे या खानदान आदि के  बारे में ना  सोचकर अपने बच्चों की पसंद नापसंद का ख्याल रखकर ,उनसे विचार विमर्श कर रिश्ता तय करें तो ही बेहतर है क्योंकि जिंदगी बच्चों को ही साथ बितानी है आखिर

        नीलेश का ये कदम कितना सही था? 

 मेरी ये रचना पढ़कर अपने विचार जरूर बताएं और अपनी सलाह और सुझाव से मेरा मार्गदर्शन करना ना भूलें

 धन्यवाद

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

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