दहलीज – जगनीत टंडन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : स्वाति ने आज अर्जुन को बहुत ज़ोर से डांट दिया। तीन साल का मासूम बालक सहम गया। सहम कर स्वाति के पास से भागकर अपनी दादी मां की गोदी में जा छुपा और जोर ज़ोर से रोने लगा।

अर्जुन,मेरे बच्चे क्या हुआ,बोल,बोल ना” दादी ने उसका चेहरा उठाकर देखा तो उनका कलेजा मुंह को आ गया। आंसुओं से भीगा चेहरा,आंखों में इतना डर दिख रहा था। बच्चा कुछ बोल नहीं पा रहा था।

उनकी बहू लता की सड़क दुर्घटना में हुई असमय मृत्यु के बाद घर का पूरा नक्शा ही बिगड़ गया था। जिस दूध पीते बच्चे की खातिर राकेश ने स्वाति से दूसरी शादी की थी वही बालक आज स्वाति की वजह से ही अपने ही घर में लावारिस सा घूमता फिरता था।

दादी व्हील चेयर पर रहतीं थीं। चाह कर भी घर के हर कोने पर ध्यान देना उनके बस में ना था। स्वाति के ब्याह के आने के शुरुआती समय में जब वो अर्जुन से घुली मिली नहीं तो राकेश और दादी ने इसे स्वाभाविक झिझक के रूप में लिया पर अच्छा खासा वक्त गुजरने के बाद भी स्वाति अर्जुन से दूर ही रहती थी। 

अर्जुन के लिए रखी आया ही उसका सारा ध्यान रखती थी। राकेश ने कई बार उसे समझाने की कोशिश कि पर तब स्वाति इस बारे में कुछ नहीं बोलती और आंखों से आंसू बहाने लगती, ये देखकर तब राकेश भी कमज़ोर पड़ जाता और उल्टा स्वाति को चुप करवाने लगता। 

दादी इस बारे में राकेश से खुल कर बात करना चाहतीं थीं पर वो भी राकेश का बदला व्यवहार महसूस कर रहीं थीं और राजेश की टूरिंग जॉब की वजह से उन्हें कोई सही मौका भी नहीं मिल रहा था।

ओफ्फो मम्मी तो और क्या करूं,और कितना अपने ऊपर रिझवाने की कोशिशें करूं, मैंने बहुत कुछ कर लिया पर ये लोग अर्जुन को हॉस्टल भेजना तो दूर, उसे भेजने का जिक्र भी नहीं करते..” स्वाति चिड़चिड़ी सी होकर फोन पर अपनी मम्मी से बातें करती हुई बोली।

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सासू मां, बड़ी सख़्त जान हैं और तुम्हारे दामाद उन्हें तो जैसे मेरी ज़रूरत सिर्फ रात में ही होती है..” स्वाति गुस्से भरे स्वर में क्या क्या बोली जा रही थी शायद वो खुद भी नहीं जानती थी।

और अपना बच्चा होना क्या मेरे हाथ में है, जब होना होगा तभी होगा..” स्वाति की आवाज़ तेज़ ही होती जा रही थी।

स्वाति, ये सब क्या बोली जा रही हो..” 

स्वाति ने पीछे मुड़कर देखा कि तो व्हील चेयर पर दादी थीं।

स्वाति ने सकपका कर झट से मोबाईल काट दिया।

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस तरह कि घटिया बातें करने की, शर्म नहीं आती ऐसी छोटी सोच रखते हुए, राकेश को तुम्हारा ये चेहरा भी दिखा दूं जो तुमने अपनी खूबसूरती के पीछे छुपा रखा है तो जानती हो क्या जवाब दोगी उसको..?” दादी गुस्से में बिफर उठीं थीं।

मम्मी जी प्लीज़, प्लीज़, मम्मी जी, उन्हें कुछ मत बताइएगा, मेरी मम्मी मुझे हमेशा यही बोलती रहतीं हैं कि अर्जुन तेरा सगा बेटा तो है नहीं, कल को तुझे पूछेगा भी नहीं, तू अपनी औलाद पैदा कर और अर्जुन को घर से दूर करने का सोच क्योंकि उसके रहते कोई तेरे बच्चे पर ध्यान भी नहीं देगा..” स्वाति की रोते रोते हिचकियां बंध गईं थीं।

तो तुम्हारी अपनी अक्ल घास चरने गई है क्या, इस घर की जान है अर्जुन पर मेरे लिए राकेश का दूसरा बच्चा भी अर्जुन जितना ही प्यारा होगा, इसमें क्या सोचने की बात है..”

मुझसे माफ कर दीजिए मम्मी जी, मैंने अर्जुन के प्रति दुर्भावना रख कर गलती नहीं गुनाह कर दिया है, अब से उसके प्रति में अपनी ज़िम्मेदारी पूरी वफादारी से निभाऊंगी, मैं आपसे वादा करती हूं “ स्वाति का स्वर पश्चाताप से भरा था।

तभी स्वाति का मोबाईल घनघना उठा।

उसने देखा तो जाना कि उसकी मम्मी का कॉल था।

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किसका फोन है..?”

मम्मी जी, मेरी मम्मी का फोन है..” स्वाति घबराए से स्वर में बोली।

मुझे दो “ दादी इस वक्त काफ़ी गंभीर थीं।

अचला जी, बेहतर होगा यदि आप अपनी योजनाओं में स्वाति को भागीदार ना बनाएं, आपकी चौखट वो लांघ चुकी है और अब इस घर की दहलीज पार ना करे तो दोनों ही परिवारों की बेहतरी बनी रहेगी, उम्मीद है आप समझ गईं होंगी” इतना कहकर दादी ने कॉल कट कर दी।

इसके बाद दादी ने प्यार से स्वाति को समझाया।

देखो स्वाति, वो तुम्हारी मां हैं, उनसे तुम्हें दूर करने का मेरा कोई इरादा नहीं है बस भविष्य में इस बात का ध्यान रखना कि अपना घर बनाना, बसाना और बचाना अंततः तुम्हारे ही हाथ में है, वर्तमान ईमानदारी से जियो, भविष्य खुद ब खुद संवर जाएगा,समझी बेटी”

स्वाति ने धीमे से सर हिलाया और अर्जुन को पुकारते हुए बाहर चली गई।

उसे वहां से जाता देख दादी यही सोच रहीं थीं कि अब यदि स्वाति दिल और दिमाग से सही व्यवहार करे तो आज नहीं तो कल अर्जुन उसके करीब हो ही जाएगा पर कितना अच्छा हो यदि माता पिता अपने बच्चों को घर जोड़ने की शिक्षा दें ना कि घर तोड़ने की क्योंकि गलत शिक्षा जल्द ही आपको आपकी मनचाही मंज़िल के शिखर पर तो पहुंचा देती है पर उससे भी कहीं जल्दी आपको उस भीड़ का हिस्सा बना देती है जहां आप सबके साथ होते हुए भी अपने स्वार्थ के चलते बिल्कुल अकेले होते हो।

 

 

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