Moral Stories in Hindi : पाखी, भरी आँखों से कार में बैठ चली गई। अपर्णा खोई हुई सी बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ गई। ये वही बरामदा हैं, जहाँ वो सुबह की चाय पीना पसंद करती हैं , यहीं परिवार के लोगों के ढेरों विचारों का आदान -प्रदान और घर की हर समस्या का समाधान होता हैं। आज पाखी के ढेरों प्रश्न भी यहीं हवा में तिर रहे थे।
“छोड़ो पाखी, अपनी सास -ननद को, अपना देखो, प्रियांश को देखो, भाई की शादी में ख़रीदारी कराने आई हुई पाखी को अपने से पहले अपनी सास -ननद के कपड़े पसंद करने पर अपर्णा ने पाखी को टोक दिया। उसे बर्दाश्त नहीं हुआ, उसकी बेटी उसको छोड़ दूसरों की सोचे…।
माँ -बेटी गहने और कपड़ो की खरीदारी करने रोज निकलती। कल की ही बात हैं जब पाखी बोली “मम्मी वहाँ पर माँ को सिल्क की साड़ी पसंद हैं, तो विदाई में देने के लिये उनके लिये ये टसर सिल्क ले लेते हैं, माँ को हरा रंग पसंद भी हैं।”
जाने क्यों ईर्ष्या की तेज लहर अपर्णा को गुस्से में भर दी। एक साल में ही ये लड़की कितना बदल गई, मुझसे ज्यादा ये सास के लिये सोचने लगी। सास का फोन आते ही पाखी के चेहरे की खुशी देखने लायक होती।ये देख अपर्णा जलन से चिढ़ जाती..।
शायद ये जलन उसी दिन से दिल में पनप गई थी, जब पाखी पग -फेरे के लिये मायके आई थी। पाखी के खुशी से दमकते चेहरे को देख, जहाँ वो और उमेश संतुष्ट थे, वही पाखी का हर समय अपने ससुराल की चिन्ता करना, अपर्णा को अच्छा नहीं लगता। अपर्णा को लगता उसकी बेटी बदल गई अब वो बेटी से ज्यादा बहू का रोल अदा कर रही।मन ही मन हँसी, अभी नई हैं कुछ दिन में सास का असली रूप सामने आ जायेगा।
पर अपर्णा की सोच पूरी ही नहीं हुई, पाखी दिन प्रतिदिन अपनी सास की समझदारी की कायल होती गई। अक्सर वो अपर्णा को समझाती, तुम माँ से कुछ सीखो, और अपर्णा ईर्ष्या से जल -भून जाती।
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“मेरी विदाई के समय हर माँ की तरह आपने नहीं कहा, वो परिवार तुम्हारा हैं, पर मै ये मान कर इस घर से विदा हुई, वो घर भी अब मेरा परिवार हैं। दादी और बुआ के प्रति किये आपके व्यवहार ने मुझे सिखाया कि रिश्ते प्यार और अपनत्व से बनते हैं, नफरत या जलन से नहीं।
आप आज तक सिर्फ नानी की बात सुनती आई हैं।अपने मायके को ही अपना परिवार समझती हैं। पापा के परिवार से आपने एक दूरी हमेशा बना कर रखी, क्यों माँ..? क्या पापा के दिल में अपनी माँ और बहन के लिये भावनायें नहीं हैं।
पापा ने आपको कभी किसी भी बात के लिये रोका नहीं, पर उनकी आँखों की ख़ामोशी, बहुत कुछ कह देती। मै और पंकज पापा के दर्द को बखूबी समझते हैं… आपको दादी और बुआओं को अपमानित करते कभी आत्मग्लानि नहीं हुई, मुझे आश्चर्य है, क्योंकि सबके लिये स्नेह बरसाने वाली मेरी माँ अपने पति के दर्द को नहीं देख पा रही,जो अपनी माँ, बहन को अपमानित होते देख उन्हें होती थी।
“हाँ -हाँ तेरे और तेरे भाई की नजरों में मै हमेशा गलत ही रही हूँ. भले ही ये सब मैंने तुम लोगों के लिये किया”।
“माँ, आपने जो किया उसी ने मुझे रिश्तों की अहमियत समझाई..,मुझे अपने उस परिवार को भी खुशहाल बनाना हैं, मुझे अपने पति के दिल में जगह बनानी है तो उनके रिश्तों को भी अपनाना है….,आपने सास का जो खाका मेरे अबोध मन में खींचा था। सासु माँ से मिलते ही मै समझ गई,
मुझे एक बेहतरीन माँ मिल गई। अब मै भी उस परिवार का हिस्सा हूँ। कल को आपकी बहू भी आपकी नहीं, अपनी माँ की सुनेगी तो आपको कैसा लगेगा, आखिर वो जो देखेगी वही करेंगी। अभी समय हैं माँ संभल जाओ, परिवार सिर्फ पति, बेटा -बेटी से ही नहीं बनता। रंग -बिरंगे रिश्तों से ही परिवार पूर्ण होता हैं।”
माँ -बेटी के युद्ध से घर में ख़ामोशी फैल गई। सुबह पाखी को जाना था। आज बेटी का चेहरा उदास था। अपर्णा को अच्छा नहीं लग रहा था। पर पाखी चली गई, कार धूल उड़ाते चली गई, पीछे ढेरों सवाल छोड़ गई.।
सच का आईना देख अपर्णा भी शर्मिंदा थी, “अपने अन्तर्मन में झाँक कर देखो अपर्णा -क्या पाखी ने गलत कहा। नहीं, पाखी ने आज मुझे सच का आईना दिखा दिया। अन्तर्मन के युद्ध में अपर्णा हार गई।आत्मग्लानि आँखों में आँसू बन ढलक गये ।
उससे ज्यादा तो समझदार उसकी बेटी हैं। रिश्तों को सहेजना कितने अच्छे से बता गई। आँसू पोंछ, मोबाइल उठा लाई। तभी रिंग बज उठी -सॉरी माँ, मै ज्यादा बोल गई..।
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“नहीं पाखी, तुमने आज मुझ सच से रूबरू करवाया, मैंने अपनी गलतियां कभी देख नहीं देखी ।ईर्ष्या और दम्भ में अपने आगे किसी को ना समझती…।किसी ने कभी प्रतिवाद भी नहीं किया। मुझे लगा मै सही हूँ, शादी से थोड़ा पहले आ जाना। हाँ तेरी माँ के लिये मै वही टसर सिल्क की हरी साड़ी ले आऊंगी।”
शादी से कुछ पहले पाखी जब मायके आई, उसका स्वागत गांव से आई दादी ने किया। ओह दादी कह पाखी दादी से लिपट गई। उनकी स्नेहिल मधुर स्पर्श उसे आज बहुत सुकून दे रही….तब तक दोनों बुआयें भी आ गई, अरे हमसे भी मिलोगी या दादी के गले ही लगी रहोगी।
हँसी, ठहाकों के बीच, अश्रुपूरित नेत्रों से देखती माँ अपर्णा को पाखी ने बांहों के घेरे में ले लिया।उस घेरे की सुरक्षा और प्रेम की अनुभूति आज से पहले अपर्णा को नहीं हुई थी।
उमेश जी की ऑंखें पाखी को धन्यवाद दे रही थी, जिसने इस घर की खोई खुशियाँ लौटा दी।शादी में सबने दिल खोल कर मस्ती की और हँसी -खुशी नई बहू खुशी ने प्रवेश किया। नई सोच के साथ, ये परिवार अब मेरा भी हैं..।
—संगीता त्रिपाठी