Moral Stories in Hindi : टीशा जैसे ही कॉलेज से आई, उसने देखा ड्राइंग रूम में कुछ गेस्ट बैठे हुए है। वह नमस्ते करके अंदर घर में दाखिल हुई और सबसे प्रश्न सूचक निगाहों से पूछने का प्रयास करती है कि कौन लोग हैं?
उसकी चाची मंद-मंद मुस्कुरा कर कहती है, “बेटा अब कॉलेज-वालेज छोड़ो अपने घर जाने की तैयारी कर लो।”
टीशा कुछ समझ नहीं पाती है। दादी भी उसको प्यार भरी निगाह से देख रही थी।
उसको कुछ रिश्ते वाले एक निगाह करने आए थे।
टीशा के लिए आश्चर्यचकित कर देने वाली बातें थी। उसने अपनी मम्मी से कहा, ” कि यही मेरा घर है। मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।”
मम्मी उसे समझाते हुए बोली, “बेटा प्रत्येक लड़की ऐसा ही कहती है। लेकिन सब लड़कियों को अपने घर जाना ही पड़ता है। बेटियां तो धान के पौधे जैसी होती हैं। एक घर बोई जाती हैं। सींची जाती हैं। फिर दूसरे आंगन में रोंप दी जाती हैं। मैं भी तो आई थी किसी दिन। मैं भी तो कभी तुम्हारे जैसी हुआ करती थी। बेटियों को तो एक दिन जाना ही पड़ता है।”
लेकिन इतनी जल्दी क्या है?
टीशा ने प्रश्न किया।
“आजकल समय बहुत खराब चल रहा है। बेटी का विवाह जितनी जल्दी हो जाए उतना ही सही है” ,उसके पापा जवाब देते हुए बोले।
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” पर पापा मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ ” टीशा ने पापा से प्रार्थना करते हुए कहा।
“अपने घर जाकर पढ़ लेना। शादी के बाद भी तो लड़कियां पढ़ती हैं। हमारे बस की जितना हो गया उतना हमने पढ़ा दिया। आगे की पढ़ाई वहीं से कर लेना ” टीशा की दादी सख़्त लहजे में बोली।
टीशा की बात पर किसी ने भी गौर नहीं किया। किसी ने भी उसकी आगे की पढ़ाई पर की चिंता भी नहीं की। जल्दी से आगे की बात बढ़ाकर उसका रिश्ता तय कर दिया गया। अब तो सारे दिन शॉपिंग करते ही निकल जाते। शादी की तारीख़ भी नजदीक आ रही थी।
खूब ढोल ताशे बजे। उसकी शादी एक समृद्ध परिवार में हो गई। उसका पति राहुल उसे खूब लाड प्यार करता। ससुराल में भी सब लोग ठीक थे।
किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।
समय बीतता गया घर की जिम्मेदारियां ओढ़ते-ओढ़ते वह दो बच्चों की माँ भी बन गई।
टीशा घर के काम तो सुचारू रूप से करती लेकिन रूपए पैसे के मामले में उसे परिवार पर निर्भर ही रहना पड़ता। कहीं जाना हो, कुछ खर्च करना हो, तो उसे राहुल के आगे हाथ ही फैलाने पड़ते। राहुल पैसे तो दे देता लेकिन उसकी निगाह ऐसी होती कि जैसे कोई एहसान कर रहा हो।
घरेलू गतिविधियों में संलग्न टीशा के कार्य का कोई मोल नहीं था। घर गृहस्थी की बागडोर संभालने मे पढ़ाई लिखाई से उसका नाता एकदम टूट गया।
टीशा के पति राहुल का अच्छा खासा बिजनेस था। बैंक में भी लाखों का लेनदेन चलता। लेकिन टीशा को कोई भी जानकारी नहीं थी। व्यापारिक मामले में उससे कभी कुछ भी पूछा नहीं जाता ना ही कुछ बताया जाता। अचानक एक दिन ऐसा मनहूस घटा जिसके बारे में कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। राहुल की गाड़ी का बुरी तरह से एक्सीडेंट हो जाता है और फिर राहुल कभी घर नहीं आ पाता। आती है तो बस सिर्फ उसकी मृत देह। जिसका पोस्टमार्टम कराने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ा।
टीशा शून्य बैठी होती है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ
है । अनियंत्रित बह-बह कर उसकी आंखों में आंसू सूख चुके हैं।
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अब उसके परिवार और समाज का व्यवहार उसके प्रति एकदम बदल जाता है। जो परिवार कभी उसे सिर्फ आंखों पर बिठाया करता था आज वही उसे दोषी समझ रहा है।
बच्चे छोटे हैं। व्यापार और बैंक के कार्य की कोई जानकारी उसे है नहीं। घर परिवार के लोग और उसके पति के यार मित्र सब व्यापार व पैसे पर कब्जा साध लेते हैं।
समस्या इतनी अधिक बढ़ जाती है की खाने कमाने के भी लाले पड़ जाते हैं। टीशा को नौकरी करने के लिए बाहर निकालना पड़ता है लेकिन अधिक पढ़ी-लिखी ना होने के कारण उसे हर जगह मुँह की ही खानी पड़ती है। आज उसे रह-रह कर पश्चाताप होता कि अगर उसके परिवार ने समय रहते उसकी पढ़ाई लिखाई सुचारू रूप से कराई होती है तो आज उसे इस कदर दर बदर ना भटकना पड़ता। प्रकृति की मार तो उस पर पड़ी ही थी लेकिन उसके अपनों ने भी उसके साथ दगा कम नहीं की।
आज उसके पिता को बहुत #आत्मग्लानि होती कि अगर समय रहते उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया होता तो यह नौबत नहीं आती। आज सबसे कुछ यही कहते फिरते हैं चाहे दो रोटी कम खा ले पर बच्चों को जरूर पढ़ा ले बेटियों को पढ़ाना तो और भी अत्यधिक आवश्यक है।
समय का कुछ नहीं पता कि कब बदल जाए। इसलिए शिक्षा और जागरूकता अत्यंत आवश्यक होती हैं।
#प्राची_अग्रवाल
खुर्जा उत्तर प्रदेश
#आत्मग्लानि शब्द पर आधारित बड़ी कहानी