“दीदी, मुझे दो महीने काम के पहले पैसे दे दो, मुझे बेटी के स्कूल की फीस भरनी है, मै बाकी के महीने आराम से पगार ले लूंगी।”
मेरी कामवाली ने कहा तो मैं सोचने लगी अभी तो नई-नई आई है, दस दिन भी नहीं हुए हैं और पूरे दो महीने की पगार पहले से मांगने लगी। मै मन ही मन विचार कर रही थी, वैसे तो ये रज्जो और भी घरों में काम करती है तो पैसे तो कहां जायेंगे?
मै सोच ही रही थी कि रज्जो फिर से बोली,” दीदी मै आपके पैसे लेकर भाग नहीं जाऊंगी, बाकी सब घरों में काम करती हूं, चाहें तो शर्मा अंकल और सक्सेना आंटी से पूछ लो।”
“अरे! नहीं इसमें पूछने वाली बात कौनसी है? मेरे पास इतना कैश घर में नहीं रहता है, वैसे भी आजकल सब ऑनलाइन पेमेंट करती हूं, मै कल बैंक से ला दूंगी, कल ले लेना।”
मैंने उससे कहा तो वो अपने काम में लग गई, मै दोपहर को शर्मा अंकल और सक्सेना आंटी के घर पर गई और रज्जो के बारे में पूछताछ की, तो उन्होंने कहा,” हमारे यहां भी पिछले महीने से काम कर रही है, उसकी बेटी की फीस भरनी है तो हम तो पैसे दे रहे हैं, बेटियां पढ़े- लिखे, अपने पैरों पर खड़ी हो, इसके लिए हम इतनी मदद तो कर सकते हैं, फिर हम कौनसा उसे दान दे रहे हैं, वो बदले में हमारे घर का काम ही तो कर रही है, उसकी पगार उसे ही दे रहे हैं, बस थोड़ा पहले दे रहे हैं।”
अब मै निश्चिन्त हो गई थी, इतना कैश तो मेरे पास था, बस मैं बाकी लोगों से पूछकर ही उसे पैसे देना चाह रही थी। अगले दिन वो आई तो मैंने उसे पैसे निकालकर दे दिये, उसने बाद में आकर बताया भी कि उसने बेटी की फीस भर दी है ।
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उसके बाद वो दो-तीन दिन काम करने आई, चौथे दिन मेरे घर में मेहमान आने वाले थे, सारा काम रखा था, मै उसे फोन पर फोन लगा रही थी पर उसका फोन बंद आ रहा था, मैंने फिर शर्मा अंकल से पूछा पर रज्जो
वहां भी काम करने को नहीं आई, सक्सेना आंटी के तो वो सबसे पहले आती है, आज वहां भी नहीं आई, मैंने सोचा हो सकता है उसके फोन में बैंलेस नहीं हो और किसी वजह से वो ना आने के लिए फोन नहीं कर पाई हो।
ये सोचकर पूरा दिन निकल गया, अगले दिन भी फोन लगाया पर उसका फोन नहीं लगा, अब मुझे महसूस होने लगा कि कहीं वो झूठ बोलकर पैसे तो नहीं ले गई, मैंने ये बात अपने पति को बताई, वो भी बोले कि “हो सकता है, वो कई घरों में काम करती है, सबसे कहकर पैसे ले गई हो।’
तीन दिन और निकल गये, मेरा शक पक्का हो गया, मै अपने पति और शर्मा अंकल, सक्सेना आंटी को लेकर पुलिस स्टेशन गई तो ये जानकर मेरे होश उड़ गये कि उसकी शिकायत करवाने और भी कई लोग आये थे, रज्जो काफी घरों से पैसा लेकर भाग गई है।
उस दिन से कामवाली पर से मेरा विश्वास उठ गया।
अगले महीने मैंने फिर से नई कामवाली सुन्दरी को लगाया, सुन्दरी अच्छा काम करती थी और बोलने में भी अच्छी थी, वो भी कई घरों में काम करती थी, उसका पति एक कारखाने में काम करता था और दो बच्चे थे, जैसा कि उसने बताया था।
सुन्दरी काफी सज-संवरकर रहती थी, रोज उसका चेहरा पाउडर से लिपा-पुता और लिपिस्टिक और बिंदी से सजा रहता था, उस पर उसका हंसमुख चेहरा सबके ही मन को भाता था, छह-सात महीने हो गये थे।
एक दिन सुन्दरी देर से आई और उसने बताया कि “उसके पति के लीवर में खराबी आ गई है, और उसका इलाज करवाना है, और कुछ महंगे टेस्ट करवाने है, आप पगार पहले दे दो।”
ये सुनते ही मेरे आगे रज्जो का चेहरा घुम गया, और मेरा मन पुरानी कड़वी यादों से भर गया, अब मैंने पक्का मन कर लिया था कि मै इसे एक रूपया भी नहीं दूंगी, ये भी रज्जो की तरह ही झूठ बोल रही होगी और पैसे लेकर भाग जायेगी, मेरा विश्वास फिर से तोड़ देगी।
“क्या हुआ दीदी?, आपने जवाब नहीं दिया, उसने तुरन्त पूछा।”
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“सुन्दरी, मै किसी कामवाली को पगार पहले नहीं देती हूं, तू पूरे महीने काम कर और फिर पैसे ले जा, मै किसी का एक रूपया भी नहीं रखती, तेरा महीना पूरा होते ही मै तुझे तेरे पैसे वापस दे दूंगी।”
सुन्दरी ने आगे कुछ नहीं कहा, और वो काम पर आती, मैंने भी उससे कुछ नही पूछा क्योंकि मै पहले धोखा खा चुकी थी।
कुछ दिनों बाद सुन्दरी ने काम पर आना छोड़ दिया, मैंने उसे फोन लगाया, पर वो फोन भी बंद आ रहा था, मै मन ही मन सोचने लगी, ये भी सबके पैसे लेकर भाग गई, पर अच्छा हुआ मै तो बच गई।
करीब दस दिन बाद सुन्दरी मेरे घर आई, हमेशा की तरह खिलता चेहरा मुरझा गया, कोई लिपिस्टिक बिंदी भी नहीं, और आकर बोली,” दीदी फिर से काम पर रख लो, वरना मेरे बच्चे भूखे मर जायेंगे।”
मुझसे उसकी ये हालत देखी नहीं गई, ” तू इतने दिन कहां थी? तूने फोन भी नहीं उठाया, पता है मै कितनी परेशान हो रही थी, अभी तक नई कामवाली भी नहीं मिली।”
“दीदी, मेरा पति बिना इलाज के इस दुनिया से चला गया, मैंने अस्पताल वालों से कहा कि वो इलाज तो शुरू कर दें, मै पैसे धीरे-धीरे लाकर चुका दूंगी, पर इलाज में देरी की वजह से वो मर गया, किसी ने मेरी मदद नहीं की, फोन में भी पैसे नहीं थे, तो किसी को फोन नहीं कर पाई।” ये कहकर वो रोने लगी।
मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया, मै अपने आपको दोष दे रही थी, आज सुन्दरी का सुहाग मेरी वजह से उजड़ गया, मैंने पहले धोखा खाया और उसकी सजा मैंने सुन्दरी को दी, हमेशा चमकने वाली सुन्दरी आज बेजान सी खड़ी थी, पति के जाने का गम था तो आगे बच्चों को पालना भी था।
मैंने उसके घर जाकर क्यों नहीं देखा? सचमुच उसका पति बीमार था, मै उसकी थोड़ी सहायता कर देती तो मुझे तसल्ली होती पर मै बहुत आत्मग्लानि महसूस करती हूं, सुन्दरी को मैंने फिर से काम पर तो रख लिया लेकिन उसके उतरे चेहरे को देखकर मुझे रोज आत्मग्लानि महसूस होती है, मै उसका पश्चाताप करने के लिए उसके बच्चों को कुछ ना कुछ भिजवाती रहती हूं ताकि उनका पालन-पोषण अच्छे से हो सकें।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित
अर्चना जी। सही समय पर लिए गए सही निर्णय ही ज़रूरी होता है। उत्तम स्टोरी। हार्दिक शुभकामनाएं एवं अभिनंदन।