“माॅं, मामा जी के आगमन की बेला हो रही है और आप अभी तक सोई हैं।” सूरज की किरणों से प्रतिस्पर्धा लगाती विनया किरणों को मात देकर बालकनी में उसके स्वागत के लिए काफी देर से खड़ी थी, तभी उसे अहसास हुआ कि अंजना जो अब तक किचन में माना जी के नाश्ते को लेकर खटर–पटर प्रारंभ कर देती थी, वो अभी तक किचन क्या कमरे से भी बाहर नहीं आई है। यह ख्याल आते ही विनया त्वरित गति से अंजना के कमरे की भागी।
“माॅं, मामा जी के आगमन की बेला हो रही है और आप अभी तक सोई हैं।” अंजना के कमरे की दरवाजा धीरे से खोल कर और विनया ने देखा कि अंजना अभी तक लिहाफ के अंदर ही ऑंखें बंद किए हुए है। उसका चेहरा शान्ति से भरा हुआ था, जैसे कि वह अपने मनपसंद ख्वाब की दुनिया में विचरण कर रही थी।
“हूं, स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं लग रहा है बेटा।” क्षीण सी आवाज में अंजना कहती है।
“आप मान गईं माॅं”….बच्चों की तरह उछलती और ताली बजाती हुई विनया कहती है।
“शी…अभी ही तुम्हारा ये शो तुम्हारे ही हाथों कत्ल होकर फ्लॉप हो जाएगा।” अंजना हल्के से मुस्कुरा कर विनया से कहती है। उसकी आवाज में खेलने का आनंद और उसकी मुस्कान में दोस्ती और चुपके से बदले गए मन के खुमार का अहसास था, जिससे उनका आपसी संबंध और भी मजेदार और दिलचस्प हो रहा था।
“बेटा तुम, बहन कहाॅं है।” दरवाजे पर विनया को देख प्रह्लाद मामा जी पूछते हैं।
“आप अंदर तो आइए। वो जगी नहीं हैं अभी।” विनया बताती है।
“इतने सालों से वो बिना नागा मेरे आने से पहले ही जगती रही है। स्वास्थ्य वगैरह ठीक है तो है न”…प्रह्लाद मामा जी के चेहरे पर चिंता और व्याकुलता का साम्य था, जो उनकी पेशानी पर दिख रहा था। उनके चेहरे पर विचारों से भरी संवेदना उभर आई थी और उनकी बेचैनी बिना किसी शब्द के भी गहरी अंतरंग भावनाओं को अभिव्यक्त कर रही थी।
प्रह्लाद मामा जी अपनी सीमाएं जानते थे इसलिए हाथ में मुड़ा अखबार विनया के हाथों में थमाते हुए कहते हैं, “बेटा ये अखबार रख लो, मैं कल आऊॅंगा। बहन का ध्यान रखना और हो सके तो मेरे नंबर पर एक संदेश छोड़ देना और कोई जरूरत हो तो याद करना।” मामा जी का व्यवहार अपनी बहन के प्रति जिम्मेदारी से भरा हुआ था। उनके वचन में आशीर्वाद की भावना झलक रही थी।
“ऊंह ऊंह…चाय है या शरबत…अंजना बहू”…बड़ी बुआ चाय का सिप लेती हुई जोर से चीखती हैं।
“क्या हुआ बुआ जी?” विनया लगभग दौड़ती हुई बुआ के कमरे में आती है।
“गाड़ी नहीं छूट रही है, जो इस कदर दौड़ रही है। तुम नहीं अंजना बहू को बुलाओ। इस उम्र में भी उससे सही से चाय नहीं बनती है।” बुआ जी का इस तरह बोलना विनया को अपमानजनक लग रहा था और उसकी इच्छा हो रही थी कि कोई जोरदार उत्तर देकर इनका मुॅंह बंद कर दे। लेकिन विनया अब इन लोगों को पूरी तरह सुधार देना चाहती थी इसीलिए मुस्कुरा कर कहती है,
विनया ने परेशानी भरी आँखों से बड़ी बुआ, मंझली बुआ और मनीष की ओर देखते हुए कहती है, “बुआ जी, माॅं की तबियत ठीक नहीं है। उनसे बिस्तर छोड़ा ही नहीं जा रहा है। कह रही हैं पूरे शरीर में बहुत दर्द है। इसलिए चाय मैंने बनाई। क्या हुआ, अच्छी नहीं बनी क्या?” इसके साथ ही उसके चेहरे पर माँ के लिए चिंता के साथ भावनात्मक संवेदना का सामंजस्यपूर्ण अभिव्यक्ति थी और उसी नजर से वो मनीष की ओर देख रही थी।
“क्या!” शायद मनीष उसकी भावना समझ गया था और बोलता हुआ कमरे से बाहर जाने के लिए तत्पर हो उठा।
मनीष के पैर जम से गए , जब उसकी तत्परता को देख बड़ी बुआ पुरानी बातों को दुहराती हैं, “कल बहू, आज सास…अच्छा है, पहले भी यही नाटक चला था और आज भी।” मनीष ने नाटक शब्द को हुक्म की तरह लिया और फिर से वापस बैठ गया।
“बुआ जी, दीदी अभी जगी नहीं हैं। तो मैं ही फिर से चाय बना दूं या एक बार रसोई में चलकर मुझे बता दीजिए, कितने चम्मच चीनी और पत्ती डालनी है।” विनया चेहरे पर भोलापन का समावेश करती हुई बड़ी बुआ से कहती है।
“इतने दिनों से बना तो रही थी चाय, तब तो कोई दिक्कत नहीं हुई।” मंझली बुआ ऑंखें बड़ी करके कहती हैं।
“वो तो माॅं बगल में खड़ी होकर बताती जाती थी तो बन जाती है, एक बार आप ही बता दीजिए ना बुआ जी, प्लीज।” विनया की निर्दोष भरी मुस्कान में विनम्रता शहद की तरह टपक रही थी, जिसे देख किसी का भी दिल पसीज सकता था, लेकिन बड़ी बुआ तो अलग ही मिट्टी की बनी थी।
“जाओ, कोयल से कह दो, वो चाय बना लेगी।” बड़ी बुआ विनया की ओर देखे बिना हाथ से जाने का इशारा करती हुई कहती है।
विनया भी आज ठान चुकी थी कि बड़ी बुआ को रसोई का रुख करवा कर रहेगी, इसलिए कहती है, “लेकिन कोयल भाभी तो गोलू को चुप करा रही हैं और मनीष को ऑफिस भी निकलना है तो आज आप ही बता दीजिए।” मनुहार की दृष्टि से वो मनीष की ओर भी देखती है।
“हाॅं बुआ, आपके हाथ की चाय बहुत दिन हो गए पिए हुए। आज आप ही बना लीजिए और साथ के साथ इसे भी सीखा दीजिए।” मनीष ऑफिस का सुनते ही बुआ से कहता है।
बुआ जी एक पल चुप रह जाती हैं, बाहर पड़े तुहिन कणों को खिड़की के शीशे पर बहते देखती हैं, फिर कहती हैं, “इतनी ठंड में, नहीं नहीं, मनीष को आज बुआ के हाथ की चाय पीनी है। तुम जाओ, इसे भी बता देना और हमारे लिए लेती आना।” मंझली बुआ से कहती हुई लिहाफ और ऊपर तक खींच लेती हैं।
मैं, ठंड में पानी….
“पानी क्या पानी, ठंड में पानी नहीं पीती या स्नान नहीं करती है। वैसे गर्म पानी ही होगा। संपदा दीदी तो फिर भी कनेक्शन समझ जाती हैं।” बड़ी बुआ बहन के द्वारा कहे जाने वाले वाक्य पूरा होने से पहले ही ठेलती हुई कहती है।
“चलो”, मंझली बुआ विनया के निकल जाकर तमक कर कहती है।
“बुआ जी वो कल रात से ही रसोई में गर्म पानी नहीं आ रहा है। शायद कहीं कनेक्शन छूट गया है।” मंझली बुआ से कहती विनया मनीष की ओर गहरे अर्थ पूर्ण नजरों से देखती है और मनीष उसके नजरों के अर्थ में फिर से उलझ गया। अभी तो उस दिन रात वाली विनया की रात वाली नजर ही उसका जब तब ध्यान खींच लेती थी और अब…ये…गर्म पानी, कनेक्शन क्या कहना चाह रही थी और उसके बीच में सम्पदा का नाम क्यों लिया उसने। मनीष का मन उलझने लगा तो वो बिस्तर छोड़ उठ खड़ा हुआ। हर एक क्षण में उसकी चेतना में यह सवाल होता है – “गर्म पानी और कनेक्शन के बीच कैसा संबंध है?”
“बाहर कहां जा रहा है, दरवाजा भिड़का कर लिहाफ ओढ़ कर बैठ। मुझसे ही गलती हो गई, तेरे लिए तेरे लायक लड़की खोजने के चक्कर में इस ढ़ोल को तेरे पल्ले बांध दिया मैंने।” मनीष की बैचैनी को अंजना के लिए हुई बैचैनी समझती बड़ी बुआ उसे विनया की कमियों की ओर मोड़ती हुई कहती है।
मनीष का चेहरा अचानक संतुलित हुआ, उसकी आँखों में एक स्पष्टता थी जैसे उसने कुछ समझ लिया हो। बुआ की बातों ने उसकी चेतना को एक झटका दिया था और अब उसका मन अपनी जिम्मेदारी की ओर बढ़ रहा था। यह था एक तब्दीली भरा पल, जिसमें वह अपने आत्म-समीक्षा की ओर कदम बढ़ा रहा था।
सच शायद वो ये कहना चाह रही थी कि कहीं ना कहीं मेरा अपनी माॅं से कनेक्शन छूट गया है और जज्बात ठंडे पड़ गए हैं और वही संपदा इस चीज को समझते हुए फिर से मम्मी पापा के करीब आ गई है। आजकल तो वो पापा से भी कितनी बातें करती है और मैं….
इस अवस्था में मनीष की आँखों में जल का प्रवाह घुमड़ने लगा और धुंधली हो गई निगाह उसे उसके दिल में माँ के प्रति गहरे संबंधों को दिखा रही थी और उसके सामने कई विशेष क्षण उभरने लगे थे। उनके चेहरे पर बचपन वाली मासूमियत और मुस्कान आ गई थी, जिससे वह स्वयं के भीतर सुबह की प्रशांति और सुंदरता का अनुभव करता सम्मोहित सा बुआ के पास से उठकर बाहर जाने लगा।
“मनीष, मनीष” पुकारते हुए संभव उसके निकट आ गया।
“तुम्हारे ही तो मजे हैं, सबका लाड़, दुलार, प्यार हथियाये बैठा है।” मनीष को बुआ के कमरे से बाहर निकलते देख संभव कहता है।
“नहीं नहीं भैया, ऐसा नहीं है, आप बड़े हैं, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता है।” संभव की वाणी में मजाक का पुट था, लेकिन उसकी आँखों में हंसी और थोड़ी सी नाराजगी दोनों का मिश्रण भरा हुआ था, जिससे मनीष उस वक्त संभव की भावनाओं को समझ पाने में खुद को असमर्थ पा रहा था। साथ ही उसे विनया का कथन भी स्मरण हो आया कि उसने दूसरे की माॅं को हड़प लिया है। मनीष की स्थिति दिन प्रतिदिन उहापोह वाली होती जा रही थी। उसने कभी इस नजरिए से जिंदगी को सोचा भी नहीं था, वो अपनी माॅं की उंगली छोड़ किसी और के संग हो गया था, लेकिन वो स्त्री भी किसी की माॅं है और उसका प्यार उस बच्चे को भी चाहिए, ये तो कभी उसके जेहन ने सोचा ही नहीं।मनीष अपने जीवन के इस अज्ञात पथ पर चलने के बारे में सोचने लगा था, जिस पर उसने पहले कभी विचार नहीं किया था।
“छोड़ो भाई! संपदा आज चाय की कोई व्यवस्था नहीं है क्या? अभी तक तो मामी चाय पोहा लिए उपस्थित हो जाती हैं। कहाॅं हैं मामी?” मनीष के कंधे पर हाथ रख बैठक की ओर बढ़ता हुआ संभव संपदा पर नजर पड़ते ही पूछता है।
वो मामी जी की तबियत ठीक नहीं है, वो अपने कमरे में ही हैं।” संपदा के बदले किचन से निकलती कोयल उत्तर देती है।
“ओह, मुझे तो पता ही नहीं है, क्या हुआ मामी को।” संभव का ध्यान तत्काल अपनी मामी की दिशा में गया और वह तेज कदमों से अंजना के कमरे की ओर बढ़ा। मनीष संभव को इस तरह चिंतित देख ठगा सा रह गया। क्योंकि वो तो अभी तक अपनी माॅं के स्वास्थ्य के बारे में जानते हुए भी बैठा ही रह गया था।
मनीष अंजना के कमरे में गया और विनया चाय की ट्रे बैठक में लेकर आई।
“माॅं ने चाय पी”, मनीष ट्रे रखती विनया के झुके हुए उदास चेहरे की ओर देखकर पूछता है।
विनया की आवाज से मनीष ने महसूस किया कि कुछ गहरा और अजीब हो रहा है। इसे समझकर, वह असहज होते हुए विनया से पूछता है, “क्यों?”
“माॅं कह रही हैं कि उन्हें कुछ भी खाने पीने की इच्छा हो रही है, उठ कर बैठा भी नहीं जा रहा है उनसे।” मनीष के प्रश्न का उत्तर देती विनया उसकी ओर मुड़ कर कहती हुई विनया की ऑंखों ने दुनिया भर के उलाहने मनीष की ओर उछाल दिए। उसके उलाहने वाली नजरों ने मनीष को माँ की स्थिति की गंभीरता से भरपूर अहसास कराया। विनया ने मनीष के सवाल के माध्यम से उसकी आंतरिक दुख-सुख की भावनाओं को सही दिशा में प्रेरित किया
“और पापा ने”, मनीष विनया की ओर से नजरें हटाता हुआ पूछता है।
“उन्होंने भी मना कर दिया है।” विनया कहकर रसोई की ओर जाने लगी।
“लेकिन क्यों?” मनीष तेज आवाज में पूछता है।
विनया ठठकती है और बिना मुड़े कहती है, क”भी–कभी अपने माता–पिता की जरूरतों को खुद भी देख लेनी चाहिए। हर बात के लिए पत्नी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।” और तेजी से रसोई में चली गई।
“संपदा मम्मी, पापा के लिए अनार का जूस निकाल दो।” रसोई में सिर्फ संपदा को देख दरवाजे से ही मनीष कहता है।
“भैया, भाभी से कहो, मुझे आज रिहर्सल के लिए कॉलेज जल्दी पहुॅंचना है।” कहती हुई संपदा मनीष के बगल से निकल कर अपने कमरे में चली गई।
आसपास किसी को नहीं देख मनीष समझ नहीं पा रहा था कि वो किससे क्या कहे। “बुआ मम्मी, पापा के लिए अनार का जूस निकाल दीजिए, नाश्ता का समय हो गया है, उन दोनों तो चाय भी नहीं ली है।” सोचता सोचता मनीष आखिर बुआ के कमरे में जाकर कहता है।
“तुम्हारी पत्नी कहाॅं है, उससे कहो, बहू है, सास की सेवा भी नहीं कर सकती। ऐसे तो माॅं माॅं की रट लगाए बैठी रहती है।” बुआ थोड़ी तल्खी से कहती है।
मनीष को बुआ से इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी। उसे तसल्ली थी कि बुआ यहाॅं हैं तो सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहेगा। लेकिन अभी तो दिन ने ठीक से पंख फैलाए भी नहीं थे और घर पर बिखराव हावी होता लग रहा था। अब यह उसके लिए एक चुनौती बन गया था, जिसे समझने में वह अभी तक असमर्थ बना हुआ था। उसने आशा भरी नजर मंझली बुआ पर डाली, लेकिन वो निर्विकार भाव से बैठी रही।
मरता क्या ना करता वाली स्थिति में मनीष विनया को देखने अपने कमरे में आया और उसे मोबाइल में लगा देख भन्ना उठा, “ तुम यहां आराम से बैठी हो, नाश्ते का समय हो चला है। घर में अतिथि हैं, थोड़ा तो लिहाज कर लो।” वो जिस तरह शब्दों को चबा कर बोल रहा था, उससे स्पष्ट तौर पर जाहिर हो रहा था कि विनया को चिंतामुक्त देख उसकी नाराजगी चरम पर थी।
“मुझे लगा आज बुआ जी ही सब कुछ करेंगी। आखिर पहले भी वही सब कुछ संभालती रही हैं और मुझे ज्यादा कुछ आता जाता नहीं है मनीष। वो तो माॅं दिन भर लगी रहती हैं तो मैं उनके साथ लग जाती थी। आप बताइए क्या काम था।” विनया एक मिनट के लिए नजर ऊपर कर मनीष को देखता है, फिर नजर नीची कर मोबाइल के बटन दबाने लगी।
“अच्छा मम्मी पापा के लिए अनार का जूस निकाल दो।” खीझ और आदेशात्मक स्वर में मनीष कहता है।
“ओके” कहती विनया मोबाइल टेबल पर रख कर कमरे से बाहर आ गई।
“आ” विनया की चीख सुनकर मनीष के साथ साथ अंजना के अलावा घर के सभी सदस्य दौड़ कर रसोई में पहुॅंचे। अंजना को उसने पहले ही कह दिया “मिशन अंजना” जब तक कंप्लीट नहीं हो जाता है, कुछ भी हो जाए, वो कमरे से बाहर ना आएं।
विनया के चेहरे जूस का लिक्विड, बाहर अनार के दाने के साथ कई सारे बर्तन फैले हुए थे। जगह जगह जूस के छींटें पड़ने से ऐसा लग रहा था जैसे पूरा किचन मानो खून के धब्बे से सना हुआ था। सभी के मुॅंह और ऑंखों पर हतप्रभ होने के भाव छाए हुए थे।
विनया के चेहरे पर जूस की बूंदें टपक रही थीं, बाहर अनार के दानों से सजे हुए कई सारे बर्तन देखे जा रहे थे। जगह जगह जूस के छींटें किचन की खूबसूरती को बढ़ाता हुआ लग रहा था और इसके नतीजे में सभी की उमुख और आंखों में हतप्रभता के भाव साफ दिख रहे थे।
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आरती झा आद्या
दिल्ली
Please upload bhag 32
Intzar karna mushkil hai
Bakwaas