आत्मग्लानी – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : एक तो सर्दियों के दिन वैसे ही छोटे होते हैं उस पर से ठंड में काम करने का मन भी नहीं करता। रजनी को भी काम निपटाते निपटाते 1:00 बज गया, सोचा.. बच्चों को आने में एक घंटा है तब तक थोड़ी देर धूप का आनंद ले लिया जाए! जैसे ही रजनी धूप में अपनी बालकनी में जाकर बैठी, पति गिरीश का फोन आ गया, सुनो… रजनी, यार! गांव से ताऊजी ताईजी आ रहे हैं, ताऊ जी का कल चेकअप होना है तो वह दोनों भी घर पहुंचने  वाले होंगे,

तुम फटाफट से खाने की तैयारी कर लेना! क्या.. क्या कहा तुमने…? तुम्हारे गांव के रिश्तेदारों को और कोई काम नहीं है क्या…? जब देखो दिखाने के नाम पर शहर आ जाते हैं और फिर थोड़ी देर दिखाने के बाद शहर में घूमने का चस्का लग जाता है इनको और आने से दो-तीन घंटे पहले नहीं बता सकते थे, कि आ रहे हैं, मैं खाने की तैयारी कर लेती  टाइम पर! अब  क्या खाने की तैयारी करूंगी..? पूरा मूड खराब कर दिया! अरे यार… सुनो तो रजनी… उनका फोन तो 9:00 बजे आ गया था

किंतु आते ही ऑफिस में इतना काम, फिर उस काम के चक्कर में मुझे याद ही नहीं रहा ,अभी लंच के टाइम पर ही याद आया है और तुरंत तुम्हें फोन कर दिया ,अब तुम देख लेना,तुम्हें तो पता ही है की मेरे सारे घरवाले गांव में ही रहते हैं और ताऊजी ताई जी के तो अपनी कोई औलाद भी नहीं है अतः वह मुझे ही बेटा समझते हैं

और फिर वह अपने बेटे के यहां नहीं आएंगे तो फिर कहां जाएंगे ?कह कर गिरीश ने फोन रख दिया। थोड़ी देर बाद ताऊजी ताई जी का आगमन हो गया, गांव से बहुत सारा सामान लाए थे उनके लिए। ऊपरी मन से रजनी को खुश होने का दिखावा करना पड़ा, ताऊजी ताई जी को पानी पिलाकर वह किचन में गई और खाने की तैयारी में लग गई ।ताई जी ने देखा की रजनी अकेली रसोई का काम कर रही  है तो जाकर उसकी थोड़ी सी मदद करवाने चलदी किंतु जैसे ही वह रसोई में जाने लगी,

उन्होंने रजनी को बडबडाते हुए सुन लिया, रजनी कह रही थी… पता नहीं कब अकल आएगी गांव वालों को, जब देखो मुंह उठा कर चले जाते हैं। यह कोई टाइम है  आने का, या तो खाना खाकर आओ, या इतना बड़ा शहर पड़ा है बाहर भी तो खाना खाकर आ सकते थे, पर नहीं… इन्हें तो अपनी बहू के हाथ का खाना खाना है!

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हम तो उनके नौकर लग रहे हैं जैसे यहां पर! ताई जी सुनकर वापस आ गई और ताऊजी से धीरे से कुछ कहा! इतनी देर में गिरीश भी घर आ गया! गिरीश के आते ही ताऊ जी ने कहा…. बेटा गिरीश.. हमें अभी निकलना होगा, अचानक से जरूरी काम याद आ गया! लेकिन ताऊजी…. खाना तैयार है, खाना तो खा कर जाइए! और आपको डॉक्टर को भी तो दिखाना है! नहीं.. नहीं बेटा… पहले वह काम जरूरी है, हमें गांव जाना होगा!

  बहुत जरूरी काम आ गया ,रजनी भी कहती रह गई.. अरे ताई जी.. खाना तैयार है! नहीं बहू फिर किसी दिन… आज थोड़ा जल्दी में है, और ऐसा कहकर ताऊजी ताई जी दोनों चले गए। रजनी को कुछ-कुछ समझ में आ रहा था पर अब क्या कर सकती थी! उसे मन ही मन अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था कि ताऊजी ताई जी इस तरह से यहां से चले गए ,पर अब आत्म ग्लानी का क्या फायदा ?

6 महीने बाद रजनी के अचानक से पेट में दर्द हुआ गिरीश उन्हें लेकर बड़े अस्पताल पहुंचा जहां देखा ताई जी भी बैठी हुई है। पूछने पर पता चला ताऊ जी का अंदर चेकअप हो रहा है। जब गिरीश ने कहा कि आपने ताई जी बताया नहीं? या तो मैं आ जाता या आप घर पर आ जाते। तो ताई जी ने कहा, नहीं बेटा हमने पास में ही एक होटल में कमरा ले लिया है

वहां कोई दिक्कत नहीं है, अस्पताल भी पास में है, आने जाने का समय भी बच जाता है।  गिरीश ताऊजी को देखने अंदर चला गया और रजनी ताई जी को देखते ही उनके पैरों में पड़कर माफी मांगने लगी! ताई जी मुझे माफ कर दीजिए मैंने आपका उस समय अनादर किया था मैं आज तक उसे आत्म ग्लानी से मुक्त नहीं हो पाई हूं ।अगर आज आप मेरे साथ घर नहीं चलेंगे तो मुझे लगेगा आपने मुझे कभी माफ नहीं किया।

आपने तो हमें अपने बेटा बहू समझा था पर हमने तो आपको मेहमान बनाकर पराया कर दिया, हो सके तो मेरी गलती के लिए मुझे क्षमा कर देना। रजनी को आत्मग्लानी से पीड़ित देख ताई जी का मन द्रवित हो गया और उन्होंने रजनी को माफ भी कर दिया। तब उन्होंने बताया कि उन्होंने तो उसे दिन  ताऊ जी को भी यह बात नहीं बताई थी,

बल्कि गांव में ही किसी काम का बहाना लेकर ताऊ जी को यहां से लेकर चली गई थी, क्योंकि उस दिन ताई जी का मन बहुत ज्यादा दुखी हुआ था। किंतु आज आज रजनी की माफी से उनका मन भी पिघल गया और वह रजनी के साथ घर जाने के लिए तैयार हो गई।

  हेमलता गुप्ता स्वरचित

 आत्मग्लानी

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