Moral Stories in Hindi : वरुण एक आधुनिक सोच वाला युवा था। वह कोई प्राइवेट नौकरी करता था नौकरी के साथ-साथ एक समाजसेवी भी था। उसकी नौकरी से अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी जिससे उसका गुजारा सही ढंग से चल रहा था।
लेकिन वहीं पर उसके माता-पिता थोड़ा पुराने खयालातों के थे। समाज सेवा के कार्य के दौरान ही वरुण की एक विधवा महिला से मुलाकात हुई जो एक बच्ची की माँ भी थी।
वरुण की उससे जान, पहचान बढ़ी धीरे-धीरे जान पहचान ने दोस्ती का रूप ले लिया और दोस्ती कब प्यार में बदल गई वरुण और दीप्ति (विधवा महिला) दोनों को ही पता नहीं चला।
वह महिला अपने पति की मृत्यु के बाद ससुराल से निकाले जाने के कारण अपनी बेटी के साथ मायके में रह रही थी।
वरुण ने उसको आर्थिक और मानसिक संबल देकर बहुत मदद की लेकिन अकेली महिला का समाज में रहना बहुत दुष्कर है यह बात वरुण भलीभांति समझ रहा था।
लेकिन वह सोच रहा था कि उसके माता-पिता तो इतने पुराने विचारों के हैं कि वे शायद ही दीप्ति को बहू के रूप में स्वीकार करेंगे।
फिर भी वरुण इस प्रयास में था कि जब उसके माता-पिता बहुत खुश दिखेंगे तब वह धीरे-धीरे उन्हें राजी कर लेगा।
वरुण की मदद से अब उस महिला को अपने पति की सरकारी नौकरी भी मिल गई थी।
इसलिए अब वह आर्थिक रूप से मजबूत हो गई थी। वरुण का मिलना जुलना अब थोड़ा कम हो गया था। क्योंकि अब दीप्ति भी अपने ऑफिस चली जाती थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बच्ची स्कूल जाने लायक हो गई थी। इस दरम्यान वरुण ने कई बार, दीप्ति के साथ अपने विवाह की बात अपने माता-पिता के समक्ष रखी लेकिन हर बार उनकी ना ही रही। क्योंकि वो किसी विधवा और एक बच्ची की माँ को अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं करना चाह रहे थे।
उधर दीप्ति के घर पर दीप्ति के माता-पिता दीप्ति के दूसरे विवाह की तैयारियाँ कर रहे थे। उनका कहना था कि वे अपने जीते जी दीप्ति का घर बसा दें।
“वरुण तुमसे शादी नहीं करेगा बेटा, बेहतर है हम कोई अच्छा सा लड़का देखकर तुम्हें सेटल कर दें। यह बात दीप्ति की माँ ने जब दीप्ति से कही तो दीप्ति ने वरुण को भी बताई।
वरुण ने उस वक्त तो दीप्ति से कुछ नहीं कहा लेकिन मन ही मन कुछ बहुत सोच विचार करता रहा फिर अपने घर चला गया।
घर पहुँचकर उसने खाना खाया उसके बाद उसने पुनः अपने माता पिता से दीप्ति के बारे में जिक्र किया।
उसके पिता ने कहा,,, “वरुण तुम समझते क्यों नहीं हो? वह लड़की तुम्हें फंसाना चाहती है क्योंकि तुम अच्छे खाते-पीते घर से और इकलौती औलाद हो।”
वरुण ने अपने माता पिता को बहुत समझाया लेकिन वे राजी नहीं हुए। अंततः वरुण ने कुछ दिन बाद दीप्ति से मंदिर में शादी कर ली।
जब शादी के बाद वह दीप्ति को लेकर घर पर आया तो उसके पिता ने दरवाजे से ही लौटा दिया ये कहते हुए कि जिस संपत्ति और रुपए पैसे के लिए इस चालाक लड़की ने तुम्हें फंसाया है, वह संपत्ति और रुपया पैसा जब तुम्हें ही नहीं मिलेगा तो तुझ कंगाल को छोड़कर वह खुद ही चली जायेगी।
वरुण दीप्ति को लेकर वहाँ से चला आया ये कहते हुए कि “ना मुझे आपके पैसे चाहिए ना ही आपकी संपत्ति”
और कहीं अन्यत्र एक किराए का मकान लेकर रहने लगा।
सब कुछ ठीक चल रहा था एकदिन वरुण अपने ऑफिस टूर से शहर से बाहर गया हुआ था तभी उसके पिता को अचानक दिल का दौरा पड़ गया। उसकी माँ ने फोन पर खबर दी तो वरुण ने बताया कि वह तो शहर से बाहर है पहुँचने में वक्त लगेगा। जब तक पिता जी को पड़ोसियों की मदद से अस्पताल पहुंचाए तब तक वह भी पहुँच जाएगा।
इस कहानी को भी पढ़ें:
फिर यह खबर वरुण ने दीप्ति को भी फोन पर दे दी। खबर मिलते ही दीप्ति अपने ऑफिस की गाड़ी के साथ वरुण के घर पहुँच गई और उसके पिता को समय से अस्पताल पहुँचा दिया।
वे शीघ्र ही स्वस्थ्य हो गए। कुछ दिन बाद उन्होंने दीप्ति को बुलाकर क्षमा मांगी और घर पर आकर रहने के लिए कहा, तब दीप्ति ने कहा,,, “मुझे आपकी संपत्ति या रुपए पैसे नहीं चाहिए थे, मुझे तो सिर्फ आपका आशीर्वाद भरा हाथ ही चाहिए था।”
फिर वरुण की माता जी के बहुत आग्रह करने पर वरुण, दीप्ति और उसकी बेटी मिताली को लेकर अपने माता-पिता के साथ आकर रहने लग गया था।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश