Moral Stories in Hindi : “अरे!! कब से बुला रही हूं, ये बड़ी बहू तो सुनती ही नहीं है, कानों में रूई डाल ली है क्या?” सुमिता जी चिल्लाकर बोलती है, तो गरिमा तेजी से दौड़ती हुई आती है।
“मम्मी जी, आपने बुलाया? वो मै छत पर से कपड़े उतार रही थी, तो आपकी आवाज सुनाई नहीं दी।”
“अब फालतू की बहानेबाजी रहने दें, मुझे तेरी कामचोरी के नाटक सब पता है, अब चुपचाप रसोई में जाकर चाय बना लें, सर्दी हो रही है, मुझे चाय की तलब लग रही है, पर तुझे तो अपनी सास की परवाह ही नहीं है।” वो गुस्से से बोली।
गरिमा चुपचाप रसोई में चल दी और चाय चढ़ा दी, थोड़ी देर में घर की छोटी बहू बाजार से आ जाती है,” भाभी, मेरे लिए भी चाय बना देना, शॉपिंग करके मै थक सी गई हूं, रमा अंगड़ाई लेते हुए बोली।
गरिमा अपने काम में लगी थी, उसकी हालत घर में नौकरों के जैसी थी, हर कोई उसे आकर काम बता देता था, परिवार की बड़ी बहू बस कहने मात्र को थी, लेकिन उसकी घर परिवार में कोई इज्जत नहीं थी।
अभी दो साल पहले गरिमा की शादी सुमिता जी के बड़े बेटे उमेश से हुई थी, उमेश का काम धंधा मंदा ही चलता था, मतलब उसकी इतनी अच्छी कमाई नहीं थी, वो छह सात महीने में नया धंधा करता पर उसमें उसको जरा भी सफलता नहीं मिल रही थी, गरिमा गरीब घर से थी, माता-पिता ने घर-परिवार देखकर शादी कर दी। शुरू में गरिमा बड़ी खुश थी क्योंकि उसकी इतने अच्छे घर में शादी हुई थी, पर धीरे-धीरे
उसकी सारी खुशी चली गई, जब उसे पता लगा कि शादी के बाद पत्नी की इज्जत पति की कमाई से ही होती है, उमेश ज्यादा कुछ कमाता नहीं था और उसका और गरिमा का पेट बस इस घर में रहने के कारण पल रहा था, सुमिता जी गाहे-बगाहे उसे ताना भी दे देने लगी थी।
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” तेरा पति तो कुछ खास कमाता नहीं है, तू मेरे पति और छोटे बेटे की कमाई बर्बाद मत किया कर, खाना नापतौल कर ही बनाया कर, ऐसे खाना बचेगा तो तेरे भरोसे तो घर चल लिया।”
गरिमा अपमान के घुंट पी लेती, क्योंकि पैसा हो तो इंसान बोलता है, उमेश भी सब जानता था, लेकिन चुप रहता था।
अभी साल भर पहले छोटे देवर नितेश की शादी रमा के साथ हुई थी, नितेश की एक अच्छी कंपनी में नौकरी थी तो उसे पैसे वाला ससुराल मिला था।
रमा को अपने पैसों और पति की कमाई पर ब़ड़ा घमंड था, और घर खर्च में वो गरिमा के मुक़ाबले ज़्यादा हिस्सा देती थी, इसलिए सुमिता जी भी उससे कुछ नही कहती थी।
गरिमा पहले सास का सब सुनती और सहन करती थी, पर अब देवरानी रमा भी उसकी इज्जत नहीं करती थी और कुछ भी कह देती थी।
एक दिन गरिमा का गला भर आया तो उसने रमा को बोल दिया, “रमा मै तुमसे बड़ी हूं, तुम्हारी जेठानी हूं, तुम मुझे पैसों का ताना देने वाली कौन होती हो? मै मम्मी जी की सुनती हूं पर तुम्हारी नहीं सुनूंगी।”
अपनी जेठानी को बोलते देख रमा ने घर में हल्ला मचा दिया, पूरे घर में तूफान ला दिया और नितेश को लेकर अलग होने की धमकी दे दी, और गरिमा को मजबूर कर दिया कि वो रमा से माफी मांगे।
अपने आत्मसम्मान को कुचलकर गरिमा ने अपनी गलती नहीं होते हुए भी उससे माफी मांगी, अब गरिमा और भी चुप-चुप रहने लगी थी।
उमेश अपनी हरसंभव कोशिश कर रहा था पर उसे धंधे में कहीं भी सफलता नहीं मिल रही थी, एक दिन गरिमा ने सुबह सबके लिए चाय बनाई, और चाय के कप पर थोड़ी चाय के निशान लग गये तो रमा ने गुस्से से कप फेंक दिया,” छी: छी: इतने गंदे कप में चाय दी है, आपकी मां ने आपको कुछ सिखाया नहीं क्या?
ये सुनते ही गरिमा से रहा नहीं गया, “ये मेरी मां के ही संस्कार है जो इतना सुनते हुए भी मै यहां रह रही हूं।”
तभी रमा बोलती है, ये आपकी मां के संस्कार नहीं है, ये आपकी मजबूरी है, भाई साहब तो खास कमाते नहीं है, आप तो ससुराल की धन-दौलत लेने की वजह से यहां पर टिकी हुई हो।”
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सुमिता जी रमा का समर्थन करती है, सही है इसकी नजर तो हमारी दौलत पर है, तभी तो यहां रह रही है, घर खर्च में भी खास हिस्सा नहीं देते हैं, और दोनो जने हम पर बोझ बने हुए हैं।”
आज गरिमा का आत्मसम्मान चीखने लगा,” मम्मी जी ना मुझे आपके पैसे चाहिए, ना ही आपकी संपत्ति, मुझे आपकी दौलत का लालच नहीं है,आज से ये सब आपको मुबारक, हम अपने रहने और खाने का ठिकाना ढूंढ लेंगे, मै आज ही अपने पति के साथ ये घर छोड़ दूंगी, आपको तो मुफ्त की नौकरानी मिली हुई थी, अब आपका घर कैसे संभलेगा? ये आपको सोचना है, उमेश ने भी गरिमा का साथ दिया और दोनों ने घर छोड़ दिया। सुमिता जी, रमा और नितेश देखते ही रह गए।
गरिमा ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने में देरी की पर उन्होंने किराये का कमरा लिया, और कुछ ही महीनों में उमेश का धंधे ने रफ्तार पकड़ ली और दो-तीन सालों में वो शहर का जाना-माना सफल बिजनेसमैन बन गया।
उधर रमा ने अपनी सास सुमिता जी को अपने घर की नौकरानी बना लिया, अब उसे गरिमा की बहुत याद आने लगी, जो उसके इशारों पर हर काम करती थी।
सुमिता जी, रमा और नितेश ने लाख बार कोशिश की कि भैया -भाभी उनके साथ रहें पर गरिमा और उमेश वापस घर उनके साथ रहने को नहीं आये।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित