Moral Stories in Hindi : निशा आज अपने बहू के द्वारा दिए गए आघात से उबर नहीं पा रही थी उसका सीना छलनी हो गया था।वह गुमशुम सी हो गई थी अकेली बैठी रहती घंटों किसी से बातचीत करने का मन ही नहीं करता उसका धीरे धीरे वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थी जिसकी वजह से रात को वो सो नहीं पाती थी ।
नींद की बहुत समस्या हो गई थी रात तीन चार बजे तक जगती रहती थी सुबह के समय नींद आती थी तो सुबह उठने का समय हो जाता था। ऐसा क्या हो गया था निशा के साथ ।करोना काल में निशा की बेटी संक्रमित हो गई थी बहुत कोशिशों के बावजूद वो अपनी बेटी को बचा नहीं पाई ।उसका ग़म इतना बड़ा था कि निशा उससे बाहर ही नहीं निकल पा रही थी।
एक बेटा था जिसकी शादी तीन साल पहले हो चुकी थी शादी को तीन साल हो चुके थे निशा कहती बेटा अब परिवार बढ़ाने की सोचों लेकिन वो सुनता ही नहीं था । ज्यादा समय बीत जाने पर समस्या हो जाती है निशा जगह-जगह मंदिरों में सिर नवातीं और मन्नतें मांगती रहती थी ।और बहू बेटे में थोड़ी खटपट रहती थी तो निशा सोंचती कि एकाध बच्चा हो जायेगा तो परिवार में दोनों रम जायेंगे तो सब ठीक हो जायेगा ।
फिर अचानक से एक दिन खबर आई कि खुशखबरी है निशा ने ईश्वर का धन्यवाद किया। फिर पता चला कि बच्चे जुड़वां हैं तो और खुशी का ठिकाना न रहा।बेटा बांबे में नौकरी करता था । निशा का घर बहू की ससुराल लोकल ही था बेटे ने बोला डिलिवरी घर पर ही करायेंगे दोनों परिवारों से मिलकर मदद हो जायेगी और फिर साल डेढ़ साल घर पर रहकर बच्चों की देखभाल भी हो जायेगी। लेकिन बहू निशा को पसंद नहीं करती थी जबकि निशा स्वभाव से काफी अच्छी थी और हर काम में भी होशियार थी । निशा तो चाहती थी कि बहू को प्यार से रखे पर बहू का नाक ही चढ़ा रहता था ।
बेटी को खो देने के बाद बहू में ही अपनी बेटी देख रही थी निशा ।बेटा बहुत खुश था कि आप लोग कि देख रेखा में बच्चे पलेंगे आप लोगों का भी मन लग जायेगा। फिर आठवां महीने से पहले बेटे बहू घर आ गए । ऊपर नीचे का मकान था निशा ने बहुत कहा कि नीचे रह लो जो मन करेगा वो मैं बना बना कर खिला दूंगी लेकिन बहू नहीं मानी ऊपर चली गई ।अब निशा की उम्र भी बासठ की हो रही थी । फिर भी वो समय-समय पर खाना नास्ता सब ऊपर पहुंचाती थी ।
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फिर डिलिवरी हुई बहू का मायका अस्पताल से पास था इसलिए उसकी मम्मी खाना पीना देखकर करती रहती थी।बस घर आने के बाद सारी कहानी उलट हो गई बहू चाहती थी कि मेरी मम्मी भी मेरे ससुराल में रहे ।और वो बहाना करके कि निशा जी आप अकेले नहीं कर पायेगी आ गई । ऐसे ही एक दिन निशा खाना लेकर जब ऊपर गई तो मम्मी से बच्चों के बारे में बात हुई कि बच्चे कैसे है तो उन्होंने कहा बच्चों को थोड़ी सदीं है तो निशा बोली ठीक हो जायेगा कोई बात नहीं । फिर बीस दिन बाद बहू की मम्मी बेटी और बच्चों को लेकर घर चली गई ।
कुछ दिनों बाद निशा बच्चों से मिलने गई तो कहा बहू से कि घर आ जाओ कुछ पूजा पाठ करा लें तो वो कहने लगी नहीं मैं वहां नहीं आऊंगी आप मेरे बच्चों को खा जायेगी ।आप बहुत घटिया औरत है आप जैसी तो कोई सांस नहीं होगी बहुत बदतमीजी की उसने निशा के साथ निशा का तो दुःखों से छलनी हो गया बताओ ऐसी बहू क्या सोचा था
और क्या हो गया ऐसा मैंने क्या कर दिया है ।जो ऐसी भाषा बोल रही है बहू इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा रही हैं निशा का तो अस्तित्व ही तार तार हो गया था। यही सोचते सोचते निशा डिप्रेशन का शिकार हुई जा रही थी क्या सोचा था और क्या हो गया निशा ने भी सोचा जाओ रहो मायके में अब मेरे घर तुम आना भी नहीं ।और क्या कह सकते हैं आजकल की लड़कियों को ।जो हर समय बड़ों से बदतमीजी करते हो उनसे कैसे निपटा जाए ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश