आशीर्वाद – संगीता श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

चेतन के पापा सरकारी नौकरी में थे। हार्ट अटैक के कारण उनकी मौत हो गई थी। उस समय चेतन मात्र 10 साल का था। मां ने उसकी परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। भले ही और चीजों में कमी हो जाए लेकिन पढ़ाई में कभी उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दी मां ने। शुरू से हर कक्षा में प्रथम आता था । सभी शिक्षकों का चहेता था । स्कूल में उसे स्कॉलरशिप भी मिलता था।ग्रेजुएशन के बाद प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में लग गया था ।उसने रेलवे के एक अधिकारी के पोस्ट की रिटेन परीक्षा पास कर ली थी। इंटरव्यू बाकी रह गया था जिसकी तैयारी में जुटा था।

उस दिन जब कोचिंग से वापस घर आया तो मां को दर्द से तड़पते हुए देखा। वह घबरा गया। ‌”क्या हुआ मां?” “बेटा ,पेट में अचानक से दर्द हो गया। बहुत कोशिशों के बाद मैं उठ नहीं पा रही हूं जिससे डॉक्टर के पास जा सकूं। अब तुम आ गए हो बेटा, मुझे डॉक्टर के पास ले चलो।”मां ने कहा।

झटपट चेतन ऑटो से मां को डॉक्टर के पास ले गया। सारे टेस्ट हुए। पता चला किडनी में स्टोन है जो कहीं नस में फंस गया है। डॉक्टर ने दवा दी और कहा यदि दो-चार दिनों में आराम न मिला तो तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा। डॉक्टर के निर्देशानुसार  दवा चली लेकिन दर्द में कमी नहीं हुई। ऑपरेशन ही उसका निदान था,

पर जोखिम भरा था।

संजोग कि जिस दिन ऑपरेशन का डेट मिला उसी दिन चेतन के इंटरव्यू का भी डेट था। उसने  मां से साफ मना कर दिया था कि वह इंटरव्यू देने नहीं जाएगा। मां भी उसकी बातों को मानने के लिए तैयार नहीं थी। उसे मना रही थी।

“जिद्द मत कर बेटा! जा ,इंटरव्यू दे आ। क्यों मेरे पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुला है। मुझे कुछ नहीं होगा।”चेतन की मां ने उसे समझाते हुए कहा।”तुम ऐसे क्यों कह रही हो मां! मैं तुम्हें ऐसी हालत में छोड़कर चला जाऊं? नहीं मां, नहीं जाऊंगा मैं ।आज तक जब भी परीक्षा देने गया तू मेरे साथ जाती रही हो।  तुम्हारे बगैर मैं इंटरव्यू देने .. हरगिज़ नहीं …. नहीं जा सकता।”कह, चेतन की आंखों में आंसू झिलमिलाने  लगे।

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चेतन हमेशा से मां के साथ ही परीक्षायें देने जाता रहा है। मां कहीं बाहर बैठी रहती और उसकी प्रतीक्षा करती।”आज मैं अकेले जाऊं! वह भी मां को इस स्थिति में छोड़कर! नहीं, नहीं जाऊंगा मैं।”चेतन जाने से इंकार कर रहा था।

मां और दोस्तों के लाख समझने के बावजूद भी चेतन टस से मस नहीं हो रहा था। अंततः मां ने जब कसम का हवाला दिया तो वह तो रोने लगा।”क्यों मुझे कसम में बांध रही हो। क्यों मुझे विवश कर रही हो ।”तब मां ने उसे गले लगाते हुए कहा , “बेटा, मैं  ना सही,पर मेरा  आशीर्वाद तो तेरे साथ ही रहेगा।”मेरी बात मान और चला जा।” और पुनः उसे अपने आलिंगन में भींच लिया।

न चाहते हुए भी चेतन को विवश हो जाना पड़ा।

अपने जिगरी दोस्त रमन को अस्पताल में मां के पास बैठा, मां का चरणस्पर्श कर इंटरव्यू देने चला गया।  जब लौटा तो मां से लिपटकर कहा ,”मां मेरा इंटरव्यू बहुत अच्छा गया।तेरा आशीर्वाद जो साथ था।”वह मां के सिरहाने बैठ मां का सिर सहलाने लगा।

रात में ऑपरेशन होना था।  जब डॉक्टर ऑपरेशन के लिए ले गए तो वह अस्पताल में स्थित मंदिर में भगवान के सामने बैठ दुआएं मांग रहा था । वह बहुत घबरा रहा था।मां के बिना वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता।

ऑपरेशन सही रहा। उसने मां के लिए बहुत सारी मन्नतें मांग रखी थी। 1 सप्ताह के बाद डॉक्टर ने  अस्पताल से छुट्टी कर दी। चेतन ने मां की खूब सेवा की। मां धीरे-धीरे स्वस्थ हो गई।

एक दिन डाकिए के द्वारा एक लिफाफा मिला। उस समय चेतन नहीं था ।मां ने उस लिफाफे को खोला। खोलते ही उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े। चेतन की जॉइनिंग लेटर थी वह! चेतन के आने से पहले, मां ने झट से पूजा की थाल सजाई और दरवाजे के पास बैठ चेतन के आने की प्रतीक्षा करने लगी। जैसे ही चेतन पहुंचा। मां ने कहा ,”बेटा तुम्हारी मेहनत रंग लाई। तुम्हारी नौकरी लग गई।”चेतन ने चहकते हुए कहा,”क्या?”  ” हां बेटा! अभी -अभी डाकिया दे गया है।”

मां ने उसकी आरती उतारी ,कुमकुम लगाया और गले लगाया। चेतन ने मां के पैर छुए और गले से लिपटते हुए का कहा,  “यह सब तुम्हारे आशीर्वाद का फल है मां !बगैर तुम्हारे आशीर्वाद का कुछ भी संभव नहीं है…… कुछ भी नहीं….। आज जो कुछ भी हूं, तुम्हारे प्यार और आशीर्वाद के बदौलत हूं।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित, अप्रकाशित।

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