“आखिर प्रॉब्लम क्या है तेरी सुनीता, इतना बड़ा घर, दौलत का ढेर, चार चार नौकर, आखिर एक लड़की को और क्या चाहिए शादी के बाद अपनी ज़िंदगी में..?” काफी अरसे के बाद मिली सुनीता की सहेली आशा ने सुनीता को उदास देखकर उससे सवाल किया।
“आशा तू कह रही थी कि पिछले हफ़्ते तेरी बीमारी में अशोक जीजू ने तेरा बहुत ध्यान रखा,तीन दिन ऑफिस से छुट्टी भी ली..?”
“हां पर, मैं क्या कह रही हूं और तू क्या पूछ रही है..!”
“और जब स्कूल से तेरे बच्चें आते हैं, उनकी प्यारी प्यारी बातों में गुम होकर उन्हें उनकी पसंद का खाना खिलाना तुझे अलग ही सुख देता है..!”
“ऐसा तो सभी के घरों में होता है..!”आशा उसे देखती हुई बोली।
“अशोक जीजू तेरे मम्मी पापा को बहुत इज्ज़त देते हैं, अंकल आंटी उन जैसा दामाद पाकर खुद को काफ़ी सौभाग्यशाली समझते हैं..!”
“तू कहना क्या चाह रही है..?” आशा कुछ संशय भरे स्वर में बोली।
“जीजू घर के महत्वपूर्ण मामलों में तेरी सलाह लेते हैं, सास ससुर का व्यवहार तेरे साथ बहुत अच्छा है, शादी के बाद भी तुझे बराबरी का दर्ज़ा मिला है ससुराल में,बोल, सही है ना ये, है ना, बोल ना आशा..बोल…” सुनीता की आवाज़ जैसे कहीं दूर से आती लग रही थी।
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आशा ने उसे गले से लगा लिया। सुनीता फूट फूट कर रो पड़ी।
“मुझे शादी के बाद अपनी ससुराल में हमेशा दोयम दर्जा मिला है, मध्यमवर्गीय परिवार से लाई गई मैं सदा से इन सबकी नज़रों में जैसे खटक ही रही हूं, मैं भी चाहती थी कि राजेश दो घड़ी मेरे पास बैठे, मैं भी अपने बच्चों पर जी भर कर ममता उड़ेलू, मैं भी पढ़ी लिखी हूं, राजेश के साथ उसकी कंपनी में हाथ बटायू, पर इस घर में तो मुझे बस सजावटी गुड़िया बनाकर रखा है, अपने गहरे रंग की फ्रस्टेशन राजेश मुझे दिन रात व्यंगबाणों से छलनी करके उतारते हैं, अक्षय के जन्म के बाद उसे कितनी जल्दी हॉस्टल भेज दिया, बस अगर बहू साफ रंग की आ जाए तो हमारे पोते पोतियां भी गोरे होंगे, इस घटिया सोच के साथ लाई गई मैं इस घर में, राजेश ने तो मुझे बस भोग की वस्तु समझ रखा है, कभी मायके जाना हो तो मेरे मम्मी पापा को बीच में ले आते हैं कि मेरी परवरिश कैसी बेकार हुई है, बेटी के ज़रिए मां बाप उसकी अमीर ससुराल से अपने लिए पैसे मंगवाते रहते हैं… बता आशा ऐसे माहौल में सांस ले सकती है तू..?”
आशा हैरान थी उसकी बातें सुन कर। वो तो समझती थी कि राजेश जी चाहे दबे रंग के हो पर दिल से बहुत नेक हैं, शादी वाले दिन हर कोई जब सुनीता की खूबसूरती की तारीफ़ कर रहा था तो कितनी प्यार और प्रशंसा भरी निगाहों से सुनीता को देख रहे थे। आशा को राजेश जी बहुत नेक इन्सान प्रतीत हुए पर अपने अंदर वो इतना ज़हर छिपा कर रखे हुए हैं ये आज ही पता चल रहा था उसे। सुनीता की हालत अब उससे देखी नहीं जा रही थी।
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“मैं राजेश से कहना चाहती हूं आशा कि मैंने तो पहले दिन से उन्हें दिल से चाहा है, रंग नहीं मैं तो इंसान के व्यक्तित्व की मुरीद होती हूं, उन्होंने मुझसे जबरदस्ती तो नहीं की थी, मैंने उन्हें पसंद करके ही उनसे शादी की थी पर शादी के बाद मुझे ये अपना कौन सा रूप दिखा दिया उन्होंने, मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि ना मुझे आपके पैसे ना चाहिए, ना आपकी संपत्ति, मुझे तो उनका प्यार, उनका साथ, उनका थोड़ा सा वक्त चाहिए, यही मेरी असली दौलत होगी, मुझे सोने का पिंजरा नहीं बल्कि हम पति पत्नि के साथ से बना प्यार भरा घोंसला चाहिए जहां मैं खुल कर सांस ले सकूं… कब ये वक्त आएगा मेरे जीवन में आशा… आखिर कब…?”
रोते रोते सुनीता कि हिचकियां बंध गईं थीं। आशा के पास आज उसके सवाल का जवाब नहीं था। वो चुपचाप सुनीता की पीठ सहलाती रही।