सबक – शिप्पी नारंग: Moral Stories in Hindi

“पापा जी जैसे कल बात हुई थी, पेपर तैयार हो गए हैं आप साइन अभी करेंगे या फिर बाद में ” शुभ्रा ने अपने ससुर सूरज जी से पूछा जो नाश्ते के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे साथ में शुभ्रा के पति मोहित और सासू मां वेदिका सरीन भी बैठी थी । “अच्छा तैयार हो गए ?  लाओ दिखाओ मैं  साइन कर देता हूं ।

मेरा चश्मा…. कमरे में भूल आया मैं ले कर आता हूं “। “मैं ले आती हूं पापा जी”। ” नहीं तुम तब तक कॉफी बनाओ मैं लाता हूं मोबाइल भी कमरे में रह गया है ।” “कौन से पेपर,  कैसे पेपर” वेदिका जी ने  बहू से पूछा – “दिखाओ मुझे ” शुभ्रा के हाथ में पकड़ी हुई फाइल की तरफ उन्होंने हाथ बढ़ाया ।

शुभ्रा ने  फाइल पकड़ा दी फाइल पढ़ते ही गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया “ये क्या मजाक है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या”  उन्होंने शुभ्रा से पूछा   शुभ्रा कुछ कहती कि सूरज जी आ गए और पत्नी की तरफ देखा और पूछने लगे ” क्या हुआ इतना क्यों गुस्सा हो रही हो ?”  “आप इन पेपर पर साइन करने लगे हो पता है आपको इन पेपर पर क्या लिखा है ?

इसमें लिखा है कमला नगर वाली अपनी बड़ी दुकान और द्वारका वाला मकान आप शुभ्रा और मोहित के नाम से कर रहे हो ।”  “हां , मुझे पता है कल सारी बातें तय हो गई थी तो मैंने ही मोहित से कहा था कि पेपर बनवा लो मैं साइन कर दूंगा तो फिर बाकी फॉर्मेलिटीज भी हो जाएंगी ।” 

“कब हुई सब बातें ? मैं कहां थी ? अच्छा…. कल मैं दीदी के घर गई थी तो पीछे से इसने आपको पट्टी पढ़ा दी और रात को  आपने भी मुझे कुछ बताया नहीं कि क्या बातें हुई और क्या फैसला हुआ।”  “मैं बताने वाला था….” “छोड़ो,  अब मैं कहे देती हूं आप इन पर साइन नहीं करेंगे किस चीज की तुम्हें कमी दी है शुभ्रा ? 

कभी तुम्हें पैसे की कमी दी,  बच्चे दोनों तुम्हारे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं,  घर में सभी सुख सुविधाएं हैं किसी चीज के लिए तुम्हें कभी मना नहीं किया,  बाहर भी जब तब तुम घूमने जाते हो,  प्रोग्राम बनाते हो तो कोई मनाही नहीं, किसी भी तरह की कोई रोक-टोक नहीं लगाई तो अब यह मकान और दुकान अपने नाम कराने की तुम्हें क्या सूझी” । 

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वेदिका जी ने शुभ्रा से पूछा और फिर बेटे की तरफ देखा – “बेटा मेरा ऐसा कभी भी नहीं सोच सकता यह सब तुम्हारी सोच है और तुमने पापा को भी अपने शीशे में उतार लिया । बिल्कुल नहीं,  इस घर में यह मेरे नाम वह तेरे नाम तो बिल्कुल नहीं चलेगा । आप साइन नहीं करेंगे ।  सुन रहे हैं ना आप ”  वेदिका जी ने पति की तरफ देख कर कहा ।

  “पर मम्मा मुझे भी तो अपना भविष्य देखना है ना सब साझे का है हमारे नाम तो कुछ भी नहीं है कल को क्या पता क्या हालात  हो जाए तो मुझे भी तो अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है ना ।”  बहू की तरफ से जवाब आता ।  “हद हो गई साझे का है तो क्या हुआ कल को सब कुछ तुम्हारा ही तो होना है हमारा और कौन है जो कुछ है तुम तीनों मोहित , रोहित पल्लवी का ही तो है ” उन्होंने अपनी तीनों बच्चों का नाम लिया ।

  “मम्मी कल किसी की नियत क्या हो जाए,  बिजनेस में घाटा हो जाए,  कुछ भी हो सकता है  ना मम्मा तो फिर मेरा और बच्चों का क्या होगा ?  कम से कम एक दुकान और एक मकान तो होगा तो फिर चिंता कम हो जाएगी ना ।” ” कमाल करती हो तुम,  तुम्हें क्या लगता है हमें तुम्हारे और बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है ? 

हम क्या तुम्हारे लिए और बच्चों के लिए कुछ नहीं करेंगे ? तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया ।”  वेदिका जी ने पूछा ।  “तो फिर, मम्मा आपने कैसे सोच लिया कि जहां हम पल्लवी की शादी की बात चला रहे  हैं  वो लोग क्या उसके भविष्य के बारे में नहीं सोचेंगे ? आप ने क्या सोचकर पल्लवी के होने वाले ससुराल में यह बात कह दी कि पहले मेरी बेटी के नाम एक मकान व बिजनेस का कुछ हिस्सा कीजिए तभी हम आगे रिश्ते के लिए सोचेंगे साझे का बिजनेस है, 

यह आप ही ने कहा था ना कि मैं दूर की दृष्टि  रखती हूं , पढ़ी लिखी हूं , थोड़ी समझदारी भी रखती हूं । मम्मी जी,  समझदार तो मेरे मम्मी पापा भी तब थे जब मोहित के साथ मेरी बात चल रही थी वह भी कह सकते थे कि साझे का बिजनेस है कल को क्या होगा कौन जानता है लड़के के नाम तो कुछ भी नहीं है ,

पर ऐसा उन्होंने कुछ नहीं कहा बस उन्होंने तभी हां कर दी जब पापा जी ने मेरे सिर पर हाथ रखकर मेरे पापा से कहा खन्ना साहब मैं इस घर से बेटी ही लेकर जा रहा हूं बहू नहीं मेरी पल्लवी तो दूसरे घर चली जाएगी यही बेटी जिंदगी भर मेरे साथ रहेगी पापा जी के इन्हीं शब्दों में उन्हें बेटी का भविष्य दिख गया था

अब आप पल्लवी के लिए ऐसा सोच रही है कि भविष्य में पता नहीं क्या होगा आप जानती भी हैं कि वो एक संयुक्त परिवार है  सब इकट्ठे रहते हैं,  बिजनेस भी मिलकर चलाते हैं।  हम जब घर गए थे तो दोनों बहुओं ने कितने आदर सम्मान से हमारा सत्कार किया था तो यह बड़ों की परवरिश का ही नतीजा था ना कि सब लोग प्यार से  रह रहे हैं

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आपने सोचा कि आपका यह कदम उस घर को तोड़ भी सकता है इसलिए मैंने भी सोचा कि जो समझदारी मेरे मम्मी पापा ना दिखा सके वही समझदारी मैं ही दिखा दूं और अपना व बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर लूं ।” शुभ्रा यह कह कर चुप हो गई। वेदिका जी ने पति की तरफ समर्थन के लिए देखा तो उन्होंने एकदम कह दिया “मेरे ख्याल से वह गलत नहीं कह रही जब तुम अपनी बेटी के लिए चिंतित हो तो वह भी अपने बच्चों की चिंता करेगी ना।”

अब वेदिका जी को लग गया कि वह बेटी के भविष्य के लिए कुछ जरूरत से ज्यादा ही फिक्रमंद हो गई हैं अगर के घर के बड़ों ने बच्चों को प्यार विश्वास और अच्छे संस्कार दिए हैं तो उनके भविष्य के लिए भी तो कुछ कदम उठाएंगे । उन्होंने फाइल पति की तरफ बढ़ाते हुए कहा – “मैं समझ गई मैंने गलत किया पर आप चिंता ना करें मैं बात संभाल लूंगी शुभ्रा भी सही है।  आप साइन कर दीजिए”। 

तब शुभ्रा ने उनके हाथ से फाइल लेकर पेपर  निकाले और फाड़ दिए और बोली – “मम्मा आप लोगों के रहते मुझे अपनी और बच्चों के भविष्य की कोई चिंता है हमें सिर्फ हमारे सिरों पर आपका हाथ चाहिए , आपका आशीर्वाद चाहिए,  प्यार चाहिए ।मैं सिर्फ आपको एहसास कराना चाहती थी कि जो आप बोल कर आई हैं वह गलत था।

क्यों पापा जी मैं  ठीक कह रही हूं ना”।  पापा जी ने शुभ्रा के सिर पर हाथ रखा और हंसकर बोले “तुम भाषणबाजी अच्छी कर लेती हो मैंने तो कुछ डायलॉग दिए थे तुमने तो पूरी किताब ही लिख डाली “।  “क्या मतलब ?” वेदिका जी ने हैरानी से पूछा – “कुछ नहीं,  तुम अपनी कॉफी पियो”  और कमरे में पापा जी, मोहित और शुभ्रा की  हंसी गूंज उठी।

 

शिप्पी नारंग

नई दिल्ली.

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7 thoughts on “सबक – शिप्पी नारंग: Moral Stories in Hindi”

  1. शब्दकोश में वे अधिक शब्द ही नहीं जिनसे मैं आपकी प्रशंसा कर सकूं केवल दो ही शब्द हैं
    स्नेहमयी आशीर्वाद

  2. काश हर घर मे इस प्रकार की सोच वाली बहू और श्वसुर हों तो हर घर स्वर्ग बन जाय। बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है।

  3. कभी कभी बच्चों के द्वारा बड़ों को अच्छी सीख मिलती है।

  4. बहुत ही शिक्षाप्रद एवं अपने अपने दायित्वों का एहसास कराती सुंदर रचना…..

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