hindi Stories : “रवि बेटा! मुझे उर्वशी बेटी बहुत पसंद है,तुम बिना देर किए उर्वशी के माता-पिता को निमंत्रण देकर अपने गांव वाले घर पर बुलाओ, में जल्दी से जल्दी तुम दोनों की शादी करना चाहती हूं” शांति देवी उर्वशी को अपने गले लगाते हुए बोली। शांति देवी की बात सुनकर उर्वशी के मन की खुशी उसके चेहरे पर छलक रही थी।”अम्मा! मैं उर्वशी को उसके घर छोड़कर आता हूं” रवि उर्वशी को साथ लेकर बाहर जाते हुए शांति देवी से बोला। “ठीक है बेटा! संभल कर जाना” शांति देवी दूर तक उन दोनों को जाते हुए देखती रही।
उर्वशी के परिवार में उसके पिता राधेश्याम जी,जो एक व्यापारी थे, मां कौशल्या देवी, बड़ा भाई रंजीत, भाभी कंचन,और उनकी पांच साल की बच्ची नाव्या थी। राधेश्याम जी काफी सुलझे हुए व्यक्ति थे,जबकि कौशल्या देवी का व्यवहार कुछ अलग था,वह बदलते हुए जमाने के साथ बदल चुकी थी,जिसने कुछ हद तक उर्वशी को प्रभावित किया था, रंजीत थोड़ा अक्खड़ स्वभाव का था,वह शराब पीकर अपनी पत्नी कंचन से अक्सर नोक -झोंक किया करता था,जिसके कारण कंचन दुखी रहती थी।
रवि राधेश्याम जी से पहले ही मिल चुका था,वे रवि को अपना दामाद स्वीकार कर चुके थे, कौशल्या देवी अपनी आदत के अनुसार हर चीज में कुछ न कुछ कमी निकाल ही देती थी, रंजीत को इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, उसे तो केवल उर्वशी के जाने का इंतजार था, क्योंकि उर्वशी को अपने भाई का उसकी भाभी के प्रति नकरात्मक व्यवहार पसंद नहीं था, पूरे घर में सिर्फ कौशल्या देवी ही अपने बेटे रंजीत का समर्थन करती थी।
लखनऊ से दो सौ किलोमीटर दूर गंगा के किनारे बसे हुए सम्पन्न गांव में जहां रवि का घर था, राधेश्याम जी कौशल्या देवी के साथ पहुंच चुकें थे। रवि का परिवार गांव के सम्पन्न लोगों की श्रेणी में आता था, छह सात कमरों का आलीशान घर,कई एकड़ खेत व अन्य सम्पत्तिया मौजूद थी,सारे सुख साधन मौजूद थे,जिसकी देखभाल रवि की नौकरी लगने के बाद उसका छोटा भाई राजेश करता था, रवि की सबसे छोटी बहन पायल कुछ दूरी पर स्थित कालेज जाती थी,वह बी,एस, सी, की फाइनल परीक्षा देने के लिए तैयारी कर रही थी। तीनों भाई बहन अपनी मां को ईश्वर की तरह ही मानते थे, शांति देवी उच्च संस्कारों वाली धार्मिक महिला थी,कोई भी कार्य शांति देवी की सहमति के बगैर उनके घर में नहीं होता था।
राधेश्याम जी रवि के गांव जाकर शांति देवी,व रवि के भाई बहन से मिलने के बाद काफी खुश नजर आ रहे थे,वह अपनी बेटी उर्वशी की उच्च संस्कारों से परिपूर्ण परिवार में शादी तय करके उसके सुखमय जीवन की कल्पना करके निश्चित नजर आ रहे थे, एक महीने बाद रवि और उर्वशी की शादी की तारीख तय हो चुकी थी।
मगर उनकी पत्नी कौशल्या देवी खुश नहीं थी,वह चाहती थी कि उनकी बेटी शादी के बाद गांव में ना रहकर शहर में ही रवि के साथ रहे, उसे अपनी बेटी को गांव में भेजने पर ऐतराज था,मगर वह चाहकर भी राधेश्याम जी से इसका विरोध नहीं कर सकती थी।
“उर्वशी! मुझे तुमसे कुछ बातें करनी है, तुम्हारे पापा को शायद जो मैं देख रही हूं,वह दिखाई ही नहीं दे रहा है” कौशल्या देवी उर्वशी को अपने कमरे में बुलाते हुए बोली।”बोलिए मम्मी!आप क्या कहना चाहती है?” उर्वशी कौशल्या देवी के करीब आकर बोली।”उर्वशी! मुझे रवि पसंद है, लेकिन मुझे इस बात की चिंता है कि तू रवि से शादी करने के बाद उसकी मम्मी,व भाई बहन के साथ गांव में कैसे रहेगी?” कौशल्या देवी चिंतित होते हुए बोली।
“मम्मी! मैं गांव में तो बस कुछ दिन ही रहूंगी,यह सब मैंने पहले ही सोच लिया है,वे यहा नौकरी करते हैं,कालोनी में मकान भी है,मैं ज्यादा तो यही पर रहूंगी मम्मी! महीने में एक दो दिन के लिए ही मैं गांव जाया करूंगी,मैं रवि को अच्छी तरह जानती समझती हूं,तुम बेकार में ही परेशान होती हों ” उर्वशी कौशल्या देवी से लिपटते हुए बोली। ” वह सब तो ठीक है बेटी!मगर जिस तरह रवि व उसके भाई बहन अपनी मां की हर बात का समर्थन करते है,और उसे ही सब कुछ मानते हैं,कल यदि उन्होंने रवि से तुम्हें गांव में ही रहने के लिए कहा तो तू क्या करेगी रवि तो अपनी मां की बात को ही सर्वोपरि समझेगा ” कौशल्या देवी गंभीर होते हुए बोली।
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माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ