जाने कब जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए, यह कोई नहीं जानता – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral Stories in Hindi

सुनीता पढ़ी लिखी लड़की थी लेकिन ना जाने किन परिस्थितियों वश वह एक छोटे से गाँव में व्याह दी गई।

जो एक अत्यंत पिछड़ा गाँव था। वहाँ पर ना तो स्कूल था ना डाकघर ना ही अस्पताल।  फिर भी धीरे धीरे वह सामंजस्य बैठाने की कोशिश में लगी रहती थी। उसका पति तो और भी निपट गंवार था। वह गाँव के कुछ लफंगों की संगत में इस हद तक बिगड़ गया था कि नशे से लेकर हर बुराई उस व्यक्ति में विद्यमान थी। वह कई बार शराब के नशे में घर आकर सुनीता से गाली-गलौज और मार-पीट भी कर बैठता था।

तब सुनीता के सास-ससुर सुनीता का पक्ष लेकर उसको फटकारते थे।

वह भी कुत्ते की दुम ही हो चला था! उसपर किसी की फटकार का अधिक वक्त तक असर नहीं रहता था।

घर पर आकर अपने माता-पिता से कहता,,, “अम्मा-दद्दा तुम नहीं जानते हो, ये सुनीता गाँव भर में छोरी बनके घूमती है। गाँव की बींदनी (बहू) है तो उसे बींदनी बनके रहना चाहिए या नहीं?

दो जमात पढ़के स्कूल पढ़ाने क्या जाने लगी यह तो अपने आप को कलेक्टरनी समझ बैठी है!”

“अरे हुआ क्या है माधव? कुछ बताएगा भी या यूं ही बकबक किए जाएगा?” सुनीता की सास लाजवंती देवी ने कहा।

“अम्मा ये सुनीता स्कूल में बिना घूंघट के कुर्सी पर बैठी रहती है! बताओ भला गाँव के बड़े बुजुर्ग भी अपने बच्चों और नाती, पोतों को लेकर स्कूल जाते हैं तो क्या इसे ये शोभा देता है?”

“अरे बावरे, सुनीता मास्टरनी है, क्यों। शोभा नहीं देता! पता नहीं तू कब समझेगा? मूर्खता की भी हद होती है!” सुनीता की सास फिर उसे फटकारती। माधव हर रोज ही सुनीता की कुछ ना कुछ शिकायत लगाता ही रहता था।

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वो तो भला हो सुनीता के सास-ससुर अच्छे थे इसलिए हर बात पर झाड़ देते थे।

एक दिन सुनीता स्कूल में थी, माधव घर पर था तभी माधव के पिता जी के सीने में बहुत जोर का दर्द उठा जो काफी असहनीय हो रहा था। माधव की माँ, उनके सीने पर गर्म तेल से मालिश कर रहीं थी लेकिन फिर भी कोई असर नहीं हो रहा था। उन्होंने माधव से कहा कि  वह पिता जी को अस्पताल लेकर चले। माधव ने गाड़ी चलाने में असमर्थता व्यक्त की… वह तो गाड़ी चलाना जानता ही नहीं है।

गाँव के लड़के भी जिन्हें गाड़ी चलाना आता है वे कहीं काम पर या शहर गए हुए हैं। तब सुनीता की सास ने  किसी पड़ोस के बच्चे को भेजकर, सुनीता को तत्काल स्कूल से घर बुलवाया।

सुनीता को जैसे ही यह खबर मिली, वह दौड़ती हुई घर आई। घर पर आकर उसने तुरंत साड़ी उतारकर दूर फेंकी और माधव के कपड़े पहनकर गाड़ी निकाली फिर अपने ससुर को गाड़ी में बैठाया और सास को उसने पीछे उन्हें पकड़कर बैठने के लिए कहा। 

फिर गाड़ी स्टार्ट कर उसने पंद्रह मिनट में कस्बे की अस्पताल पहुँचा दिया।

सुनीता के ससुर का इलाज हुआ, वे जब पूरी तरह से ठीक हो गए तब डॉक्टर ने सुनीता की सास से कहा,,, “आपकी बहू यदि इन्हें समय से अस्पताल ना पहुँचाती तो शायद मरीज को बचाना मुश्किल होता।

अपने पिता के वार्ड के बाहर खड़ा हुआ माधव भी सब कुछ सुन रहा था,,, मन ही मन विचार भी कर रहा था कि ना जाने जिंदगी में कब, कौन सा मोड़ आ जाए, कोई नहीं जानता! 

मैं सुनीता को हर बात पर ताने देता रहता था आज वह ना होती तो मेरे पिता जी का बचना मुश्किल था। आज ही उससे माफी माँग लूँगा और उसकी हर खूबी की तारीफ भी करूँगा।

इतना ही नहीं उससे सब कुछ मैं भी सीख लूँगा ताकि वक्त पर काम आए।

स्वरचित

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश

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