तभी प्रशांत अपने पापा के साथ आया और हम लोगों ने खूब बाते करी ।वीर ने उन्हें पहले ही बता दिया कि वो उनकी तरह अमीर नही हैं ,पर अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता हैं । मिस्टर वर्मा ने कहा -“मैं ये सब बातें नही मानता….मैं तो बस अपने बेटे की ख़ुशी चाहता हूँ “।बेला ने प्रशांत से पूछा बेटा तुम्हारी माँ नहीं दिख रही । बस आंटी जी वो आती होंगी………..तभी एक आवाज़ आयी जिसे सुन वीर के रोंगटे खड़े हो गए । दिल में वोही पुराना साज बजने लगा । थोड़ी देर में हाथों को जोड़ती हुई जब वो वीर के सामने आयी तो उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गयी … आरोही तुम ! ……. प्रशांत ने पूछा क्या आप लोग एक दूसरे को जानते है ??? आरोही बोली .. हाँ बेटा ! हम एक ही कॉलेज पढ़े हैं ।
प्रियल ! तुम्हारी बेटी है ये मुझे नही पता था । खैर तुम क़ैसे हो….अपनी बीवी से नही मिलवाओगे??? यें बेला है मेरी पत्नी !
आप सब से मिलकर अच्छा लगा और प्रियल तो मुझे पहले से ही पसंद है । तो अब तो ना का कोई सवाल ही नहीं है । हमारी तरफ से शादी के लिए हाँ हैं बोल ! आरोही ने सबका मुँह मीठा कराया ।लेकिन आरोही से मिल वीर थोड़ा असहाय महसूस करने लगा । आरोही आज भी नही बदली वोही निडरता वोही सोच ।लेकिन प्रियल की ख़ुशी देख वो खुश था । पर अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान था कि जो भी उसके माँझी में हुआ …………..
शादी की तैयारी बड़े ज़ोरों से चल रही थी । बारात आने में थोड़ा ही समय बाक़ी था । बेला अपने कमरे में कुछ काम से गई , तो उसने देखा वीर खिड़की के पास खड़ा हुआ है । वीर क्या सोच रहे हो ?? तैयार हो जाओं आज तुम्हारी बेटी की शादी है ! हाँ अभी होता हूँ ………. और बेला बाहर चली गयी ।
तभी प्रियल दुल्हन के जोड़े में वीर के पास आती है….. उसे देख वीर की आँखें भर आती है और वो उसे गले से लगाए बोलता हैं कि- एक पुरुष के जीवन में प्यार के कितने रूप कितने मौसम आते है । कभी माँ के रूप में , तो कभी प्रेमिका ,पत्नी , बहन , बेटी के रूप में ! जैसे हर मौसम का अपना रंग होता है । वैसे ही हर रिश्ते में अपना एक प्यार , एक एहसास होता है । लेकिन एक बाप बेटी का रिश्ता उनका प्यार सब रिश्तों पे भारी होता है । ये मैं आज जाना हूँ बेटा ! तुम्हारे जाने से जो दर्द हो रहा है वो मुझे आज तक नहीं हुआ । ओह मेरे प्यारे पापा ! मैं कौन सा दूर जा रही हूँ ….यही इसी शहर में हूँ । तभी बेला चिल्लाते हुए आती है….एक तो तुम बाप बेटी का ड्रामा ही ख़त्म नहीं होता । चलो जल्दी करो बारात आने वाली है ! वीर प्रियल ने मुस्कुराते हुए बेला को गले से लगा लिया । और कुछ पल में ही बारात के ढोल बाजे की आवाज़ आने लगी ।सब बहुत खुश थे । प्रियल और प्रशांत को फेरो के लिए बुलाया गया और वीर और बेला ने उसका कन्यादान किया । कन्यादान कर वीर बहुत संतुष्ट महसूस कर रहा था । उसकी सारी घबराहट , डर सब दबे पाव बाहर चले गए।
आरोही को अकेली देख वीर उसके पास गया और बोला मेरी बेटी का ध्यान रखना । हमारे माझी में जो भी हुआ उसका असर इन पर ना पड़े ! बस यही चाहता हूँ ये लोग हमेशा खुश रहे । आरोही बोली -“वीर तुमने कभी सोच था कि हमारे बच्चों की एक दूसरे के साथ शादी होगी” ??? नही ना
क्योंकि कहते है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है । हमारी कभी कोई कहानी ही नहीं थी , कहानी तो इनकी हैं इसीलिए आज ये एक साथ हैं ।
तुम ठीक कह रही हो आरोही आज मैं अपने आपको बहुत धन्य मानता हूँ जो मुझे ऐसी बेटी मिली और सबसे बड़ा दान कन्यादान करने का मौक़ा मिला । तभी पापा पापा की आवाज़ आयी और वीर प्रियल के पास चला गया । प्रियल को जाते हुए देख वीर फूट फूट कर रोने लगा और प्रियल अपने पापा को चुप कराने लगी । ये देख सब हँसने लगे बताओ दुल्हन तो रो नहीं रही है ,और उसके पापा …. तभी आरोही बोली वीर चुप हो जाओ ! वरना तुम्हें दहेज में ले जाना पड़ेगा । प्रियल तुम मुझसे रोज़ मिलने आना……ठीक है पापा बोल वो चली गई !! आज इस पल में वीर और बेला एक दूसरे का हाथ थामे खड़े है । वीर ने भी आज अपनी मोहब्बत की संदूक को खोल उस मोहब्बत की ख़लिश को आज़ाद कर दिया जो कभी उसकी थी ही नहीं । जो उसके साथ है वहीं उसकी मोहब्बत है ,वहीं उसके बुढ़ापे का मौसम है । जो मरते दम तक उसके साथ रेहेगा ॥
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति
प्यार का मौसम ( भाग 4)
प्यार का मौसम (भाग 4 )- स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi
स्नेह ज्योति
part 4 do baar repeat Kiya h plz aage ki story upload kijiye