Moral stories in hindi : आज पूरे छः महीने के साथ के बाद सासू मां गीतांजलि को छोड़कर अपनी अंतिम यात्रा की और प्रस्थान कर गई थी। कहने को तो,सुमित्रा जी गीतांजलि की सास थी पर इन छः महीनों में दोनों ने एक-दूसरे के साथ मां-बेटी से भी बढ़कर रिश्ता निभाया था। वो तो बिन मां-बाप की छाया के अनाथाश्रम में पली बढ़ी थी।
मां और घर-आंगन का प्यार क्या होता है ये भी गीतांजलि ने शादी के बाद ही जाना था। आज सुमित्रा जी की मृत्यु के बाद तेरह दिन का शौक और सूतक सब पूरा हो गया था। अब गीतांजलि के भी इस घर को छोड़ने का समय आ गया था। वो जल्दी-जल्दी अपना समान समेटने में लगी थी। सभी घर के समान की सूची और उनकी जगह उसने एक डायरी में लिख दी थी।
अपनी सारी पैकिंग होने के बाद वो डायरी और अलमारियों की चाभी राघव को थमाकर जल्द से जल्द यहां से निकलना चाहती थी क्योंकि वो राघव के सामने अपने आंसुओं को दिखाकर कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी।राघव जो कि सुमित्रा जी का बेटा और दुनिया की नज़रों में उसका पति था। राघव सुमित्रा जी के जाने के बाद बाहर वाली बैठक में था,जिसमें अक्सर सुमित्रा जी बैठा करती थी।
गीतांजलि अलमारियों की चाबियां और सामान की सूची वाली डायरी राघव के सामने रखकर जाने के लिए जैसे ही मुड़ती है। तभी पीछे से राघव की बुझी हुई सी आवाज़ सुनाई देती है जो शायद उसको रोकने के लिए निकली थी। वो अभी ठीक से कुछ कह भी ना पाया था कि उससे पहले ही बेहोशी की अवस्था में चला गया था।
गीतांजलि ने घबराकर जैसे ही उसका माथा छुआ वो तेज़ बुखार से तप रहा था। गीतांजलि ने किसी तरह से राघव को बिस्तर पर लिटाया और जल्दी से बर्फ का पानी बनाकर कपड़े की पट्टियां उसके सर पर रखनी शुरू की। ठंडे पानी की पट्टियां रखने से ज्वर की तीव्रता थोड़ी कम हुई तो उसको उठाकर थोड़ा बहुत खाना खिलाकर दवाई दी थी।
बुखार के कम होने से राघव नींद के आगोश में चला गया था। नींद में भी वो गीतांजलि का हाथ नहीं छोड़ रहा था। उसकी हालत को देखकर वो भी राघव के पास बैठकर उसका सिर सहलाने लगी थी। गीतांजलि को इस समय राघव का चेहरा बहुत ही शांत और निर्दोष लग रहा था। राघव के सिरहाने बैठे बैठे गीतांजलि की आंखों के सामने अपने बीते जीवन का पूरा घटनाक्रम घूम गया था
बचपन में ही एक हादसे में माता-पिता के चले जाने के बाद लड़की होने की वजह से जब कोई भी रिश्तेदार उसको अपने साथ रखने के लिए तैयार नहीं हुआ था तब बसेरा नाम का अनाथाश्रम ही उसका घर बना था।अनाथाश्रम की संचालिका मंजुला जी सभी बच्चियों को मां सदृश ही प्यार करती थी।
गीतांजलि से तो उन्हें विशेष लगाव था क्योंकि वो पढ़ाई के साथ-साथ बाकी काम भी बहुत समझदारी से करती थी। बड़े होते होते उसने नर्सरी टीचर ट्रेनिंग का कोर्स तो अच्छे नंबर से पूर्ण किया ही था साथ-साथ अनाथाश्रम के अकाउंट्स संबंधी काम भी वो बहुत कुशलता से संभालने लगी थी। मंजुला जी की तो जैसे मुंहबोली बेटी ही बन गई थी वो।
इधर राघव की माताजी सुमित्रा जी भी दान पुण्य के काम से अक्सर अनाथाश्रम आती रहती थी। वैसे भी मंजुला जी और सुमित्रा जी आपस में बहुत अच्छी मित्र थी। कुछ समय से सुमित्रा जी काफ़ी परेशान चल रही थी क्योंकि उन्होंने अपने इकलौते बेटे राघव की शादी बड़े ही चाव और लगन से जिस लड़की रिया से की थी वो काफ़ी बिगड़ैल किस्म की थी।
आते ही उसने राघव और सुमित्रा जी को अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। सारा दिन अपने दोस्तों के साथ घूमना और कई बार रात को भी क्लब से शराब पीकर घर में पहुंचना उसकी आदत बन गई थी। उसकी सभी बातों पर उसके माता-पिता ने भी पर्दा डाला था।
सुमित्रा जी और राघव जब भी उससे कुछ कहते या उसको समझाने की कोशिश करते तब वो उल्टा ही उन लोगों को धमकाकर पुलिस में जाने की बात करती। राघव की ज़िंदगी बहुत उथल-पुथल से गुजर रही थी। ऐसे ही एक रात रिया देर रात तक घर नहीं पहुंची थी। राघव और सुमित्रा जी दोनों ही फोन करके परेशान हो रहे थे।
आधी रात को रिया नशे में चूर घर पहुंची थी,आज राघव अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया था। गुस्से में उसने रिया को बहुत कुछ सुनाया था। उसकी बातें सुनकर रिया बेचारी होने का नाटक करते हुए थाने पहुंच गई थी। उसने राघव और सुमित्रा जी के खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करवा दी थी। आज पहली बार कॉलोनी में किसी के घरेलू विवाद के लिए पुलिस आई थी और राघव को अपने साथ ले गई थी।
पूरी कॉलोनी में राघव और सुमित्रा जी की बहुत बदनामी हुई थी और तो और ऑफिस में भी राघव की नौकरी जाते-जाते बची थी। ऐसी अवस्था में राघव को रिया से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय तलाक ही था। रिया ने मनचाही रकम वसूल कर राघव को तलाक दिया था। बस उस दिन से राघव के मन में लड़कियों के प्रति काफ़ी कटुता आ गई थी।
सुमित्रा जी के पति तो वैसे भी बहुत पहले स्वर्ग सिधार गए थे अब वो अकेले ही राघव को किसी तरह संभाल रही थी। इकलौते जवान बेटे की हालत उनसे देखी नहीं जाती थी। राघव के सामने वो सामान्य बनी रहती पर अंदर ही अंदर उसकी चिंता में डूबी रहती। इसी चिंता ने कब कैंसर रूपी बीमारी के रूप मेंउनके शरीर को अपना शिकार बनाया उन्हें पता ही नहीं चला।
जब वो ज्यादा बीमार रहने लगी तो बिना राघव को बताए वो डॉक्टर से चेकअप करवाने गई। सारे चेकअप और रिपोर्ट्स के बाद उनके अंदर कैंसर की पुष्टि हुई।डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका कैंसर बहुत जल्दी-जल्दी सारे शरीर में फैल रहा है। उनके पास ज्यादा समय नहीं है।
सुमित्रा जी को अपने से ज्यादा राघव की चिंता थी। ये सब सोचकर उन्होंने राघव के लिए मंजुला जी से गीतांजलि का हाथ मांगा। मंजुला जी ने गीतांजलि के सामने राघव के बारे में सब कुछ बताते हुए उसका निर्णय पूछा था, उसने ज्यादा कुछ सोचे समझे सुमित्रा जी की मनोस्थिति भांपते हुए इस रिश्ते के लिए हां कर दी।
इधर राघव शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था वैसे भी उसके मन में सभी लड़कियों के लिए नफरत की भावना घर कर गई थी। ऐसे में सुमित्रा जी ने अपनी कसम देकर और कैंसर की बीमारी का सच बताकर राघव को भी किसी तरह गीतांजलि से शादी के लिए तैयार कर लिया। इस तरह गीतांजलि राघव की दुल्हन बनकर इस घर-आंगन में आ गई।
गीतांजलि के भी शादी को लेकर कुछ अरमान थे। उसको राघव के पहली शादी के बुरे अनुभव की तो जानकारी थी पर उसके मन में सभी लड़कियों के प्रति इतनी नफरत है उससे वो अनजान थी।वो राघव का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। राघव ने कमरे में प्रवेश करते ही बहुत ही रूखे शब्दों में गीतांजलि को बोला था कि वो इस शादी से किसी भी तरह की उम्मीद ना रखे क्योंकि वो अब लड़कियों के त्रिया चरित्र से भली-भांति परिचित है।
वो मां की वजह से इस घर में आई है। जब तक मां हैं तब तक ही वो भी इस घर में है।राघव से उसका कोई संबंध नहीं है। राघव की ऐसी बातों को उसने चुपचाप सिर हिलाते हुए सुन लिया था। ये सब कहकर राघव अपनी चादर लेकर सामने पड़े दीवान पर सोने चला गया था। अगले दिन गीतांजलि सुबह जल्दी ही तैयार होकर सुमित्रा जी के पांव छूने आई थी।
सुमित्रा जी की अनुभवी आंखें सब समझ गई थी तब उन्होंने प्यार से गीतांजलि को गले लगाते हुए कहा था कि आज से वो उनकी बहू नहीं बेटी है।उन्हें उम्मीद है कि अपने प्यार से वो राघव को बदल देगी और उसके दिल में फैली नफ़रत को खत्म करने में कामयाब होगी।
सुमित्रा जी की अपनत्व भरी बातों से गीतांजलि को बहुत सुकून मिला था वैसे भी जब से उसने होश संभाला था तब से वो मां के प्यार से वंचित थी। आज सुमित्रा जी के स्नेह भरे स्पर्श ने उसे मां के आंचल का एहसास कराया था। उसने भी सुमित्रा जी को आश्वासन दिया था कि वो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेगी। बस उस दिन से चाहे राघव गीतांजलि से लाख दूर रहता हो पर वो सुमित्रा जी के साथ मजबूत स्नेह की डोरी से बंध गई थी।
शुरू के तीन-चार महीने तो आराम से निकल गए पर अब सुमित्रा जी पर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वो बिस्तर पर आ गई। डॉक्टर तो उनको पहले ही जवाब दे चुके थे। उनके आखिरी दिनों में गीतांजलि ने उनका बहुत ख्याल रखा। उनके नित्यक्रम से लेकर खिलाने तक वो उनके आस-पास बनी रहती।
राघव को भी बिना कुछ कहे उसका सारा सामान अपनी जगह तैयार मिलता। ऐसा लगता था जैसे उस घर-आंगन से गीतांजलि का कोई पिछले जन्म का नाता था जिसमें वो इतनी जल्दी रच बस गई थी। अब शायद सुमित्रा जी का आखिरी समय निकट था। उनको भी कुछ आभास हो चला था पर वो गीतांजलि को बहू के रूप में पाकर पूर्णतया संतुष्ट थीं।
उन्होंने राघव और गीतांजलि को इशारे से अपने पास बुलाया और दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए आंखें मूंद ली। राघव के साथ-साथ गीतांजलि के लिए भी ये सब असहनीय था।
गीतांजलि को लग रहा था जैसे कुदरत ने दूसरी बार उससे मां का आंचल छीन लिया था। सुमित्रा जी के जाने के बाद अब उसे भी ये घर-आंगन छोड़कर राघव की ज़िंदगी से जाना था क्योंकि शादी की पहली रात यही उन दोनों के बीच तय हुआ था। अभी वो ये सोच ही रही थी कि राघव की आवाज़ सुनकर वो अपने वर्तमान में वापस आ गई।
अब राघव का बुखार पूरी तरह उतर चुका था। वो भी मन ही मन अपने अंदर उमड़ते भावनाओं के आवेश को नियंत्रित करते हुए जल्द से जल्द राघव की दुनिया से चले जाना चाहती थी क्योंकि वो अब कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी। वैसे भी जीवन की परिस्थितियां कभी भी उसके लिए सामान्य नहीं थी।
वो राघव के पास से जैसे ही जाने की लिए उठी वैसे ही राघव ने अधिकारपूर्वक उसका हाथ पकड़ लिया और कहा मां तो मुझे छोड़कर चली ही गई हैं अब मैं तुम्हें नहीं जाने दे सकता। अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो मैं अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का सफ़र तुम्हारे साथ तय करना चाहता हूं। गीतांजलि तो खुद यही चाहती थी पर राघव के रूखे व्यवहार से आहत थी।
ये सुनकर गीतांजलि के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ गई उसने कहा कि वो हमेशा से ये मानती आई है कि जब हम अपने पसंदीदा कपड़ों को रफू करके पहले जैसा बना सकते हैं तो ज़िंदगी को क्यों नहीं।
अब हम दोनों मिलकर नए रिश्तों के रफू से अपनी आने वाली ज़िंदगी को सजाएंगे और इस घर-आंगन को भी महकाएंगे। आज गीतांजलि के अपनत्व ने राघव को तो ज़िंदगी के कड़वे अतीत से बाहर निकाला ही था साथ-साथ सुमित्रा जी की आत्मा को भी असीम शांति दी थी।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। इस कहानी की लिखते-लिखते मुझे गुलज़ार साब की ये पंक्तियां “थोड़ा सा रफू करके देखिए ना फिर से नई सी लगेगी,जिंदगी ही तो है” याद आ गई थी।
वास्तव में जीवन मिलता जरूर एक बार है पर हम रफू से इसको भी नया बना सकते हैं। एक अनुभव कड़वा हो तो आवश्यक नहीं कि आगे भी सब गलत होगा। ये सब तो धूप-छांव है जो जीवन के साथ चलती रहेगी।
नोट: ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है। हमेशा ये आवश्यक नहीं होता कि सच्ची घटनाओं पर ही कहानी लिखी जाए। कुछ कहानियां जीवन को नए आयाम देने के लिए भी लिखी जाती हैं।
डॉ पारुल अग्रवाल
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