Moral stories in hindi: सुबह के आठ बज रहे थे, रमादेवी पंडित दीनानाथ से भंडारे के आयोजन के लिए फोन पर बात कर रही थी।”अरे मम्मी! अबकी बार मैं भंडारे और पूजा में शामिल नहीं हो पाऊंगा, मुझे जरूरी मीटिंग अटेंड करनी है?” प्रभात रमादेवी के पास आते हुए बोला। ” बेटा! तू तो बड़ा है,तेरा वहा पूजा में शामिल होना जरूरी है” रमादेवी प्रभात को समझाते हुए बोली।
“तो क्या करूं मम्मी! नौकरी छोड़ दूं,तुम समझतीं क्यूं नहीं” प्रभात अपनी मजबूरी दर्शाते हुए बोला।”ठीक है बेटा! कहकर रमादेवी आकाश के कमरे की ओर बढ़ गई। ” मम्मी! अबकी बार तुम ही जाकर वहा सब करा देना, क्लोजिंग चल रही है,मेरा पहुंचना नामुमकिन है ” आकाश रमादेवी को देखते ही बोल पड़ा। रमादेवी कुछ देर तक आकाश की ओर देखती रही फिर चुपचाप वहा से चली गई।
रमादेवी गहरी चिंता में खोई हुई थी,वह जानती थी कि उसके बेटे उससे झूठ बोल रहे हैं,सच तो यह है कि उन्हें इन सब कामों में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी,वह अच्छी तरह जानती थी कि उसके बेटे वहा न जाने के लिए बहाने कर रहे हैं। उन्हें अपने दिवंगत पिता की पुण्य तिथि पर कस्बे के मन्दिर में पूजा पाठ व भंडारे के आयोजन में उन्हें कोई रूचि नहीं थी,वे तो पूरी तरह अंग्रेज बन चुके थे,
उनकी पत्नियों को भी यह सब नहीं भाता था, सामने से ना तो नहीं कह सकते थे, इसलिए किसी न किसी बहाने वह छुटकारा पाने का प्रयास करते थे। रमादेवी की आंखों में आसूं टपकने लगें वह खुद को ही दोषी मानकर पश्चाताप कर रही थी,यह वही उनकी औलादे थी जिनको कभी उसने डांटा तक नहीं उनकी हर इच्छा पूरी करने में सब कुछ समर्पण कर दिया शायद उसी का दोष है,
उसकी यह सबसे बड़ी भूल थी जीवन की जिसे वह भली-भांति समझ रही थी,जब जिस बेटे ने जो कहा उसने मान लिया जो मांगा उसे दें दिया, पढ़ाई पूरी करने के लिए बाहर भेजा मगर यह नहीं देखा कि उसके बच्चों में संस्कारो का पतन हो चुका था, उन्हें तो पूजा पाठ हवन तर्पण जैसी चीजों में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी वह तो इसे फालतू समझते थे।
अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती रमादेवी कर चुकी थी, उसे अपने बेटों को डांटना चाहिए था, उन्हें अपने संस्कारों से परिचित कराना चाहिए था,उनकी हर गलत सोच का विरोध करना चाहिए था,जो वह नहीं कर सकी बस दिल खोलकर दौलत लुटातीं रही यह सोचकर कि यह सब उन्हीं का तो नतीजा आज उसके सामने था, उसके बेटे बहू सब अपनी पहचान भूलकर पूरी तरह पश्चिमी रंग रूप अपना चुके थे,
उन्हें अपने दिवंगत पिता की आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला आयोजन भी ढोंग लगता था, रमादेवी गहरे अंधकार में डूब चुकी थी,धन दौलत जीवन के सारे सुख होते हुए भी वह खुद को बहुत ही हीन और कमजोर समझ रही थी,जिसकी वजह से रमादेवी का स्वास्थ धीरे -धीरे खराब होने लगा था,वह जानती थी कि उसके बेटों की नजर मन्दिर की कीमती जमीनों पर टिकी हुई है,
जिसे वह उसके जीवित रहते तो नहीं पा सकते थे,मगर उसके न रहने के बाद वह उसे भी बेच देंगे, दो दिन बाद रमादेवी को कस्बे वाले घर जाकर भंडारे और पूजा का आयोजन करवाना था, रमादेवी ने अपने पुश्तैनी मन्दिर और परिवार की धरोहर को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने का फैसला कर लिया था।
रमादेवी को अकेला आया देखकर पंडित दीनानाथ बहुत दुखी थे,वह रमादेवी की पीड़ा को महसूस कर रहे थे।”रमा दीदी भैया लोग कहा है?” रमादेवी को अकेला देखकर पंडित दीनानाथ बोले। “भैया वह अपने काम में उलझे हुए हैं इसलिए वह नहीं आ सके” रमादेवी बात को टालती हुई बोली।
“रमा दीदी कुछ देर का ही काम था, मैया लोगों का हो सके तो वह आ जाए” पंडित दीनानाथ चिंतित होते हुए बोले। “आप परेशान न हो उनके बगैर क्या किसी चीज की कमी हो रही है तो आप बताइए” रमादेवी दुखी मन से बोली।”ठीक है दीदी जैसा आप कहें” कहकर पंडित दीनानाथ पूजा पाठ और भंडारे के आयोजन में मशगूल हो गए।
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सबसे बड़ी भूल (भाग – 3)
सबसे बड़ी भूल (भाग – 3) – माता प्रसाद दुबे : Moral stories in hindi
सबसे बड़ी भूल (भाग – 1)
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