राजन को मुंबई गए हफ्ते से ज्यादा हो गया था । इस बीच उसने खुद कोई फ़ोन भी न किया था । जब भी देवप्रिया ने फ़ोन किया , उसे लगा की राजन के मन में कोई कशमकश चल रही है । नई नौकरी और खुद को काबिल साबित करने की टेंशन थी या कोई व्यक्तिगत समस्या, वो समझ ही न पा रही थी । रह-रह कर देवप्रिया को बिता वक्त याद आता था जब राजन उससे अपने दिल की हर बात ना कर लेता था, उसे चैन ही ना मिलता था और अब बहुत पूछने पर भी राजन उसे कुछ नहीं बता रहा था । इधर देवप्रिया के घर पर भी उसकी शादी की चर्चा जोर पकड़ रही थी । मम्मी-पापा ने उससे भी कईं बार पूछ लिया था,”अगर कोई पसंद है तो बता दो, तुम्हारी शादी वहीँ कर देंगे ।” पर न जाने क्यों देवप्रिया चाह कर उन्हें कुछ न बता पाई । मानसिक तनाव की वजह से दिन प्रतिदिन उसकी सेहत भी गिरती जा रही थी ।
मिथ्या नहीं थीं उसकी आशंकाएँ । आज जब फ़ोन पर वो अपने दिल का हाल बताते हुए रो पड़ी, तब भी राजन की तरफ से कोई सकारात्मक जबाब नहीँ मिला था । जो राजन उसकी आँख में एक आंसूं नहीँ देख सकता था, उससे बस कुछ घंटे मिलने के लिए बेंगलूर से दिल्ली आ जाता था, आज उसके अकेलेपन की दस्तान सुन कर भी चुप रहा, न कोई तसल्ली या न ही कोई वायदा। दो पल का मौन छा गया था दोनों के बीच । एक अजीब सी बैचैनी ने उसे घेर लिया था ,,,,, उसे लग रहा था कि जैसे उसकी दुनिया ही उजड़ गयी है । फ़ोन रखने से पहले वैसे ही मजाक में बोली ,”चलो, भाग कर शादी कर लें ।”
उसे लगा कि मजाक में कही गयी बात को सुन कर राजन हंस पड़ेगा । पर जबाब में राजन नाराजगी भरे शब्दों में बोला,”अपनी माँ को बताए बिना तुमसे शादी कर लूँ, यह बात तुम सोच भी कैसे सकती हो ?” सकपका सी गयी थी देवप्रिया । फिर भरे गले से “बाय” कह कर फ़ोन रख दिया उसने । उसे लगा कि शायद दुबारा राजन फोन करके उसे सॉरी बोलेगा, पर ऐसा कुछ भी ना हुआ। दिल में कुछ टूटने की आवाज आई । दिल यह मान ही नहीं रहा था कि उनके बीच दूरियां आ रही हैं, पर दिमाग आज बगावत पर उतर आया था। खुद को लाख तसल्ली देने के बावजूद अब देवप्रिया का मनोबल टूटने लगा था। जिंदगी न जाने क्या क्या खेल दिखा रही थी ।
चुलबुली सी देवप्रिया अब हर वक्त बुझी बुझी सी रहती थी । उसके व्यवहार में परिवर्तन के कारण, मम्मी पापा को शक होने लगा था । इसलिए एक दिन मौका देख कर पापा ने जब प्यार से उससे पूछा, तो हारे हुए जुआरी कि तरह टूट गयी देवप्रिया । बेचारे जानते ही न थे कि उनकी नाजों पली बेटी जिंदगी के एक मुश्किल दौर से गुजर रही है । समेट लिया था फिर से देवप्रिया के माता – पिता ने अपने गर्माहट भरे कवच में । समझदार माता पिता सच में ही बहुत बड़ा संबल होते हैं । उनके प्यार से अब संभलने लगी थी देवप्रिया । ऑफिस में भी उसे राजन के साथ बिताए पल याद आते थे, इसलिए बदलाव के लिए उसने दूसरी कम्पनी ज्वाइन कर ली । राजन से बातचीत होने का सिलसिला टूट सा गया था । वैसे भी दुनिया किसी के पीछे रूकती नहीं है । आखिरकार, उन यादों से पीछा छूटने के लिए देवप्रिया ने अपना फ़ोन नंबर बदल दिया ताकि उसका वो कभी न खत्म होने वाले इंतज़ार हमेशा के लिए खत्म हो जाए ।
रिहाई (भाग 5)
रिहाई (भाग 3 )
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अंजू गुप्ता