hindi stories with moral : मां- मां कहां हैं आप? मेरा बेटा रौनक न जाने कब से मुझे आवाज दे रहा था ।अरे अभी तो तू हॉस्पिटल गया था ,इतनी जल्दी कैसे आ गया ?मां-,मुझे अभी तुरंत बाहर जाना है मेरी पैकिंग कर दो ,अभी तुरंत,
पर कहां?
मां तुम्हें याद है मेरा दोस्त विनय, जिसकी एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी ?
हां बेटा कैसे भूल सकती हूं ,अभी भी सोचती हूं तो, इतनी पुरानी घटना दिल दहला देती है ।
15- 16 साल के रहे होंगे यह बच्चे, खेल कर वापस लौट रहे थे की एक ट्रक वाला विनय को रौंदते हुआ निकल गया, अस्पताल पहुंचने से पहले ही वह इस दुनिया को अलविदा कह चुका था ।
मां क्या सोचने लगी फिर ?
विनय की छोटी बहन है नीरजा, उसी की शादी है आज । उसके पिता शिक्षक हैं, हम सब मित्रों ने सोचा है कि नीरजा की शादी में हम सभी तन- मन- धन से शामिल होंगे और उसे विनय की कमी बिल्कुल भी नहीं खलने देंगे ।
यह तो बहुत अच्छी बात है बेटा, रुक नीरजा के लिए मैं भी कुछ गिफ्ट देती हूं ,उसे दे देना ।
जी मां, कहता हुआ रौनक तैयार होने चला गया ।
रौनक, मेरी इकलौती संतान ,मेरा गुरूर, मेरी आंखों का तारा ,इतनी छोटी सी उम्र में जाना माना नाम है डॉक्टर रौनक। रात के खाने पर मैंने अपने पति ब्रिज को सारी बातें बताई तो वह भी बहुत खुश हुए ।
लता, हमारा रौनक कितना निर्मल हृदय है भगवान उसे सारी खुशियां दे ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
एक अनसुलझा रहस्य – आरती झा
अगले दिन जब मेरी आंख खुली तो सोचा रौनक से फोन करके पूछूं शादी कैसी हुई ,नीरजा को मेरे दिए गिफ्ट्स पसंद आए या नहीं ,पर अपने आप को रोक लिया
आकर खुद ही बताएगा अभी तो बिजी होगा पता नहीं अभी विदाई हुई भी होगी या नहीं ।
रात 8:00 बज गए ब्रिज भी घर आ गए थे तभी घंटी बाजी रौनक ही होगा , मैंने जल्दी से दरवाजा खोला रौनक ही था पर अकेला नहीं था ,एक लड़की भी थी उसके साथ ,बिल्कुल दुल्हन के लिबास में ।
रौनक, कौन है ये ?
मां ,यह नीरजा है !
नीरजा…. पर तेरे साथ क्यों है? इसी शहर में इसकी शादी हुई है क्या ? पर फिर भी इसे तो अपने पति के साथ होना चाहिए ना…..
ना तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा थी और ना ही मेरे प्रश्नों की । ।
यह अपने पति के साथ ही है –पीछे से ब्रिज की आवाज आई।
पति के साथ? नहीं मानती मैं इसे अपनी बहू । अरे बहू क्या, मैं तो इस शादी को ही नहीं मानती, आपको पता थी यह बात ? इतनी बड़ी बात आप दोनों बाप- बेटे ने मुझसे छुपाई ?
मैं अपने आप को बुरी तरह छला हुआ महसूस कर रही थी ।
मां वहां हालात ही ऐसे बन गए मैं क्या करता ? मैंने आपसे कुछ नहीं छुपाया, बस उस समय जो ठीक लगा वह किया । मां पैसे के लालची थे वह लोग ,दहेज की तय राशि से बहुत ज्यादा मांग रहे थे, चाचा जी को दिल का दौरा पड़ गया ,बारात वापस लौट गई ।
कैसे नीरजा को अकेला छोड़ देता, क्या जवाब देता विनय को , बिलख ही पड़ा रौनक ।
अब मैंने नीरजा को ध्यान से देखा साधारण से कपड़े, साधारण से शक्ल सूरत –यह गंवार कहीं से भी मेरी बहू बनने लायक नहीं है ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
न्यू जेनरेशन – जया पांडे
अरे एक से एक डॉक्टर लड़कियों की लाइन लगी है तेरे लिए, तुझे यही गंवार मिली थी ?
गंवार , मा नीरजा ने B.Ed किया है अपने पिता की तरह, वह भी एक शिक्षिका है ।
आप उसे अच्छी तरह समझोगे ,जानोगी तो आप भी उसे पसंद करने लगोगी ।
कभी नहीं होगा ऐसा कह कर मैं अंदर आ गई । ब्रिज बहुत देर तक मुझे समझाने की कोशिश करते रहे पर मैं सोचने समझने की शक्ति खो चुकी थी । अगले दिन सुबह कमरे का दरवाजा खटखटाने से मेरी नींद खुली । दरवाजा खोला तो सामने नीरजा खड़ी थी। माथे पर आंचल और चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए , उसके हाथ में चाय की ट्रे थी ।ट्रे टेबल पर रखकर उसने मेरे पैर छू लिए, तो कल की सारी घटना मुझे एक झटके से याद आ गई ।
दूर हटो मेरी नज़रों से ।
क्या सोचा , इन बाप बेटे को वश में कर लिया तो मुझे भी मना लोगी ? तुम इस घर की बहू बनने लायक हो ही नहीं … एक से एक पढ़ी–लिखी ऊंचे घरानों की लड़कियों के रिश्ते आए हैं मेरे बच्चे के लिए ..
तुम जैसी गंवार को तो मैं इस घर में टिकने भी नहीं दूंगी ।
मां क्या कह रही है आप ??
मेरी तेज आवाज से रौनक भी वहीं आ गया था ।
लता संभालो अपने आप को मैं तुम्हारी तकलीफ समझता हूं पर नीरजा को एक मौका तो दो और जब हमारा रौनक, नीरजा को पसंद करता है तो हमें क्या दिक्कत है ?
मुझे है दिक्कत, कह कर मैं वहां से हट गई ।
दिन बितते रहे, रौनक की शादी की बात हर जगह फैल गई ।लोग मिलने आते, रौनक की शादी की बधाइयां कम देते , मुझसे सहानुभूति ज्यादा दिखाते । एक सन्नाटा सा पसरा रहता घर में । इन सब में दो जोड़ी आंखें हमेशा मेरी ओर देखती रहती जिससे मैं नजरे भी नहीं मिलना चाहती थी । 10-15 दिन ही बीते थे की ब्रिज ने कहा काम के सिलसिले में 2 दिन के लिए मथुरा जा रहे हैं अगर मैं चलना चाहूं तो चल सकती हूं । अंधा क्या चाहे दो आंखें , मैं भी इस घुटन से बाहर निकलना चाहती थी, वहां मेरी दीदी अपने बेटे बहू के साथ रहती थी ।
मथुरा पहुंचकर ब्रिज होटल में रुके और मैं अपना सामान लेकर दीदी के घर आ गई । दरवाजे की घंटी बजाई तो एक मध्यम आयु वर्ग की महिला ने दरवाजा खोला । मैं लता , उसकी प्रश्नवाचक निगाहों को देखकर मैंने कहा ।जी मेम साहिबा तो नहीं है, तब ध्यान आया अरे हां दीदी की बहू तो नौकरी पेशा है ,इतनी पढ़ी-लिखी जो है। अचानक ही मन नीरजा को याद कर छुब्ध हो गया ।
अच्छा छोड़ो, मैंने मन को समझाया ,दीदी तो होगी ?
इस कहानी को भी पढ़ें:
सबसे बड़ा धोखा- सांसें – संजय अग्रवाल
कौन मां जी ?
हां है ।
बोलो -लता आई है ।
जी अच्छा, आप अंदर आइये ।
मैं उसके पीछे-पीछे अंदर दीदी के कमरे में आ गयी ।
दीदी…
उन्होंने मुझे देखा, इतनी उदास आंखे और मुझे देखते ही उन्ही आंखों में गजब की चमक आ गई । मैं उनसे जाकर लिपट गई तभी वह महिला जो शायद गृह सहायिका थी आकर बोली कि वह जा रही है । थोड़ी देर बाद दीदी चाय बनाने उठी तो , मैंने उन्हें रोक लिया और उनके मना करने के बावजूद खुद चाय बना लाई । कितनी ही बातें करते रहे हम , पर न जाने क्यों वह मुझे कुछ उदास सी लगी । बहुत पूछने पर भी उन्होंने कुछ नहीं बताया । 12:00 बजते ही वह फिर किचन में जाने लगी तो मैंने पूछा, अब क्यों ?
बोली , दोपहर का खाना बनाना है- बच्चे आते ही होंगे ।
पर आप क्यों बनाएंगी ?
अभी जो घर के काम करके गई उसने नहीं बनाया ?
अरे नहीं ,वह तो सुबह का बनाती है जो हम नाश्ता करते हैं, दोपहर तक ठंडा हो जाता है ना ,इसलिए मैंने ही मना कर दिया है । गरम खाने की तो बात ही और है।
उन्हें पता नहीं था कि उनके शब्द उनके चेहरे का साथ नहीं दे रहे थे । मैंने मुस्कुराते हुए कहा- दीदी आज बाहर से आर्डर करते हैं बच्चे भी खुश हो जाएंगे और हमें गप्पे मारने का वक्त भी मिल जाएगा ।
पर कैसे उन्होंने पूछा ?
फोन से , मैंने कहा ।
तुझे आता है यह सब ?
इस कहानी को भी पढ़ें:
संतान पालो पर उम्मीद मत पालों – डॉ. पारुल अग्रवाल
हां, हां और मैं आपको भी सिखा दूंगी ।
पर मेरे पास तो फोन है ही नहीं ।
आपके पास फोन नहीं है ?
मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही । तब मुझे याद आया- हमेशा दीदी के बेटे बहु को ही मुझे फोन लगाना पड़ता था और पूछने पर एक ही वाक्य ,मां का फोन खराब है ।
आपके पास फोन क्यों नहीं है दीदी ?
क्योंकि मैं गंवार हूं लता ,गंवार ।।
कहकर वह फूट-फूट कर रो पड़ी । मुझे कहीं लेकर नहीं जाते , मुझे किसी से मिलवाते नहीं ,मैं टीवी का रिमोट भी उठा लू ना ,तो कहती है टीवी खराब कर दोगे ,मैं अनपढ़ हूं लता ,अनपढ़ गंवार ।
गंवार यह शब्द सुनकर लगा किसी ने मेरे कानों में पिघलता हुआ शीशा डाल दिया हो ।गंवार , क्या सच में इतना कष्ट देता है यह एक शब्द ? मैंने भी तो किसी को अनगिनत बार छलनी किया है इस एक शब्द से ।
दीदी के मुंह से निकले यह शब्द जब मुझे अंदर तक झकझोर गए , जो कि मेरे लिए बोले भी नहीं गए थे ,तो नीरजा को कैसा लगता होगा ? हे प्रभु यह मैंने क्या कर दिया ? वह बच्ची जिसकी इतनी विषम परिस्थिति में शादी हुई , jo जो अब मेरे घर की लक्ष्मी है, उसका इतना अनादर ।
जिस बेटे को मुझे गले लगाना चाहिए था ,जिस पर मुझे नाज होना चाहिए था , उससे इतनी बेरुखी ?
नहीं अब और नहीं, मैंने दीदी से कहा -आप मेरे साथ जाने की तैयारी कीजिए मैं यहां आपको रौनक की शादी के लिए ही लेने आई थी । आप हमारी बड़ी है ,आप पहले चलिए, बच्चे बाद में आ जाएंगे । हम बच्चों के आने के बाद ही जाएंगे, शाम तक ब्रिज भी आ जाएंगे आप निश्चिंत रहिए बच्चे मेरी बात नहीं टालेंगे । दीदी खुशी-खुशी पैकिंग करने लगी और मैं ब्रिज को फोन मिलाने लगी । मुझे जल्दी से जल्दी घर जाना है, नीरजा और रौनक से माफी मांगनी है , अपने बेटे की शादी पूरे धूमधाम से करनी है मैं एक पल भी नहीं गवाना चाहती थी।
अर्पणा कुमारी- बोकारो स्टील सिटी, झारखंड
—
अर्पणा कुमारी
बीन शर्मा