hindi stories with moral : ऐश्वर्या जी पार्क में टहलते-टहलते थक गईं तो एक बेंच पर बैठ कर विश्राम करने लगी।अपनी पोती रिया को झूला झूलते देख उन्हें बड़ा आनंद आ रहा था।तभी उनके कानों में बच्चों का शोर सुनाई दिया, एक दस साल की बच्ची अपने हमउम्र लड़के को धक्का देते हुए कह रही थी,” मैं तुम्हारे साथ नहीं खेलूँगी…तुम तो बिल्कुल ही गंवार हो…।” बच्ची और भी कुछ कह रही थी लेकिन उन्होंने नहीं सुना।उन्हें तो बस ‘ गंवार हो ‘ सुनकर ही हँसी आ गई।कभी वो भी तो ऐसा ही कहा करतीं थीं…
बड़े बेटे के पाँचवें जन्मदिन पर जब अखिलेश की पत्नी ने उन्हें फिर से माँ बनने की खुशखबरी सुनाई तो वे फूले नहीं समाये थे।पत्नी से बोले कि अबकी तो बेटी ही मेरे गोद में खेलेगी और ईश्वर ने उनकी इच्छा पूरी कर दी।दूध-सी गोरी और बड़ी-बड़ी आँखों वाली उनकी बिटिया ऐश्वर्या जब उन्हें पा…पा..कहती तो वे निहाल हो जाते थें।स्कूल जाने लगी तो बच्चे कभी उसके गाल तो कभी बाल छूकर देखते थे कि ये सच में लड़की है या परी।
स्कूल से काॅलेज़ आने तक तो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लग गये थें।काॅलेज़ के प्रोग्राम में तो सभी लड़के उसके प्रेमी या पति का रोल प्ले करने के लिये लालायित रहते थें।लेकिन उसकी कल्पना में तो एक अलग ही राजकुमार बसा हुआ था।बेमेल जोड़े को देखकर सहेलियों से कहती,” मैं तो हैंडसम लड़के से प्यार करूँगी, तब सहेलियाँ उससे कहतीं,” डियर…प्यार किया नहीं जाता..हो जाता है।”
अखिलेश के मित्र थें डाॅक्टर अंजनी कुमार।एक बार उनके व्यवसाय को आर्थिक नुकसान हुआ था, तब डाॅक्टर अंजनी ने उनकी बहुत मदद की थी।डाॅक्टर अंजनी का बेटा निखिल मेडिकल की तैयारी कर रहा था तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे दुनिया को अलविदा कह गये।उनकी पत्नी अकेली पड़ गयी थीं, तब अखिलेश और उनकी पत्नी ने निखिल के सिर पर अपना हाथ रखते हुए कहा,” भाभी…हम हैं।अंजनी की हर इच्छा पूरी होगी।”
एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद निखिल न्यूयॉर्क चला गया।तीन साल बाद लौटकर उसने अपने पिता की क्लिनिक को संभाल लिया।वह जितना अच्छा डाॅक्टर था, उससे कहीं ज़्यादा अच्छा इंसान।गरीब मरीजों से वह फ़ीस कम लेता या नहीं लेता।
एक दिन अखिलेश पत्नी संग निखिल के घर गये और अपनी बेटी ऐश्वर्या के लिये निखिल का हाथ माँगा।निखिल वहीं बैठा था, बोला,” अंकल…एक बार ऐश्वर्या से तो पूछ लीजिये…वह एक आधुनिक ख्यालों वाली लड़की है और मैं सादगी में विश्वास रखने वाला…शायद वो मुझे गंवार…।
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” नहीं बेटा…तुम तो लाखों में एक हो।विदेश में रहकर भी अपनी संस्कृति से जुड़े हो…अपने मरीजों की सेवा करते हो…तुम तो हीरा हो हीरा…।” अखिलेश बोले तो निखिल ने सिर झुका लिया।उसकी माँ ने भी अपनी सहमति दे दी।
ऐश्वर्या ने सुना कि निखिल से उसका विवाह तय हो रहा है तो गुस्से-से वह तांडव करने लगी, ” पापा….वो गंवार….उस दिन आपने देखा ना…कैसे हाथ से खाना खा रहा था, छि: नैपकीन रखा हुआ था फिर भी अपनी माँ की साड़ी से हाथ पोंछ रहा था और उसके कपड़े.. नो पापा!…मैं तो उससे कभी प्यार नहीं कर सकती।”
” तू मत करना…वो तुझसे बहुत प्यार करेगा..।”वो मुस्कुराये, फिर बोले,” और हाँ बेटी…विदेश में रहकर भी ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ में विश्वास रखने वाले को गंवार नहीं…बुद्धिमान कहते हैं।” कहते हुए उन्होंने बेटी के सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया।
“लेकिन पापा…।” वह तुनकती रही और एक शुभ-मुहूर्त में ऐश्वर्या मिसेज़ निखिल बन गई।शादी के बाद की पहली रात को ही ऐश्वर्या ने निखिल से कह दिया,” आइ हेट यू…।” और निखिल ने मुस्कुराते हुए अपना तकिया फ़र्श पर रख दिया था।
ऐश्वर्या की सहेलियों ने एक पार्टी रखी और उसे पति संग आने को कहा।इस गंवार के संग पार्टी…हे भगवान!..सोचकर ही उसकी रूह काँप गई।निखिल को ऑफ़ वाइट कलर का कुर्ता-पैजामा पहने देखा तो समझ गई कि आज तो उसकी खिल्ली उड़ने वाली है।पार्टी में सभी के पतियों ने मँहगे-मँहगे सूट पहने थें, उनमें निखिल का भारतीय पहनावा सभी को आकर्षित कर रहा था।उसकी एक सहेली ने जब निखिल से डाँस करने को कहा तो मुस्कुराते हुए वह बोला,” आप लोग कीजिये….मैं तो बस देखूँगा।” तब उसकी सहेली उससे बोली,” ऐश्वर्या…इस ज़माने में इतना शालीन और तहज़ीब वाला इंसान मैंने आज तक नहीं देखा…यू आर वेरी लकी..।”
” लकी..माई फ़ुट..।” वह भुनभनाई।
एक ही कमरे में रहते हुए भी ऐश्वर्या ने निखिल से दूरी बना रखी थी लेकिन कमरे से बाहर निकलते ही वह निखिल के साथ ऐसे बात करती जैसे दोनों हैप्पी कपल हों।
छह महीने बीत गये, निखिल अपने क्लिनिक में व्यस्त रहतें और ऐश्वर्या अपनी सहेलियों और पार्टी में।निखिल की माँ की अनुभवी आँखों ने बेटे-बहू के बीच की दूरी को परख लिया..।एक दिन उन्होंने बहू से पूछ लिया कि तुम दोनों के बीच कोई प्रॉब्लम है तो बताओ…मैं भी तो तुम्हारी माँ हूँ ना…।
” नहीं-नहीं मम्मी..कोई बात नहीं है…।”
“तो फिर मैं दादी कब…।”
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” वो…अभी….।” उसने बात को टाल दिया पर मन में बोली,” कभी नहीं…।”
एक दिन ऐश्वर्या की भाभी ने उसे और निखिल को डिनर पर निमंत्रित किया।डाइनिंग टेबल पर उसे चम्मच की जगह हाथ से खाते देखकर वह कुढ़ गई।लेकिन निखिल की बातों से सभी बहुत प्रभावित हुए।खाने के बाद निखिल उसके भाई से बात करने लगे तब एकांत ने उसकी माँ ने समझाया, ” देख बेटी..हर काम समय पर अच्छा लगता है।अब तू अपने परिवार को बढ़ाने की प्लानिंग कर…।”
” हाँ ईशु…हमारे मनु के साथ भी तो खेलने वाला कोई होना चाहिये।तुम कहो तो डाॅक्टर निखिल से बात करूँ…।” कहते हुए भाभी मुस्कुराई।अब वो कैसे कहती कि…।
घर आने पर ऐश्वर्या सोचने लगी, क्यों सभी निखिल को पसंद करते हैं और मैं उसे गंवार समझती हूँ….।इन्हीं विचारों में उलझी वह सीढ़ियों से उतर रही थी कि उसका पैर फिसल गया और उसके दाहिने पैर में फ़्रैक्चर हो गया।एक नर्स के होते हुए भी निखिल उसे अपने हाथों से दवा खिलाते,उसका मन बहलाते।क्लिनिक जाते लेकिन जल्दी वापस आ जाते।उस वक्त ऐश्वर्या को गंवार निखिल में एक खूबसूरत इंसान नज़र आया जो उससे बेहद प्यार करता है और वो भी उससे…।तब उसे अपनी सहेली की बात याद आई, प्यार किया नहीं जाता..हो जाता है…।
एक रात नर्स के जाने के बाद निखिल अपना तकिया हमेशा की तरह फ़र्श पर रखने लगे तो ऐश्वर्या ने उसका हाथ पकड़ लिया।निखिल मुस्कुराये जैसे कह रहें हों,” मैं तो गंवार हूँ…।” तब अपनी दोनों बाँहें निखिल के गले में डालकर वो मुस्कुराई, “गंवार तो मैं हूँ जो हीरे को पत्थर समझ बैठी थी।”
ऐश्वर्या की गोद-भराई के फंक्शन में आई उसकी सहेलियों में से एक ने धीरे-से उसके कान में कह दिया, ” क्यों मैडम…आखिर गंवार से प्यार हो ही गया।” उसने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें झुका ली थी।
समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया।उसकी सास अपने पोते-पोतियों को गोद में खेलाने की हसरत पूरी करके स्वर्ग सिधार गईं।बच्चे बड़े होने लगे।बेटे ने एमबीए करके अपनी कंपनी खोल ली और बेटी अपने पिता की क्लिनिक में उनकी सहयोगी बन गई।
डाॅक्टर निखिल अब अस्वस्थ रहने लगें थें।बेटी का विवाह कर देने के बाद अपने मित्र की बेटी के साथ बेटे की सगाई भी कर दी लेकिन विवाह तक रुक नहीं पाये।ऐश्वर्या का हाथ पकड़कर बोले,” ईशू…तुम्हारा गंवार अब जा रहा है…।” निखिल के सीने से लगकर वह फूट-फूटकर रोई थी।
बहू आई…फिर ऐश्वर्या एक पोती की दादी बन गई।एक दिन उसकी पोती ने पूछा, ” दादी माँ…गंवार क्या होता है?” सुनकर वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी थी।आज फिर से उसने बच्ची के मुख से सुना तो अपनी हँसी नहीं रोक पाई।
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उसने घड़ी देखी…छह बजने को आये…इस समय तो निखिल घर आ जाते थें।उसने रिया को बुलाया और हाथ पकड़कर घर जाने लगी।घर पहुँचकर वो निखिल की तस्वीर के आगे दीपक जलाएगी…उनसे बातें करेगी…कुछ अपनी कहेगी…कुछ उनकी सुनेगी।
विभा गुप्ता
# गंवार स्वरचित
सही मायने गंवार वो है जो इंसान होकर भी अपनी इंसानियत भूल जाये, सच्चाई को झुठलाकर दिखावा करे।सादगीपूर्ण जीवन जीने वाला और दूसरों के दुख में दुखी होने वाला तो सच्चा इंसान होता है जिसे सब प्यार करते हैं जैसे कि डाॅक्टर निखिल…ऐश्वर्या ने भी इस बात को मान लिया।