hindi stories with moral :मां रोटी सेंक रही है.. कैसी सोंधी महक उठ रही है,बैंगन का भर्ता और दाल चावल भी। सभी भाई बहनों को मां ने गर्मागर्म दाल चावल ,भर्ता , उसमें बहुत सारा घी डालकर परोस दिया। बस कौर उठाया ही था कि बाबूजी के आने की आवाज आई… बाबू जी के खाना खाने का समय भी नियत रहता था।
सभी ( भाई बहन) अपनी अपनी थाली लेकर भागे। इधर उधर.. कोई सीढ़ियों पर बैठ कर, तो कोई बाहर बरामदे में तो कोई ऊपर आंगन की जाली में बैठ कर खाना खाने लगा।
डर ही इतना ( होता) था बाबूजी का।
कि खाना खाने जैसा अति साधारण काम भी उनके सामने बैठ कर करने में डर लगता था..
कुछ और की तो जाने ही दो
फिर पता नहीं उनके सामने पड़ने का मतलब, उनसे बात करना.. फिर बात किस तरफ़ मुड़ जाए,.. पता नहीं… कुछ पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछ लें तो?
पूछते ही जवाब देने के नाम पर हकलाने लगना… भले ही कितना ही पढ़ रखा हो.. और दूसरों के सामने कितना भी फर्राटेदार ज़बान चलती हो मगर बाबू जी के सामने बगले झांकने वाली स्थिति आ जाती थी।
वो भी तब जब बाबू जी स्वयं ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे।
मगर बच्चों से पूछना कि और कैसी चल रही है पढ़ाई लिखाई?
और बच्चों का ऐसे सकपका जाना मानों बाबू जी ने मैथ्स की किताब से पाइथागोरस की थ्योरम ही एक्सप्लेन करने को कह दी हो।
क्या मैंने अभी तक नहीं बताया?
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संघर्ष – मुकुन्द लाल
लो,.. भूल ही गई…
ये अपने अरविंद के बचपन के बारे में बताते बताते उसकी यादों तक पहुंच गई
यूं तो बाबूजी के पास कोई बड़ी डिग्री नहीं थी मगर हिसाब किताब और और मैनेजमेंट के बहुत पक्के थे!
रूपए पैसे के मामले में उन्हें कोई गच्चा नहीं दे सकता था और ना ही वो मैनेजमेंट तथाकथित प्रबंधन शास्त्र के मामले में उनसा दूसरा कोई था… ना घर में,… ना ही उनके व्यवसाय संभालने की कला में!
लड़कों को डांट डपट कर पढ़ने बैठा दिया जाता था… और लड़कियों को?…. उन्हें पढ़ाई करने पर डांट पड़ती थी.. क्या करना है पढ़ कर? ससुराल जाने पर रोटी( ही) बनानी पड़ेगी… घर के काम काज में निपुण हो जाओ पहले…. अरविंद ने अपनी छोटी बहन सीमा को पढ़ाई.. और ढेर सारी पढ़ाई करने ( ना कर पाने) के लिए कसकते देखा। मगर कुछ कर नहीं सका
ऐसा ही था,जब अपने माता पिता से अपनी कोई बात कहने के लिए इतना डर लगता था … बाबूजी के सामने पड़ने पर ऐसा हाल होता था जैसे किसी कैदी का जेलर से सामना हो गया हो……..वो भी चुपके चुपके जेल से भागते समय
कुछ बातें मां से कह पाते …तो बहुत कुछ नहीं… मां भी अपनी ढेर सारी पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त…. वक्त ही कहां था, बच्चों का उनसे चिपक कर लाड़ लड़ाने का…. मां का मुस्कुरा कर दाल चावल में ऊपर से ढेर सारा घी डाल देना ही ये एहसास दिलाने के लिए काफी होता था कि वो कितना प्यार करती हैं.. कितना ध्यान रखती है… और उन्हे कितनी परवाह भी है… वगैरह -वगैर!!
*****
मम्मी छोड़ो ना! सब काम… चलो मेरी डिबेट लिखो… मैम को सुनाना है कल ही..
ओहो.. पहले क्यूं नहीं बताया… अभी खाना बनाना बाकी है…
चलो जल्दी जल्दी खाना खाओ… फिर मैं लिखने बैठती हूं
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कोर्ट मैरिज* – *नम्रता सरन “सोना”
तुम भी अपनी पढ़ाई करो.. किसी और चीज.. में ध्यान मत भटकाओ… सबसे ऊपर शिक्षा ही है।
घर का काम.. वो भी वक्त के साथ आ जाता है…
नही लौट कर वापस आता है तो पढ़ने का समय… इस समय का भरपूर सदुपयोग करो…..
पापू ..पापा.. कहां हैं आप… बहुत देर से पढ़ते पढ़ते थक गई हूं मैं… चलो बैडमिंटन खेल कर आते हैं
वाओ पापा को हराया मैंने….
तुमसे हारने में भी अलग आनंद है बेटा
पापा मेरे पैर दर्द हो गए
चलो मैं मालिश कर देता हूं बेटा… गर्म तेल तलुओं में लगा देता हूं…
मम्मी पापा के बीच में बैठ कर बातें करनी हैं मुझे….और बिटिया का बैठने का अड्डा अक्सर ही मम्मी पापा के बीच में ही होता
कहां हम लोग बाबू जी से कैसा डरते थे.. अब तो सोच कर ही हंसी आती है अरविंद को
पापा मैंने ये…. इक्जाम क्वालीफाई किया है.. दो दिन में पहुंचना होगा एडमिशन के लिए
बिल्कुल बेटा, तुम और मम्मी तैयारी करके रखो.. मैं घर पहुंचता हूं घर.. मैंने टिकट बुक करा लिए हैं
अरविंद जो दूसरे शहर में दौरे पर थे, उन्होंने कहा
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” प्यार का बंधन ” – डॉ. सुनील शर्मा
सच!…… समय को कितना बदलते देखा… वो माता पिता से अनकहा डर जो पिछली पीढ़ी में कमोबेश व्याप्त था… वो मित्रवत रिश्ते में बदलने लगा…. अब हर बात माता पिता से कह पाते हैं.. बिना डर…. बिना झिझक के
और बहुत कुछ तो बगैर कहे ही जान जाते हैं मम्मी पापा…
अपनी बिटिया की शिक्षा… उसके पंखों को उड़ान देने के लिए तत्पर.. रहते हैं
मम्मी के पास भी भरपूर समय है लाड़ लड़ाने का… पापा के पास भी
अब बेटियां पढ़ाई छुड़ा कर काम में नहीं लगाई जाती बल्कि काम छुड़ाकर पढ़ाई में लगाई जाती हैं!
ये सुखद बदलाव हर जगह दिखा….. पढ़ी लिखी मांओं में भी… और उनमें भी जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सहयोग, समर्थन नहीं मिला।
अरविंद भी कल्पना करके हंसता है… कैसे और कितना डरते थे हम लोग मां, बाबूजी से…. पिता का स्नेह भी कम ही समझ आया…. मित्रवत रिश्ता तो बहुत दूर की बात है!
और छोटी बहन सीमा
उसने भी कमर कस लिया… अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई का मुस्तैदी से ध्यान रखा.. बेटे और बेटी दोनों की शिक्षा के लिए दिन रात एक करके साथ दिया
जो कसक हृदय में रह गई थी.. वो बिटिया को उच्च शिक्षा प्राप्त करते देख कर.. गहरे आत्मसंतोष के रूप में मिल रही है!
हम पीछे नहीं लौट सकते.. मगर गुजरे वक्त के साथ जो अनुभव हमारी थाती ( धरोहर)बन गए हैं.. उनका उपयोग वर्तमान को संवारने में नहीं किया जो जीवन यात्रा में मिले अनुभव व्यर्थ ही हैं।
सबसे बढ़िया बात जो हमारी पीढ़ी के साथ हुई वो ये कि ये परिवर्तन की वाहक बनी और साक्षी भी!
जो हमारे साथ हुआ बहू के साथ भी वही करेंगे… से इतर( अलग)… हमारे रास्ते में जो मुश्किलें आईं, उनसे सबक लेते हुए,अगली पीढ़ी के लिए कुछ करने.. कुछ बनने की राह आसान करेंगे… इस भावना तक.. सभी समझदार लोग आते गए!….. बहुतों का बदलना अभी शेष है.. मगर इस बदलाव की बयार का असर उन पर भी होगा
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समाधान – नीति सक्सेना
यह परिवर्तन खाने पीने, पहनने ओढ़ने जैसी मूलभूत चीजों पर पाबंदी से अलग सोचने से लेकर.. स्त्री को स्वयं अपना वजूद तलाशने तक आ गई!
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चलो तैयारी करो… आज बिटिया के कालेज में कन्वोकेशन है… बेटी ने ना सिर्फ डिपार्टमेंट में गोल्ड मेडल जीता है बल्कि युनिवर्सिटी टापर भी रही है!
सभी मिल रहे हैं… प्रशंसा कर रहे हैं… बधाई दे रहे हैं.. कितने अच्छे से परवरिश की है आपने!!
किसने कहा, सिर्फ बेटे ही सम्मान से सिर ऊंचा कराते हैं?
ये बेटियां हैं!! जो इस मुकाम तक ले आती हैं… परिवार की मान मर्यादा,नाम को…..
अरविंद और सीमा दोनों भाई बहन,जब मिलते हैं दोनों भाई बहन.. ना सिर्फ अपने बचपन के ( बाल सुलभ) झगड़ों को याद करते हैं.. बल्कि यह भी कि
कहां से कहां आ गए.. हम लोग
अब कोई बेटी शिक्षा के लिए तरसेगी नहीं… हमने जो खुद पाया.. उससे कहीं ज्यादा अपने बच्चों के लिए किया
जैसे बदलाव के साक्षी ये दोनों हैं… वैसे ही सभी हों
हां कोई राह इतनी आसान भी नहीं होती… अपने अपने संघर्ष साथ चलते हैं… और उनमें ही राह निकालनी पड़ती हैं!
जब पिछली पीढ़ी से इस पीढ़ी में आते आते चीजें, परिस्थितियां इतनी बदली. रुढियों में जकड़े लोग उन्हें तोड़ कर बाहर आए… तो आने वाली पीढ़ी?
हां.. बिल्कुल उनके भी साथ भी सार्थक और समझदारी भरे बदलाव को देखने को आतुर है यह पीढ़ी!!
और आने वाले सुखद बदलाव की प्रतीक्षा के साथ
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संयम – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू
यह कहानी मैंने इसीलिए लिखी कि जो लोग ,जिस पिछली पीढ़ी, तथाकथित कम पढ़े लिखे माता पिता को गंवार समझ कर कमतर आंकते हैं ,उन्होंने जो उच्च कोटि के संस्कार अपने बच्चों को दिए उसका भौतिक डिग्री से कोई मूल्यांकन नहीं हो सकता!,
तो आशय सिर्फ इतना है कि,सार,-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाए!!
उच्च शिक्षित बने,अनेक उपलब्धियां हासिल करें, नए कीर्ति मान स्थापित करें, परंतु बड़ों का सम्मान, कुछ कहने से पहले लिहाज को गंवारू पन ना समझे। क्योंकि बगैर कुछ सोचे समझे किसी को कुछ बोलना मार्डन नहीं असंस्कारी होना बताता है।
समय के साथ बहुत सारे विचार धाराओं में परिवर्तन, आवश्यक है परन्तु अच्छे विचारों का प्रश्रय, सम्मान और अगली पीढ़ी को हस्तांतरण भी उतना ही महत्व पूर्ण है!!
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित ,
पूर्णिमा सोनी
# गंवार ,कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक बदलते कल की ओर