अब बस भी करो -रश्मि प्रकाश : hindi stories with moral

hindi stories with moral : “ तुम ना एकदम गंवार ही रहोगी…किसी के सामने कैसे बात करना है तुम्हें जरा भी सलीका नहीं है….. जब बोलना नहीं आता तो मुँह खोलती ही क्यों हो…. और तो और शब्दों का सही उच्चारण नहीं किया जाता तो चुप रहती …बोलने की ज़रूरत नहीं थी…बहुत बड़ी गलती हो गई जो मैं तुम्हें अपने साथ उस पार्टी में ले गया… पता नहीं क्यों कहा गया स्पाउस के साथ आना है…..तुम कहीं भी जाने लायक नहीं हो।” ग़ुस्से में बिस्तर पर कोट फेंकते जूते पटकते हुए सोमेश बाबू कमरे से निकल गए

एक कोने में शारदा चुपचाप आँसू बहा रही थी 

दूसरे कमरे में उसके युवा होते बच्चे सब सुन रहे थे और पापा पर आ रहे …ग़ुस्से को मन में ही पी रहे थे ।

उधर अपने कमरे में संतोष जी का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था…..उन्हें लग रहा था इतिहास फिर से दोहराया जा रहा है… जब तक एक औरत चुप रहती चली जाती है मर्द का अहं भी चरम सीमा पार कर गाली गलौज पर उतर आता है…..अब तक वो बहू को चुप रहने कहती रहती थी ताकि घर में बेवजह का क्लेश ना हो पर आज बेटे ने जो कुछ भी कहा वो सुन कर उन्हें अपने जाये पर ही ग़ुस्सा आ रहा था…उम्र हो रखा था तो वो हमेशा अपने कमरे में ही पड़ी रहती और माला जाप करती रहती थी…वो उठी और बाहर सोफे पर बेटे को टीवी देखता देख उसके पास जा कर बैठ गई ।

“ क्या बात हो गई जो तुम बहू पर इतना चिल्ला रहे हो… ये भी भूल गए घर में बच्चे है जो बड़े हो रहे हैं उनपर क्या असर होगा समझ में आता है?” संतोष जी बोली

“ माँ पता नहीं तुमने क्यों ये गंवार मेरे पल्ले बाँध दी… जिसे बड़े लोगों के साथ कैसे बात करनी चाहिए ये भी समझ नहीं आता ….उधर सब इतने अच्छे से एक दूसरे से अंग्रेज़ी में बात कर रहे थे पर ये पहले तो चुप रही मैं भी सोचा अच्छा है पर जब सबने इससे बात करनी शुरू की तो ये लगी अपने तरीक़े से बोलने…सच पूछो ऐसा लग रहा था मैं अकेला ही चला जाता तो ही अच्छा होता।” सोमेश ने कहा 

“ हाँ बेटा ये बात तो तू एकदम सही बोल रहा है… गंवार बीबी ले आई तेरे लिए… पता है ये जो गंवार बीबी है ना तेरी…वो ही बच्चों की ट्यूशन टीचर भी है…और तो और तू तो कभी स्कूल भी नहीं गया बच्चों के वो भी नो गंवार ही जाती हैं…. स्कूल फ़ीस से लेकर किताबें लाने और पैरेंट्स टीचर मीटिंग में…और तो और वो जो दूर दूर डॉक्टरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं ना वो वही गंवार औरत लेकर जाती है मुझे…बच्चों की ज़रूरतें…घर के ज़रूरी सामान सब वही लाती हैं… घर का हिसाब किताब भी वही गंवार देखती है…और कुछ बताऊँ…जो तुम इतने अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर जॉब पर लगे हो ना वो भी किसी गंवार औरत की वजह से ही क्योंकि ये बात तेरे पिता भी मुझे कहा करते थे और तुम्हें तो पता ही होगा तुम्हारे पिता के संस्कार कितने अच्छे थे।” कहते कहते संतोष जी की साँस उखड़ने लगी इतनी देर तक वो बोलना जैसे भूल ही गई थी 

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“ अब बस भी करो माँ गंवार की इतनी बातें बताने की ज़रूरत नहीं है मुझे भी सब पता है पर इसे जब बोलना नहीं आता तो मुँह बंद रखना चाहिए था ना…. क्या ज़रूरत थी ऐसे ऐसे अंग्रेज़ी शब्द इस्तेमाल करने की जिसका सही उच्चारण करना इसे नहीं आता…वहाँ लोग जब सही कर के बोल रहे थे तो कहती है हाँ वही कह रही थी… गंवार फूहड़ कहीं की।” सोमेश ग़ुस्से में बोला

“ बेटा मेरी बहू गंवार नहीं है गंवार तो तू है…माना उसे अंग्रेज़ी सही बोलना नहीं आता .. ये भी मान लिया उसे बड़े अफ़सरों की पत्नियों से बात करने का सलीका नहीं है पर इसकी ज़िम्मेदार वो नहीं तुम हो…कभी पहले लेकर गए थे उसे ऐसी पार्टियों में ….जब से तुमने उसे बताया कि सब को अपने अपने स्पाउस के साथ आना है वो तब से डरी हुई थी…कह रही थी बोल रहे हैं अंग्रेज़ी में बात करेंगे सब उधर तुम चुप ही रहना … अब जब सब बात कर रहे थे तो इससे जैसे बन पड़ा बोल रही थी तेरे ही कहने पर ….क्या हो जाता वो अपनी भाषा में बात करती कम से कम सही तरीक़े से बात कर पाती…एक तो वो वैसे ही डरी सहमी सी गई उपर से आने के बाद तेरे तानें… बेटा कोई औरत तब तक ही बर्दाश्त कर सकती है जब तक सहनशक्ति ….जब वो ख़त्म हो जाएगा तो तुम भी उसके कोप का भाजन बनोगे कहे देती हूँ… घर में बच्चे है वो भी यही सीखेंगे… बेटी डर डर कर जिएँगी और बेटा तेरी तरह औरतों पर ग़ुस्सा करने वाला…कुछ तो करता नहीं तू उनके लिए कम से कम ये गँवारों की तरह अपनी पत्नी पर चिल्लाना बंद कर नहीं तो शारदा जो मेरी बात का मान रख तेरी बात सुनती जा रही है ना कल से वो भी तेरी तरह ही बात करने लगेंगी।”संतोष जी हाँफते हुए बोली 

“बस माँ आप चुप हो जाइए… इतना बोलना आपके सेहत के लिए अच्छा नहीं है… चलिए आप कमरे में आराम कीजिए ।” माँ बेटे की बात सुन रही शारदा आ कर बोली पता था सोमेश चिकनी मिट्टी है उनपर कुछ भी असर नहीं होगा 

“ माँ दादी सही ही तो कह रही है…इस घर को आप जितने अच्छे से सँभाल कर रखती है हमारे टीचर आपसे इतने प्रभावित होते हैं… हमारी पढ़ाई का सारा श्रेय वो आपको देते हैं ऐसे में आप गंवार तो कहीं से नहीं है बल्कि हमारे लिए सबसे समझदार माँ है।” दादी को सहारा देने आए दोनों बच्चों ने कहा

सोमेश ये सब सुन कर चौंक गया….. माना बच्चों ने कभी उसके सामने कुछ ना कहा हो..पर आज वो जो बोल गए सच ही कह रहे…मैं भी तो सब कुछ शारदा पर छोड़ कर आराम से नौकरी कर रहा वो गंवार होती तो मुझे वो सब करने पड़ते जो शारदा करती है…अब से मुझे अपने व्यवहार में सुधार लाना होगा… कम से कम बच्चों की ख़ातिर ।

सोने के लिए जब वो कमरे में गया शारदा माँ के साथ ही थी कमरे में नहीं आई थी वो बेचैनी से उसकी राह देख रहा था आज अपनी उस गंवार बीबी से समझदार पति बन कर बात जो करनी थी।

दोस्तों बहुत सी महिलाएँ इन परिस्थितियों का सामना करती होगी…वो घर गृहस्थी में निपुण होती है ….ज़्यादा बाहरी लोगों से बातचीत नहीं करने से बहुत सी बातों की जानकारी नहीं होती उपर से जब आप पर किसी बात का दबाव हो तो आदमी का अपना अस्तित्व कहीं दब सा जाता है…उन्हें वैसे ही पुलकित होने दे…. तभी वो सही तरीक़े से अपने आपको सबके सामने पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत कर सकते है ।

ये मेरी सोच है आपकी सोच का इंतज़ार रहेगा … रचना पर अपनी  प्रतिक्रिया व्यक्त करें।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#गंवार

 

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