hindi stories with moral : रजनी क्या यार… कई दिनों से देख रहा हूँ तुम्हारी हरकतें …. लगा शायद तुम खुद ही समझ ज़ाओगी… इसलिये कुछ नहीं बोला…. झुँझलता हुआ रजनी का पति साकेत बोला….
क्यूँ ऐसा क्या मैने कर दिया जो तुम मुझ पर शादी के चार साल बाद इतना गुस्सा हो रहे हो?? रजनी हाथ में पकड़ा सेब खाते हुए बोली….
तुम खुद नहीं समझ पा रही क्या ….. मैं क्या कहना चाहता हूँ….
नहीं…. मुझे नहीं पता… कि तुम किसका गुस्सा किस पर निकाल रहे हो….
गुस्से में साकेत ने अपने कमरे की टेबल पर जग में रखे दूध की प्लेट हटाते हुए कहा ….. ये बताओ ये क्या हैँ…
दूध हैँ… दिखायी नहीं पड़ता क्या तुम्हे … रजनी का गुस्सा भी अब बढ़ रहा था. …
तुम जब से आयी हो इस घर में … उसके कुछ महीनों के बाद से ही पहले लोटे में दूध भरकर ले आती थी… अब बेटू आ गया हैँ तो उसके बहाने से तुम्हारा लोटा जग में बदल गया हैँ.. बेचारे पापा खाने पीने का पैसा नहीं लेते हम पर तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम उनके भोलेपन का नाजायज फायदा उठाओ…. मुझसे लेते ही नहीं… कितना भी देने की कोशिश करूँ… कि अपने पोते के दूध और तुम लोगों के खाने पीने का खर्चा लूँगा…. पापा कितने प्यार से बोले थे कि साकेत बेटा तू अपनी सैलरी बचा के रख …. आगे चल कर कुछ प्रोपर्टी ले लेना…. घर के खरचे के लिए अभी तेरा बाप हैँ…. पापा का बजट बिगड़ रहा हैँ… बेचारे हर महीने चस्मा लगाके अपनी डायरी में हिसाब करते हैँ…. .
तो क्या मैं बजट बिगाड़ रही हूँ साकेत … बोलो??
और नहीं तो क्या.. बेचारी माँ चार किलो दूध लाती हैँ…. वो लोग रात में बस एक ग्लास दूध लेते हैँ…. बाकी दूध तुम रात में कमरे में इंडक्शन पर गर्म करके बेटू को पिलाने के बहाने ले आती हो…. क्या माँ को पता नहीं चलता…. इतना दूध बेटू तो नहीं पीता ….
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तुम दूध का हिसाब भी करने लगे…. जिस घर में मेरे बच्चे के दूध पर भी पाबंदी लगायी जायें उस घर में में हरगिज नहीं रहूँगी….
समझे तुम ….
मैं सिर्फ दूध की बात ही नहीं कर रहा…. तुम ध्यान देती हो कभी… पापा ने अभी एक महीने पहले पूरे घर में इतना महंगा पेंट करवाया हैँ…. बेटू सारी दीवारों को खराब कर रहा हैँ..
कभी तुम उसे करने से मना करती हो….. घी रोटी में सब्जी में तो ऐसे डालती हो जैसे घी नहीं पानी हो…. कपड़े धोने में इतना पानी खर्च करती थी… दिन में तीन बार समर चलती हैँ…. कमरे में एसी के साथ फैन भी चलाती हो… टीवी तुम्हारा पूरा दिन चलता हैँ….. तुम्हारे कहने पर कामवाली भी लगा दी पापा ने…. जब अकेले रहोगी रजनी तुम तब तुम्हे एक एक पैसे की कीमत पता चलेगी… ये तुम्हारा घर हैँ रजनी…. इसे घर की तरह समझो… होटेल नहीं….. हर चीजों को अपना समझो… ये माँ पापा तुम्हारे भी माँ पापा हैँ…. वो तो माँ अच्छी हैँ… बाकी सासों की तरह रसोई में दखलंदाजी नहीं करती…. कि बहू को बुरा ना लगे… कि मुझ पर नजर रखने आ गयी…. तुम खाना बनाते हुए फ़ोन पर लगी रहती हो…. गैस चलती रहती हैँ…. कभी ध्यान रहता हैँ तुम्हे… बस मैं इतना कहना चाहता हूँ कि माँ पापा को अपने माँ पापा जैसा समझो… एक गृहणी की तरह अपनी गृहस्थी संभालो…. इस घर को दिल से जिस दिन अपना मानने लगोगी कि तो ऐसा नहीं करोगी…. अच्छा अब सोने दो… खुद भी सो जाओ….
साकेत सो गया… रजनी कुछ सोच विचार में लगी हुई थी…. वो जग में रखा दूध उठाकर कमरे के बाहर आयी….
अगले दिन सास ससुर को रजनी ने खाना परोसा …. ससुर जी की आँखों में चमक आ गयी….. बहू ये गाजर का रायता और आलू की रोटी देखके तो मन प्रसन्न हो गया… दही कहां से आया बहू?? ससुर जी ललचायी नजरों से रायते को देखते हुए बोले….
पापा…. आप चार किलो दूध लाते हैँ.. .. इतने में तो दोनों टाइम रायता बन जायें …. अब रोज बना दिया करूंगी…
अरे नहीं बहू… ठंड जकड़ लेगी इन्हे … एक ही टाइम बहुत हैँ बहू… बड़े स्वाद का बना हैँ…. थोड़ा और दे दे हो तो…. सासू माँ खुश होते हुए बोली….
हां हां माँ जी लीजिये …. रजनी ने और रायता सास के कटोरे में डाल दिया… कल चूल्हे पर बनाऊंगी पापा की मनपसंद बाजरे की रोटी….
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क्या …. बाजरे की रोटी…. देख कितनी होशियार हैँ मेरी बहू… बाजरे की रोटी बनाना भी जाने हैँ…. ऐसी बहू सभी को दे भगवान…. ससुर जी बोले….
पतिदेव भी पीछे किचेन में आयें रजनी के… उसे पीछे से बाहों में भर लिया… भई तुम चूल्हे पर भी रोटी बना लेती हो… आज पता चला….
जी बना तो हमेशा से लेती हूँ…. पर इस घर को असल मायने में अब अपना पायी हूँ….आखिर यहीं तो मेरा असली घर हैँ…
पतिदेव के चेहरे पर मुस्कान तैर आयी थी….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा