hindi stories with moral : पूरी कोठी सितारों की तरह झिलमिलाती रोशनी में नहाई हुई थी और मीरा जो खुद चांद समान खूबसूरत थी, उसकी अर्धांगिनी बनकर उसके जीवन में प्रवेश कर गई थी.
जागती आँखों में कटी थी मीरा की सुहागरात. कमरे में प्रवेश करने के कुछ पल बाद वैभव ने मीरा से धीमे स्वर में कहा “सो जाओ मीरा,थक गईं होंगी.”
“ये क्या,क्या ऐसे सपने संजोए थे मीरा ने आज की रात के लिए,पति पत्नी के रिश्ते को नींव तो वैभव के रूखे शब्दों के साथ ताश के पत्तों की तरह ढह गई थी.”
शहद की मिठास की तरह तरल शब्दों की अपेक्षा यह बेरुखे से शब्द मीरा को भीतर तक खरोंच गए थे. वैभव ने शेल्फ से एक किताब उठाई और कोने में सजी एक कुर्सी पर बैठ कर पूरी रात गुज़ार दी.
अगले दिन सुबह सवेरे मीरा का व्यवहार घरवालों के समक्ष बेहद आदर्श और प्रंशंसात्मक रहा. कोई भूले से भी ना समझ पाया की उसकी आंखों में तैरते लाल डोरे प्यार के खुमारी नहीं बल्कि आंसुओं से भीगते तकिये को अपना साथी बना लेने के कारण थे.
कुछ दिन मीरा वैभव को देखती समझती रही. वैभव से उसकी बातचीत कम होती थी परन्तु उसकी सभी दैनिक ज़रूरतों का वह खूब ख्याल रखती थी.
धीरे धीरे मीरा वैभव का व्यवहार समझती गई.बहुत खुले दिल का मालिक था वो.जब मीरा फैक्ट्री गई तो वहां के कर्मचारियों का वैभव के प्रति अपनत्व देख कर भावविह्वलहो गई थी.समझ गई थी की इन लोगो के साथ वैभव का व्यवहार कितना अपनापन लिए हुए है.
करीब महीने भर बाद मीरा की कुछ सहेलियाँ उससे मिलने आईं. वैभव ऑफिस जाने के लिए सीढ़ियाँ उत्तर ही रहा था की नीचे से उसे मीरा की आवाज़ सुनाई दी.
“ये बता मीरा कहाँ कहाँ घूमी हनीमून पर, कुछ तस्वीरें तो दिखा…”
“तस्वीरें, अरे मेरा तो मोबाइल ही पानी में भीग गया था, पूरा ख़राब हो गया था, कोई तस्वीरें नहीं बची, वैसे हनीमून था बहुत प्यारा मेरा. वैभव ने पूरा इंतज़ाम इतने अच्छे से किया था की क्या बताऊँ. अच्छा, तुम लोग बैठो, मैं अभी आती हूँ.“
यह सुनकर वैभव कुछ असहज सा महसूस करने लगा था. ग्लानि का कतरा जैसे उस पर छिटका हो. तभी मीरा ऊपर पहुंची तो वहाँ खड़े वैभव से उसकी नज़रे टकरा गयी. वो कुछ पल उसको एकटक देखता रहा फिर बिना कुछ कहे तेज़ कदमों से वहां से चला गया.
थोड़े दिनों बाद घर में वैभव के ताऊजी के बड़े बेटे बहु का बच्चों सहित आगमन हुआ. चीकू और अनु उनके दो प्यारे बच्चे थे जो हर वक्त मीरा को घेरे रहते. मीरा तो जैसे उन्हीं में रम गयी थी. उनके साथ खेलती, उनके लिए तरह तरह के व्यंजन बनाती, एक दिन वैभव घर आया तो देखा की मीरा बच्चों के साथ लुका छिपी खेल रही थी. उसकी आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी.
“चीकू, अनु कहाँ हो, कहाँ छुपे हो…” उन्हें तलाशते हुए आगे बढ़ी तो वैभव से टकरा गई. मीरा ने जल्दी से पट्टी नीचे की. सामने वैभव को देखकर कुछ झेप सी गयी. यह देख कर वैभव की हंसी छूट गयी. इशारे से उसने सोफ़े के पीछे छिपे चीकू अनु को दिखाया और मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया.
चाहत (भाग 3 )
चाहत (भाग 3 ) – जगनीत टंडन : hindi stories with moral
चाहत (भाग 1 )
चाहत – जगनीत टंडन : hindi stories with moral
Very interesting story