जमाने की रफ्तार – बालेश्वर गुप्ता : hindi stories with moral

hindi stories with moral : अरे तुझे क्या पड़ी थी,क्यूँ इस लफड़े में पड़ा, राजेश तूने बहुत बड़ी गलती कर दी है।

      मैंने ऐसा क्या कर दिया माँ?

    होरी आया था,उसका बेटा अनिल  किसी दूसरी जात की लड़की के साथ गायब है।उसका कहना था कि उन्हें राजेश ने ही समर्थन भी दिया और पूरी शह भी दी थी।तुझे क्या मतलब था?

     माँ मैंने कोई गलती नही की है।अनिल मेरी ही फैक्टरी में काम करता है।वो मेरे पास मंजू को लेकर आया था।वे दोनों शादी करना चाहते थे।मैंने तो बस यह कहा कि  शादी करना चाहते हो तो कर लो मैं सहयोग करूँगा,यदि तुममें हिम्मत न हो तो दुबारा मेरे पास मत आना।राजेश ने पूरी बात माँ को बताई।

       कभी राजेश भी ऐसे ही दूसरी बिरादरी की निम्मी से बेइंतिहा प्यार करता था।दोनो ने जीवन भर साथ रहने की कसमें खायी थी।प्यार परवान चढ़ा तो समाज में खुसर फुसर शुरू हो गयी।राजेश के पिता के पास भी जब समाचार पहुंचा और उन्हें पता चला कि लड़की दूसरी बिरादरी की है तो उन्होंने आसमान ही सर पर उठा लिया।

राजेश ने कभी सोचा भी नही था कि उसके पिता जो उसे इतना स्नेह करते हैं, वे इस बात पर इतना रौद्र रूप धारण कर लेंगे।पहले तो अनिल ने सोचा कि पिता जी की यह शुरुआती प्रतिक्रिया है, शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाये।पर ऐसा हो ना सका।उल्टे उसके पिता ने निम्मी के पिता का भी बुरी तरह अपमान कर दिया।निम्मी के पिता अपने अपमान को सह न सके,वे बिल्कुल टूट गये।बस एक बार ही निम्मी से कहा बेटा मेरा कुसूर क्या था?

भला निम्मी क्या जवाब देती,एक असमंजसता की स्थिति में खड़ी की खडी रह गयी।उसे लग रहा था कि उससे कोई बड़ा पाप हो गया है।फिर एक अनहोनी हो ही गयी,निम्मी के पिता को हृदयाघात हो गया और वे दुनिया से ही विदा हो गये।निम्मी को लगा पिता की मृत्यु की वही जिम्मेदार है, ना वह राजेश से प्यार करती और ना अपने पिता को खोती।

निम्मी को लगता सबकी निगाहें उसकी ओर ही हैं, जो कह रही हैं कि यही है अपने पिता की कातिल।निम्मी ने घर से निकलना लगभग बंद कर दिया था।राजेश ने निम्मी से मिलने की काफी कोशिश की पर निम्मी ने मिलने से साफ इंकार कर दिया।

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         राजेश को एक दिन पता चला कि निम्मी और उसकी मां कही चले गये है,अपना पता भी कही नही दिया।राजेश ने निम्मी को खोजने के काफी प्रयास किये पर उसका पता नहीं चला।राजेश ने अविवाहित रहने का निर्णय कर लिया।उसके पिता ने राजेश को शादी करने के लिये खूब समझाया,यहां तक कि वे निम्मी तक से भी शादी कराने को तैयार हो गये।पर अब हो क्या सकता था,तीर कमान से निकल चुका था।

      पिता के बाद राजेश ने ही फैक्टरी को संभाल लिया।निम्मी का कही पता नही चला और राजेश ने शादी नही की।उस दिन जब अनिल अपनी प्रेयसी मंजू को लेकर उसके ऑफिस में आया तो उसने सोच लिया कि वह इनका हश्र अपने जैसा नही होने देगा।तभी उसने अनिल से कह दिया था कि यदि शादी करोगे तो मैं पूरा सहयोग करूँगा।माँ से भी राजेश ने साफ कह दिया मां अनिल एक होनहार और अच्छा लड़का है वह   मंजू से शादी करना चाहता है तो मैं उसका पूरा सहयोग करूँगा,जो  मेरे साथ घटित हुआ है, अब वह इतिहास नही दुहरेगा।

        माँ राजेश के चेहरे को देखती रह गयी।वह जानती थी कि उसके बेटे के साथ अन्याय हो गया था।अनिल, मंजू के साथ कोर्ट मैरिज कर सीधे राजेश के पास ही आया और राजेश के पावँ छू कर आशीर्वाद मांगा।राजेश उन्हें लेकर पहले मंजू के घर गया उनके परिवार से उन्हें अपनाने का आग्रह किया,इतने बड़े उद्योगपति को अपने घर देख वो कुछ ना कह सके उनकी झिझक भी समाप्त हो गयी,बाद में राजेश अनिल के घर उसके पिता होरी से भी मिला।सामंजस्य स्थापित कराकर अनिल ने उनके लिये एक पार्टी का आयोजन भी कर दिया और खूब सारे उपहार देकर उन्हें विदा किया।

        राजेश को अनिल और मंजू की शादी कराकर सुकून मिला,पता नही क्यों उसे आज फिर निम्मी की याद हो आयी,पता नही कहाँ होगी?सोचते सोचते उसकी आंख लग गयी।

         मां,मुझे दो दिन के लिये बाहर फैक्टरी के काम से बाहर जाना है, कोई बात हो तो अनिल को बता देना।ठीक है बेटा, माँ कह उसके जाने की तैयारी में लग गयी।दूसरे दिन काम निपटा कर राजेश अपने होटल वापस आ ही रहा था कि उसे दूर से जो साड़ी पहने महिला पीछे से दीखी, उसे लगा ये तो निम्मी है,उसकी चाल में आज तक भी कोई अंतर नही आया था।बदहवास सा राजेश गाड़ी से उतर उस ओर झपट लिया,पास जाकर देखा अरे ये तो निम्मी ही है।राजेश उसको अवाक    हो देख रहा था तो उधर निम्मी अचानक सामने आये राजेश को देख रही थी।दोनो चुप,आखिर राजेश ने ही मौन तोड़ा निम्मी मैं तो आज तक तुम्हारा ही इंतजार कर रहा हूँ,कहाँ खो गयी थी तुम?

कुछ सकुचा कर निम्मी ने कहा राजेश जमाने की रफ्तार में तुमसे दूर हो गयी थी,पर विश्वास नही था जिंदगी के इस मोड़ पर तुम ऐसे मिल जाओगे।मैं भी तो तुम्हारा इंतजार कर रही थी।

      दोनो को आज  समाज की  चिंता नही थी।आगे बढ़ राजेश ने निम्मी के हाथ अपने हाथ मे ले लिये।

     बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित

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