hindi stories with moral : प्रिया और राकेश बचपन से बहुत अच्छे दोस्त थे। स्कूल से कॉलेज में चले गए परन्तु उनकी दोस्ती बरकरार रही।
राकेश कब उसे मन ही मन पसंद करने लगा पता ही नहीं चला।
हालांकि प्रिया, राकेश को महज एक दोस्त ही मानती थी।
पढ़ाई-लिखाई भी धीरे धीरे पूरी हो गई लेकिन राकेश ने कभी प्रिया से अपने प्यार का इजहार नहीं किया।
या यूं कह लें कि प्रिया की स्टेटस और राकेश की स्टेटस में काफी भिन्नता होने के कारण उसकी हिम्मत साथ नहीं दे रही थी।
कुछ ही दिनों के बाद प्रिया की पढ़ाई पूरी होते ही प्रिया की शादी के लिए लड़के तलाशे जाने लगे।
थोड़े ही प्रयासों के बाद एक अच्छा सा घर, परिवार और लड़का देखकर प्रिया के माता-पिता ने प्रिया का रिश्ता तय कर दिया।
शगुन, रस्म, रिवाज, मंडप सब का दिन तय होने के बाद वह दिन भी आ गया जिस दिन को बारात दरवाजे पर आनी थी।
लेकिन यहाँं पर तो अलग ही रस्म निभाई जा रही थी। बारात दरवाजे पर लगने से पहले ही लड़के वालों ने हंगामा कर रखा था। उनकी माँग थी कि बारात तभी दरवाजे पर लगेगी जब प्रिया के माता-पिता दस लाख नकद और कार की चाबी हमारे हाथ में रखेंगे।
प्रिया के माता-पिता उलझन में थे कि अब क्या होगा? एक तो समाज-परिवार में बदनामी होगी। ‘
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दूसरी बेटी वाली बात है और इतनी रकम उनके हाथ में है नहीं। इसलिए वे लड़के वालों से बहुत गिड़गिड़ा रहे थे।
तभी दूर बालकनी में खड़ी प्रिया जो यह सब देख सुन रही थी, उसने दुलहन के लिबास में ही आगे आकर लड़के वालों से कहा,,, “अब आप सब चले जाइए मेरे घर से, अन्यथा मैं अभी पुलिस बुलाती हूँ।”
प्रिया के पिता ने कहा,,, “नही प्रिया! तुम शांत रहो। परेशान मत हो।
मैं कहीं ना कहीं से रुपयों का बंदोबस्त कर लूँगा।”
प्रिया ने कहा,,, “नहीं पापा मुझे ऐसे लालची लोगों के घर दुल्हन बनकर नहीं जाना है। भले ही मैं जीवन भर कुंवारी बैठी रहूँ।”
तभी लड़के के पिता ने ऊंची आवाज में प्रिया के पिता से कहा,,, “हमें आपने यहाँ जूते पड़वाने के लिए बुलाया था क्या?
देखते हैं आपकी बेटी से विवाह कौन करता है?”
तभी राकेश ने बीच में आकर कहा,,, “आप प्रिया की शादी की चिंता मत करें। कृपया यहाँ से सम्मान के साथ चले जाएं। अन्यथा अभी तो जूते नहीं पड़ें हैं पर आगे भी नहीं पड़ेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है।”
फिर लड़के वाले वापस अपना सा मुँह लेकर चले गए।
किंतु शादी वाले घर में मातम सा सन्नाटा पसर गया था। एक लड़की के पिता के लिए यह बहुत ही दुख की बात थी।
वे मंडप के नीचे अपना सिर पकड़कर ये कहते हुए बैठ गए कि… “अब हमारी प्रिया का हाथ कौन थामेगा?”
तभी राकेश ने आगे बढ़कर कहा,,, “अंकल जी छोटी मुँह बड़ी बात परन्तु आपको ऐतराज ना हो, तो प्रिया का हाथ थामने के लिए मैं तैयार हूँ। मैं आपके जितना अमीरी में नहीं रख सकता लेकिन प्रिया को कभी भी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा, यह मेरा आपसे वादा है।”
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प्रिया के पापा ने भी अपनी रजामंदी दे दी। उसी मंडप में प्रिया और राकेश की शादी हो गई जो किसी और के लिए सजाया गया था।
राकेश मन ही मन सोच रहा था कि किसी ने यह सच ही कहा है… “किसी को यदि शिद्दत से चाहो तो कायनात जरूर मिला देती है!”
किंतु यह बात वह प्रिया से नहीं कह सका कि कहीं प्रिया यह ना सोच ले कि यह सब उसके कारण हुआ है।
खैर जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।
स्वरचित
©अनिला द्विवेदी तिवारी
जबलपुर मध्यप्रदेश
ये महज एक इत्तफाक था कि लड़के वाले लालची निकले और राकेश को उसका मनचाहा साथी मिल गया। ईश्वर करे हर सच्चे प्रेम करने वाले को ऐसे ही दिन दिखाए।