Moral stories in hindi : सिया और यश दोनों बहन भाई सुन्दर, सुशिक्षित एव संस्कारवान बच्चे थे। महेश जी एवं मनीषा जी की आँखो के तारे राजदुलारे थे। महेश जी अमीर तो नहीं थे, किन्तु उच्च मध्यमवर्गीय परिवार था। अतः बच्चों को पालने में उन्हें कोई बात की कमी नहीं की. न बेटा बेटी में अन्तर किया। बहुत ही लाड दुलार से उन्हें पाला। महेश जी सरकारी नौकरी में उच्च पद पर आसीन थे, और मनीषा जी एक सुगृहणी। वे घर गृहस्थी बड़े ही सुचारू रूप से चला रहीं थीं, साथ ही बच्चों को नैतिक शिक्षा दे एक संस्कारवान, जिम्मेदार नागरिक बना रहीं थीं।
देखते ही देखते दस वर्ष बीत गए। बच्चों ने अपनी इच्छानुसार पढाई पूरी की। सिया ने कम्पूटर साइंस में BE की जबकि यश मेकेनिकल इंजिनीयर बना। दोनों का ही चयन लाखों के पैकेज पर केम्पस सिलेक्शन में ही हो गया। उन्होंने अपनी-अपनी जॉब ज्वाइन कर ली। एक वर्ष बाद ही मम्मी-पापा अपनी अन्तिम जिम्मेदारी पूरी कर मुक्त होना चाहते थे
सो उन्होंने बर-वधू की तलाश शुरू की। जल्दी हो उन्हें अनु के रूप मे अपनी पुत्रवधू मिली। वह भी कम्प्यूटर साइन्स में इंजीनियरिंग कर मल्टी नेशनल कम्पनी में जॉब कर रही थी। बडा ही अच्छा सभ्य परिवार था। अनु भी सुशील संस्कारी लड़की थी सो उन्होंने रिश्ता पक्का कर तुरन्त शादी कर दी ।अनु एक बहुत ही सुलझी हुई खुले विचारों की लड़की थी संस्कार एवं पारिवारिक मूल्य उसमें कूट कूट कर भरे हुए थे। सो परिवार में घुलने मिलने में उसे कोई कठिनाई नहीं हुई।
वह सुबह ऑफिस जाने के पहले मनीषा जी का घर के काम में हाथ बंटाती। शाम को ऑफिस से लेट हो जाने के कारण वह काम नहीं करवा पाती सो उसे अच्छा नहीं लगता कि मनीषा जी अकेले ही सब काम करतीं हैं। वह अक्सर कहती मम्मी जी शाम को खाना बनाने के लिए कुक रख लेते हैं, आप अकेली काम करतीं है थक जाती होंगी, आपको थोडा आराम मिल जाएगा।
मनीषा जी हंसकर बोलती तू चिन्ता मत कर बेटा अभी मेरे हाथ-पाँव चल रहे है सो सम्हाल लेती हूँ। तेरे आने से पहले भी हो सम्हाल रही थी अभी इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूं।
इस तरह हंसी खुशी परिवार मिल कर रह रहा था।
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महेश जी सिया के लिए भी ऐसा ही एक संस्कारी समझदार, खुले विचारों वाला परिवार चाहते थे, जहां उनकी बेटी खुल कर साँस ले सके और उसका भविष्य सुखद हो। तभी उनके एक परिचित ने उन्हें एक परिवार के बारे में जानकारी दी। पिता सरकारी अफसर है बेटा इंजिनीयर है किसी कम्पनी में काम करता है। वे बोले हमारा उनसे सीधा सम्बन्ध तो नहीं है उनके बारे में जानकारी कर लें। यदि उपयुक्त लगे तो ठीक है।
महेश जी ने जब उनके बारे में पता किया तो सबने तारीफ ही की कि अच्छे लोग है।
महेशजी ने जब रिश्ते की बात चलाई तो वे सिया को देखने आए। सिया उन्हें बहुत पसन्द आई। सिया और मनन ने भी एक दूसरे को पसंद कर लिया और शादी सम्पन्न हो गई।
शुरु में तो सब ठीक रहा किन्तु छः माह बाद ही उनका असली रूप सामने आ गया। उन्हें शादी में मिले दहेज से सन्तुष्टि नहीं थी। आए दिन सास रचनाजी उसे कम दहेज का ताना मारती । मेरे बेटे को लडकियों की क्या कमी थी। एक से बढकर एक रिश्ते आ रहे थे लाखों का दहेज मिल रहा था किन्तु हमारी मति पर पत्थर पड़ गए थे जो तुम्हें पसंद कर लिया।
जबकि महेश जी ने साम्यर्थानुसार बहुत कुछ दिया था। वह दुःखी हो जाती पर चुप रहती, शायद इनकी सोच बदल जाए। किन्तु रचना जी का व्यवहार दिन प्रतिदिन उसके साथ कटु होता गया। हर समय उसे खरी खोटी सुनाना। उसके काम मे नुक्स निकाल कर उसे अपमानित करना। बात-बात पर संस्कारहीन कहना, माँ ने कुछ नही सिखाया, कुछ काम नहीं आता। सिया मानसिक रूप से परेशान रहने लगी। अभी तक तो रचना जी परेशान कर रहीं थीं, अब मनन ने भी अपना असली रुप दिखाना शुरू कर दिया। बात- बात पर उसपर चिल्लाता, कुछ काम न आने का ताना मारता।
धीरे-धीरे अब वह अपशब्द भी बोलने लगा। अक्सर शाम को शराब पीकर आता। जब सिया ने उसे समझाने की कोशिश की तो बोला -ज्यादा शिक्षा देने की कोशिश मत कर। ये मेरी जिन्दगी है जैसे चाहूँगा वैसे रहूँगा, तू अपने काम से काम रख, सिया हतप्रभ हो उसका मुँह देखने लगी कि वह बोल क्या रहा हैं यह भी वह जानता है क्या। अब अक्सर उनके बीच झगडा होने लगा। उसने सब बात सास को बताई तो बजाए उसका पक्ष लेने के वे बोली वो मर्द जात है, तुझे उसे रोकने का कोई हक नहीं संस्कारहीन कहीं की ये भी नहीं जानती कि पती की इज्जत कैसे की जाती है।
सिया के तन बदन में आग लग गई यह सुनकर फिर भी वह चुप रहीं।
तभी एक दिन उसके मम्मी-पापा, भाई यश किसी काम से पूणे आए थे सो उससे मिलने आ गए। उन्हें देखकर रचनाजी एवं राजेन्द्र जी कुछ खास खुश नजर नहीं आए। बड़ी रुखाई और बेमन से उनका स्वागत किया। अभी वे बात ही कर रहे थे कि तभी मनन भी वहीं आ गया । और देखते ही बोला हाय अंकल, आँटी आज कैसे आना हो गया। हलो यश ,तुम यार काम धाम पर नहीं जाते हो क्या जो मुंह उठाए यहाँ चले आए । तीनों उसका मुँह देखने लगे। सिया भी वहीं बैठी थी ,उसका सिर शर्म से झुक गया।
तभी सिया से बोला इन्हें चाय-नाश्ता करवा दो शायद ये इसी चाहत में आए हैं ।
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महेश जी बोले बेटा तुम ये कैसी बातें कर रहे हो क्या हम अपनी बेटी से मिलने नहीं आ सकते।
क्यों वो यहां ठीक से रह रही है क्या जरूरत है मिलने की। पच्चीस बर्ष तक शादी से पहले रखा न आपने अब भी आपका मन नहीं भरा जो मिलने चले आए।
रचना और राजेन्द्र जी ने एक शब्द भी बेटे से नहीं बोला कि वो कैसे बात कर रहा है ।अपने से बडों से बात करने की भी तमीज नहीं है इसको सिया इसके साथ कैसे रह पाती होगी , सोचते हुए वे उठे और बोले अच्छा हम चलते हैं। किसीने उन्हें हे रोकने की कोशिश नहीं की। सिया को गले लगाते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा ।वह डबडबाई आंखों से उन्हें देखती रही।
सिया उनके जाने के बाद बोली ये तुमने किस तरह का व्यवहार किया मेरे मम्मी पापा के साथ यश भाई बड़े हैं। तुम कैसे बोले ये ही तुम्हारे संस्कार हैं। मेरे को तो घर में दसियों बार संस्कार हीन कहा जाता है, जबकि तुमने अपना व्यवहार देखा।
चुप कर मेरे से अपनो बराबरी करती है, में दामाद हूँ और तू बहू ।
तो तुम्हें यह अधिकार मिल गया कि तुम मेरे मम्मी पापा से बदतमीजी करोगे।
रचना जी बोलीं क्यों पति से जबान लडा रही है वह दामाद है।
सिया बोली वाह क्या दोहरी मानसिकता है। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की बहू संस्कार हीन है या दामाद ।मेरे मम्मी पापा ने तो मुझे बहुत अच्छे संस्कार दिए तो भी आप मुझे संस्कारहीन कहती हैं, जबकि आपने अपने बेटे को क्या सिखाया है संस्कार हीन तो वह है। यदि आप लोगों ने अपना रवैया नहीं बदला तो अब मैं यह सब नहीं सहूँगी। मुझे ही कोई निर्णायक कदम उठाना होगा। अब यह आप पर निर्भर करता है कि यह रिश्ता आगे चलाना है या नहीं,सोच लीजिए।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित