Moral stories in hindi : आलोक बाबू और उनकी पत्नि सीमा ने अपने इकलौते बेटे को बहुत लाड़ प्यार से पाला था अपनी सीमित आमदनी में भी। खुद की इच्छाओं को दबा बेटे की हर इच्छा पूरी की थी उन्होंने । बेटा अंकित भी होनहार था। अपनी पढ़ाई पूरी कर इंजीनियर बन गया था और पढ़ाई के दौरान ही उसको अच्छी कंपनी में जाॉब भी मिल गई थी। अब उसके रिश्ते भी आने लगे थे। कुछ समय बाद आलोक और सीमा ने सुंदर कन्या देख अंकित की शादी भी कर दी ।
जब आलोक रिटायर हो गये तब पेंशन पर बड़े आराम से गुजर हो जाती थी। मकान भी उनका खुद का ही था। किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी और सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था । बहू-बेटा हालाँकि दूसरे शहर में थे परंतु अधिक दूरी नहीं थी। ट्रेन से बस दो घंटे में आ-जा सकते थे। वे लोग हरेक त्यौहार माँ-पापा के पास आकर ही मनाते थे। फोन पर भी रोज ही बात हो जाती थी।
कुछ समय बाद बहू की डिलीवरी होने को थी तब अंकित माँ-पापा को लिवा ले गया। आलोक व सीमा बहुत खुश थे। सीमा ने वहाँ जाकर घर का पूरा काम भी सँभाल लिया था और आलोक बाजार के सारे काम करने लग गया था। बहू बहुत खुश थी क्योंकि अब उन दोनों के आने से वह बिल्कुल टेंशन फ्री जो हो गई थी। सारा काम घर का हो या बाजार का उन्होंने सँभाल लिया था।
कुछ समय बाद बहू ने बेटे को जन्म दिया। अब तो बाबा-दादी की खुशी का ठिकाना ही न था। वे दोनों मानो फिर से युवा हो गये थे। सीमा सुबह जल्दी उठकर किचिन में लग जाती और आलोक भी साथ में कुछ न कुछ काम कराते रहते जैसे कभी सब्जियों को काटना और कभी चाय बनाना आदि। वैसे तो बर्तन और सफाई के लिये महरी थी परंतु वह अपने काम करके चली जाती थी। खाना और घर के बाकी काम तो सीमा ही करती थी।
इधर कुछ दिनों से बुढ़ापा और कुछ सर्दी में रसोई के काम के कारण सीमा को खाँसी हो गई साथ ही आलोक भी सर्दी अधिक होने से बीमार रहने लगे थे। पर फिर भी वे दोनों ही अपने पूरे काम पूर्ववत् कर रहे थे। बहू सारे दिन बेटे को लिये रहती। यदि बच्चा सो जाता तो खुद भी सो जाती या लेटी रहती।
अंकित भी काम से वापिस आकर बीबी- बच्चे में ही मगन हो जाता। उसे अब न माँ की और न ही पापा की कोई चिंता रह गई थी। वह खुद भी कमरे से ही आवाज लगा देता माँ यह दे जाना या माँ आज खाने में अपनी बहू के लिये यह बना देना और मेरे लिये यह।
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एक दिन बहू की माँ और बहनें बच्चे को देखने आईं , बहू के कमरे में ही सब बैठकर बातें करने लगीं। इधर सीमा चाय-पानी का इंतजाम करने लगी। चाय-नाश्ता कमरे में रख वह लौट आई पर किसीने उससे बैठने को भी नहीं कहा। सीमा कुछ देर बाद आलोक को चाय देने बहू के कमरे के सामने से गुजरी तो उसके कानों में बहू की माँ की आवाज सुनाई दी जो कह रही थी —
“वाह, बेटी तुझे तो दो रोटी में ही काम करने वाली बाई मिल गई और साथ में बाजार के काम को नौकर भी ।”
और बहू के साथ सभी जोर से हँस पड़े। यह सुन सीमा तो दंग रह गई। उसे बहू के सारे खेल समझ आ गये। उसने आलोक से सब कहकर तुरंत वापिस चलने के लिये कहा और वे दोनों अपना सामान बाँधने लगे।
इधर बहू की माँ और बहन चली भी गईं पर सीमा से मिलने नहीं आईं तो आलोक को भी बहुत बुरा लगा वे उसी समय स्टेशन के लिये ऑटो लेने चले गये। जब तक ऑटो आया तब तक अंकित भी घर आ चुका था। बहू तो कमरे में ही थी पर अंकित ने आलोक और सीमा से जाने का कारण पूँछा तो आलोक ने ऑटो में बैठते हुए कहा ..
” बस ! बहुत बेइज्जती बर्दाश्त कर ली। अब सहन नहीं करेंगे हम। हम दोनों तो प्रेम वश तुम लोगों के साथ रहकर सारे काम करते थे पर क्या पता था कि तुम हमें नौकर समझने लगे हो अब ..हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। तुम में यदि जरा सी भी शर्म हो तो तुम अब तभी आना हमारे पास जब हमें नौकर नहीं माँ-बाप समझो।” यह कह वे दोनों ऑटो में बैठ चले गये।
अंकित कुछ बोल ही नहीं पाया उनसे। जब वह अंदर गया तो पत्नी को बिस्तर पर बैठे देख बोला…
” कर दिया न सब गुड़ गोबर ! मैं कहता था कि इतना प्रेशर माँ पर मत डालो पर तुम तो खुद को बहुत होशियार समझती हो। अब करो पैसा खर्च और रखो मेड।” कहकर उसने अपना सिर पकड़ लिया।
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नोट…मेरी यह कहानी पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित है।
……… कुमुद चतुर्वेदी
….. सोनीपत (हरियाणा)