Moral stories in hindi :
ट्रेन खुल चुकी है.. स्टेशन पर अनजान अपरिचित चेहरे खोमचे वालों की आवाजें सब धीरे धीरे दूर होते जा रहे हैं और उनमें तुम भी शामिल हो चुके हो विवेक.. प्यार का इतना दुखद अंजाम उफ्फ सोचा न था…
बेटी अन्वी का हाथ जोड़ से पकड़ लेती हूं.. अन्वी को ट्रेन खुलते नींद आ रही है..
मन भूली बिसरी यादों में डूब जाता है.. ग्रेजुएशन के बाद हम एक साथ हीं कोचिंग ज्वॉइन किए.. तुम बीपीएससी की तैयारी कर रहे थे और मैं बैंक की.. संयोग से मैं पहली बार में हीं बैंक क्लर्क के लिए चुन ली गई.. एसबीआई में मेरी जॉब लग गई.. घर वालों ने शादी के लिए दबाव देना शुरू कर दिया… मैने विवेक के विषय में बताया.. बहुत हल्ला गुल्ला के बाद एक साल की मोहलत मिली… पर इस एक साल में विवेक जहां का तहां रह गया.. मैं विवेक को खूब बूस्ट अप करती तुम इस साल जरूर निकाल लोगे..
एग्जाम तो नही निकला पर घरवालों के दबाव के कारण विवेक के साथ मेरी शादी हो गई. क्योंकि वो दूसरे जगह रिश्ता देखने लगे थे..
शादी के बाद विवेक और निश्चिंत हो गए.. हर महीने पैसे आने लगे.. कुछ दिन देखने के बाद मैने विवेक को समझाया तीन साल हो गए तैयारी करते पर कोई परिणाम नहीं आया.., तुम कोई व्यापार या कुछ और करो.. बैंक से लोन दिलवाने की जिम्मेदारी मेरी… भड़क गए विवेक अनाप शनाप बोलने लगे… मैं मां बनने वाली थी… विवेक अब बहुत बदल चुका था… हमारे प्यार को किसी की नजर लग गई थी …सासु मां भी बेटे के स्वर में स्वर मिला मुझे कोसने से बाज नहीं आती.. कैसी# संस्कारहीन #बहु हमारे हिस्से में आई है.. अपने पति का पैर खींच रही है और नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है.…
ऐसे हीं तनावपूर्ण माहौल में अन्वी का जनम हुआ.. बेटी के आने की बात से मां बेटा दोनो भड़क गए… मेटरनिटी लिव में मैं मायके आ गई क्योंकि ससुराल का माहौल में रहना मुश्किल हो गया था.. विवेक पीने भी लगे थे.. मुझे एक प्रमोशन भी मिला था.. विभगीय परीक्षा पास होने के कारण.. विवेक को अब मैं हीं उनकी प्रतिद्वंदी लगने लगी थी…मेरी हर बात का उल्टा अर्थ निकालने लगे..
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एक दो बार हाथ भी उठा चुके थे… विवेक का नया रूप मेरे सामने था.. मुझे मां ने कितना समझाया था बेटा तुम खुश नही रह पाओगी इस लड़के के साथ पर विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली कहावत मुझ पर भी हावी हो गई थी…
मैं अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करा लिया… विवेक ने बहुत बुरा भला कहा.. पर अन्वी को मैं ये माहौल नही देना चाहती थी..
एक दो बार यहां भी आकर विवेक ने बहुत हल्ला मचाया… पर हद तो तब हो गई जब एक दिन बैंक पहुंचकर बदतमीजी करने लगे… हारकर गार्ड ने पकड़ कर विवेक को बाहर किया… मैं शर्म अपमान गुस्सा और अफसोस से रोने लगी… विवेक चिल्ला रहा था यार के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए यहां बदली करवाया है.. जैसा संस्कारहीन है वैसी बेटी को भी बना रही है.. वापस बदली करवाओ या तलाक दो…
मेरे साथ हीं काम करने वाले राहुल जो बहुत गंभीर और रिजर्व किस्म का इंप्लाई था, आज पहली बार पानी और चाय लेकर मेरे पास आया मेरे आसूं पोंछे और मुझे लेकर बाहर आया…
और मैं निर्णय ले चुकी थी विवेक से तलाक लेने का..
और तीन साल में बहुत कुछ हुआ.. राहुल मेरे साथ हर सुख दुःख में खड़ा रहा… तलाक का मुकदमा दायर कर चुकी थी मैं…
और आज मैं अवनी विवेक शर्मा से अवनी गुप्ता हो गई.. पुरानी पहचान नाम.. हर पेशी पर मुझे कितना कुछ सहना पड़ता था.. विवेक मुझे तलाक नहीं देना चाहता था.. उसकी चाल थी धमकी देकर फिर वापस ससुराल वाले शहर में मैं आ जाऊं.. मेरे पैसे पर उसका हक हो… उसकी मर्जी से मेरी जिंदगी चले.. पर उसकी चाल उल्टी पड़ गई..
आज भी जाते जाते विवेक और सासु मां ने मेरे संस्कार परवरिश पर उंगली उठाई…
अन्वी को और मुझे दोनो को राहुल बहुत पसंद है पर दूध का जला छांछ भी फूंक फूंक कर पीता है… इसलिए राहुल से मैने छः महीने का समय और लिया है सोचने के लिए….
मैं सोच के मुस्कुरा रही हूं संस्कारहीन कौन है मैं या विवेक.. अन्वी पूछ रही है मम्मा क्यों हंस रही हो.. और मैं उसे जोर से भींच लेती हूं..
#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
Veena singh
डॉ.फरीन खान उज्जैन (म.प्र.)