Moral stories in hindi : थकी-हारी आनंदी ने जब अपने ‘आनंदी-निवास ‘ में प्रवेश किया तो बैठक-कक्ष के सोफ़े पर वह निढ़ाल हो गई।उसने एक नज़र पूरे घर में दौड़ाई और सोचने लगी, क्या इसी दिन के लिए मैंने यह घर बनवाया था।
बरसों सरकारी आवास में रहते-रहते वह उकता गई थी।हर तीन साल पर पति महोदय का तबादला.. सामान बाँधो, फिर खोलो और सभी को व्यवस्थित करो।जब तक वह उस सरकारी आवास के कमरों-दीवारों को पहचान पाती , तब तक उसके पति को शहर बदलने के आदेश हाथ में आ जाते थें।
बेटी के ब्याह के बाद उसने तय कर लिया कि अब तो अपने नाम की तख्ती वाले घर में ही जाना है।इस शहर में उसके पति ने जब ज़मीन खरीदी थी, तब उसकी सहेली भी इसी शहर में एक किराये के मकान में रह रही थी।उसे भूमि- पूजन में बुलाते वक्त वो स्वयं कितनी गर्वित थीं।क्यों न होती…आखिर उनके अपने घर की पूजा थी,किसी किराये के घर की नहीं।
जब घर की दीवारें खड़ी हो गई, छत तैयार हो रहा था तब बड़े बेटे ने कनाडा से फ़ोन करके कहा था,” माँ..,मेरे कमरे में दीवार पर लाईट कलर ही करवाना।” अलमारी की डिजाईन तो छोटे ने ही बतायी थी।कहता था,” माँ …, पापा के क्वाॅटर की अलमारियों में तो मेरे कपड़ों की क्रीज़ ही खराब हो जाती थी।उसने कहा भी था उससे कि तू तो रहता ही नहीं..,मनपसंद अलमारी बनवाने से क्या फ़ायदा।तब तुरंत बोला, ” माँ..रिद्धि को अपनी बहू बना तो लो…फिर देखना..हम सब तुम्हारे आगे-पीछे ही घूमेंगे।
किचन में तो वो सिम्पल रैक ही बनवा रहीं थी,उसका बजट उतना ही था, तब उसकी लाडली ज़िद कर बैठी कि माड्युलर किचन ही बनेगा।बजट ऊपर जा रहा था,इसलिए बेटी को मना कर दिया तो तपाक-से बेटी बोली थी,” आप तो बेटों के लिये घर बनवा रही हो..हम तो पराये है ना।और फिर उसने पति को मनाया..शानदार किचन बनवाया।
गृह-प्रवेश के दिन वो कितनी खुश थीं, पूरा परिवार एक साथ…एक छत के नीचे…।खुद को कितनी भाग्यशाली समझ रही थी वो।अपनी सहेली को भी बुलाया था उसने।घर का एक-एक कोना अपनी सहेली को इतरा-इतराकर दिखला रही थी।
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कुछ महीनों बाद छोटे का विवाह किया, बहू आ गई।सप्ताह भर रहने बाद छोटा बेटा बहू को लेकर चला गया।बड़ा बेटा-बहू पहले ही चले गये थें।बेटी के ससुराल जाने के बाद पति-पत्नी ही रह गयें थें उस विशाल ‘आनंदी निवास’ में।
कुछ दिनों के बाद ही घर का खालीपन घर की खूबसूरती को निगलने लगा।कभी वो लाइट ऑन करना भूल जाती तो कभी खिड़की खोलना।समय बीतता गया…बच्चे फ़ोन पर कहते- जल्दी ही आयेंगे माँ।पति भी अस्वस्थ रहने लगे और एक दिन उन्होंने भी उसका साथ छोड़ दिया।बच्चे मेहमान की तरह आये और चले गये।रह गया उनका खाली घर और उनकी तन्हाई।
बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकली तो सहेली से मिलने का दिल किया।दो कमरों का छोटा-सा किराये का घर जहाँ ढ़ंग से सूर्य देवता का भी प्रवेश नहीं हो पाता था।एक मन किया कि वापस लौट जाये, फिर कुछ सोचकर उसने काॅलबेल बजा दी।सहेली की बहू ने दरवाज़ा खोला।आदर से उन्हें बैठाया, पानी पीने को दिया।सहेली चाय लेकर आई।दोनों बातें कर रहीं थी, तभी पोता सहेली की गोद में आ बैठा।इतने में सहेली का बेटा आकर बोला कि माँ.., आपका कल का अपाॅइंटमेंट ले लिया है।
तब उसे महसूस हुआ कि घर चाहे बड़ा न हो, बस अपनों के दिल में प्यार होना चाहिए और एक- दूसरे की भावनाओं की कद्र करना चाहिये।उस छोटे घर में उसकी सहेली अपने परिवार के साथ कितनी खुश थी और वो…बड़े घर में भी अकेली।भाग्यशाली तो उसकी सहेली है जो अपनों के बीच .. । “
” मालकिन…साँझ हो रही है…आपके लिये चाय बना दूँ….?” महाराज जो उसकी रसोई संभालता था, कमरे की लाइट ऑन करके पूछा तो वो वर्तमान में लौटी।
” चाय…हाँ, ले आओ।”
महाराज उसे चाय का कप देकर ‘आता हूँ ‘ कहकर बाहर चला गया।वो चाय पीने लगीं लेकिन आज उसे चाय का स्वाद फ़ीका लग रहा था…, उसके जिह्वा पर सहेली के घर की अपनत्व वाली चाय का स्वाद जो चढ़ चुका था।
विभा गुप्ता
स्वरचित